उत्तराखंड हाईकोर्ट ने सूखाताल में सौंदर्यीकरण एवं निर्माण कार्यों पर रोक लगाई

06:15 PM Nov 23, 2022 | द वायर स्टाफ

सुनवाई के दौरान एमिकस क्यूरी ने अदालत को बताया कि जल-वैज्ञानिक अध्ययनों से पता चला है कि नैनीताल स्थित सूखाताल झील, नैनी झील को 40 से 50 प्रतिशत तक रिचार्ज (पानी की पूर्ति) करती है. झील के आधार पर कंक्रीट बिछाया जा रहा है, जो दोनों झीलों के लिए ख़तरनाक है.

सूखाताल में चल रहा निर्माण कार्य और झील क्षेत्र में बने भवन. (फाइल फोटो: कविता उपाध्याय)

नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने मंगलवार को नैनीताल स्थित सूखाताल झील के सौंदर्यीकरण एवं पुन​र्जीवीकरण से संबंधित निर्माण कार्यों पर रोक लगा दी. बारिश से भरने वाली सूखाताल झील, नैनी झील को भी रिचार्ज करती है.

हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और जस्टिस आरसी खुल्बे की खंडपीठ ने एक पत्र को जनहित याचिका मानते हुए मामले में सुनवाई के लिए अगली तारीख 20 दिसंबर तय की है.

झील के चारों तरफ सूखे क्षेत्र में सभी निर्माण गतिविधियों पर रोक लगाते हुए अदालत ने राज्य पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन प्राधिकरण और राज्य आद्रभूमि प्रबंधन प्राधिकरण को भी पक्षकार बनाते हुए नोटिस जारी किए हैं.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, पीठ ने राज्य के अधिकारियों से क्षेत्र में सभी अतिक्रमणों को हटाने के लिए भी
कहा. पीठ ने कहा कि अगर वे समाज के गरीब वर्गों से होते तो प्रशासन अब तक अतिक्रमण हटा चुका होता.

पिछले साल दिसंबर में 104 हस्ताक्षरकर्ताओं (स्थानीय कार्यकर्ताओं और नागरिकों) ने उत्तराखंड हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को एक पत्र भेजा था, जिन्होंने मामले का स्वत: संज्ञान लिया और पत्र को जनहित याचिका में बदल दिया. कोर्ट ने मामले की जांच के लिए एमिकस क्यूरी (न्याय मित्र) नियुक्त किया है.

सुनवाई के दौरान एमिकस क्यूरी कार्तिकेय हरिगुप्ता ने अदालत को बताया कि जल-वैज्ञानिक अध्ययनों से पता चला है कि सूखाताल झील नैनी झील को 40 से 50 प्रतिशत तक रिचार्ज (पानी की पूर्ति) करती है. उन्होंने कहा कि झील के आधार पर कंक्रीट बिछाया जा रहा है, जो दोनों झीलों के लिए खतरनाक है.

हरिगुप्ता ने कहा कि राज्य सरकार ने क्षेत्र का सौंदर्यीकरण करने से पहले कोई पर्यावरणीय सर्वेंक्षण नहीं किया. उन्होंने कहा कि इस संबंध में आईआईटी रूड़की ने एक अध्ययन किया था, लेकिन पर्यावरणीय प्रभावों पर उनकी विशेषज्ञता नहीं होने के कारण उनकी रिपोर्ट पर भरोसा नहीं किया जा सकता.

आईआईटी रूड़की ने अपनी रिपोर्ट में झील के सौंदर्यीकरण के लिए कई सुझाव दिए हैं. अपनी रिपोर्ट में संस्थान ने झील के किनारों पर एक चारदीवारी बनाने को कहा है, ताकि झील में कोई अतिक्रमण न हो.

बाद में जिला विकास प्राधिकरण ने झील की सतह पर कंक्रीट बिछाकर उसे एक बारहमासी झील में बदलने का फैसला लिया.

एमिकस क्यूरी ने अदालत को बताया कि अगर सूखाताल को बारहमासी बना दिया गया तो इसका नैनी झील पर बुरा प्रभाव पड़ने के साथ ही पर्यावरण को भी नुकसान होगा और आपदा आने की आशंका भी बनी रहेगी.

नैनीताल निवासी डॉ. जीपी शाह तथा कई अन्य लोगों ने हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को एक पत्र लिखकर कहा था कि सूखाताल के सौंदर्यीकरण कार्य से झील का प्राकृतिक जलस्रोत बंद हो जाएगा. सूखाताल में निर्माण कार्य अवैज्ञानिक तरीके से किए जा रहे हैं.

पत्र में यह भी कहा गया था कि झील में लोगों ने भी अतिक्रमण कर लिया है, जिससे उसकी सतह का क्षेत्रफल कम हो गया है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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