जम्मू: शख़्स की आत्महत्या के बाद परिजनों ने कहा- आतंकी हमले को लेकर बार-बार पूछताछ हो रही थी

26 अप्रैल की सुबह जम्मू के 55 वर्षीय मुख़्तार हुसैन शाह नार के गवर्नमेंट हाईस्कूल के पास बेहोशी की हालत में पाए गए थे, अस्पताल ले जाने के बाद उनकी मौत हो गई. बताया गया है कि उन्होंने कोई ज़हरीला पदार्थ खाया था. उनके परिवार का दावा है कि बीते दिनों पुंछ में सेना के एक वाहन पर हुए आतंकी हमले के संबंध में पूछताछ के लिए पुलिस द्वारा उन्हें बार-बार बुलाया जा रहा था. The post जम्मू: शख़्स की आत्महत्या के बाद परिजनों ने कहा- आतंकी हमले को लेकर बार-बार पूछताछ हो रही थी appeared first on The Wire - Hindi.

26 अप्रैल की सुबह जम्मू के 55 वर्षीय मुख़्तार हुसैन शाह नार के गवर्नमेंट हाईस्कूल के पास बेहोशी की हालत में पाए गए थे, अस्पताल ले जाने के बाद उनकी मौत हो गई. बताया गया है कि उन्होंने कोई ज़हरीला पदार्थ खाया था. उनके परिवार का दावा है कि बीते दिनों पुंछ में सेना के एक वाहन पर हुए आतंकी हमले के संबंध में पूछताछ के लिए पुलिस द्वारा उन्हें बार-बार बुलाया जा रहा था.

(फाइल फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: जम्मू के नार इलाके में एक सड़क के किनारे मृत पाए गए एक व्यक्ति के परिवार ने दावा किया है कि 20 अप्रैल को पुंछ में सेना के एक वाहन पर हुए आतंकवादी हमले, जिसमें पांच सैनिक मारे गए थे, के संबंध में पूछताछ के लिए पुलिस द्वारा उन्हें बार-बार बुलाया जा रहा था.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, मुख्तार हुसैन शाह (55), जिनके पत्नी, तीन बेटियों और एक बेटा हैं, 26 अप्रैल की सुबह गवर्नमेंट हाई स्कूल, नार के पास बेहोशी की हालत में पाए गए थे. उन्हें मेंढर के एक अस्पताल और वहां से राजौरी के सरकारी मेडिकल कॉलेज अस्पताल ले जाया गया, जहां उसी रात उनकी मृत्यु हो गई.

उन्हें अगले दिन स्थानीय लोगों के प्रदर्शन के बीच दफनाया गया. लोगों ने लगभग दो घंटे के लिए भींबर गली-सुरनकोट रोड को अवरुद्ध कर दिया था.

उनके छोटे भाई रफ्तार ने दावा किया कि 20 अप्रैल को पुंछ में हुए आतंकी हमले के कुछ घंटे बाद मुख्तार को गुरसाई थाने से फोन आया कि वह वहां पेश हों. वे तीन दिनों के बाद 23 अप्रैल को घर लौटे, लेकिन उसी रात पुलिस ने उन्हें फोन पर पुंछ जाने को कहा.

उन्होंने कहा, ‘मैं अगली सुबह उसे मोटरसाइकिल पर जारनवाली गली ले गया जहां स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप के दो पुलिसकर्मी उसकी प्रतीक्षा कर रहे थे. इसके बाद हमें उनकी कोई जानकारी नहीं मिली.’

उन्होंने दावा किया कि 26 अप्रैल की सुबह एक ग्रामीण ने उन्हें फोन किया और कहा कि मुख्तार सड़क पर मिले हैं.

हालांकि, एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा कि मुख्तार कोई संदिग्ध नहीं थे और उन्हें पूछताछ के लिए बुलाया हो सकता है, लेकिन ऐसी घटनाओं के बाद यह नियमित प्रक्रिया है.

बताया गया है कि किसी जहरीली चीज़ का सेवन करने से पहले मुख्तार ने कथित तौर पर एक वीडियो रिकॉर्ड किया, जिसमें उन्होंने नाराज़गी व्यक्त की थी कि किसी ने उन पर विश्वास नहीं किया और उनका आतंकवादियों से कोई संबंध नहीं था. इस वीडियो में वे कहते हैं, ‘अगर मैंने किसी की मदद की होती तो मैं आसानी से स्वीकार कर लेता, लेकिन मुझ पर या मेरे परिवार के सदस्यों पर किसी ऐसी चीज के लिए दबाव डालना, जिसके बारे में मुझे जानकारी नहीं है, बिल्कुल गलत है.’

उन्होंने कहा कि आतंकी हमले के बाद पुलिस और सेना की ग्रामीणों से पूछताछ जायज है, लेकिन साथ ही कहा कि, ‘जब मैं उन्हें सच बताता हूं, तो वे इसे नहीं मानते. वे अपनी जगह ठीक हैं, लेकिन मैं भी अल्लाह की कसम खाता हूं कि मैं भी बेगुनाह हूं. न तो मेरा और न ही मेरे परिवार का आतंकवादियों से कोई संबंध है. मेरे परिवार के सदस्यों, भाइयों को परेशान किया जा रहा है.’

इस वीडियो में मुख्तार ने यह भी दावा किया कि वास्तव में उन्होंने ही पुलिस और राष्ट्रीय राइफल्स को 2021 में क्षेत्र में आतंकवादियों की मौजूदगी के बारे में सूचित किया था.

ज्ञात हो कि अक्टूबर 2021 में आतंकवादियों द्वारा घात लगाकर भट्टा दुरियां जंगलों में चार सैनिकों की हत्या कर दी गई थी. सुरक्षा बलों द्वारा छापामारी और तलाशी अभियान एक महीने से अधिक समय तक जारी रहा और अंततः इसे बिना किसी नतीजे के बंद कर दिया गया.

रफ़्तार ने याद करते हुए बताया कि उस साल कुछ अज्ञात लोग उनके घर आए थे और बंदूक की नोंक पर उनसे खाना मांगा था. फिर उनके परिवार को एक कमरे में बंद कर वे पास के जंगलों में गायब हो गए.

रफ़्तार ने दावा किया कि मुख्तार ने तब मेंढर और पास की राष्ट्रीय राइफल्स इकाई के पुलिस अधिकारियों को फोन किया था और उन्हें आतंकवादियों के बारे में जानकारी दी थी. रफ़्तार ने कहा, ‘तब से हम डर में जी रहे हैं.’

नार पंचायत के सरपंच आफताब खान ने मुख्तार के परिवार को ‘इज्ज़तदार’ बताया. रफ़्तार ने कहा, ‘हम 1990 के दशक के मध्य से पुलिस और सुरक्षा बलों का समर्थन करने के लिए आतंकवादियों से खतरों का सामना कर रहे हैं. हमारे चाचा गुलज़ार हुसैन एक वन रक्षक और उनकी पत्नी और चार बच्चों को 24 सितंबर, 2000 को आतंकवादियों ने मार डाला क्योंकि उन्हें उनके मुखबिर होने का संदेह था.’

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