किसानों के लाभ के लिए 22,000 ग्रामीण हाटों में से एक को भी कृषि बाज़ार नहीं बनाया जा सका

05:50 PM Nov 28, 2020 | धीरज मिश्रा

विशेष रिपोर्ट: केंद्र सरकार ने साल 2018-19 के बजट में घोषणा की थी कि देश के 22,000 ग्रामीण हाटों को कृषि बाज़ार में बदला जाएगा, ताकि जो किसान एपीएमसी मंडियों तक नहीं पहुंच पाते, वे अपने नज़दीक इन हाटों में फसल बेचकर लाभकारी मूल्य प्राप्त कर सकें. इसके उलट सरकार ने तीन कृषि क़ानून बना दिए, जिसका किसान विरोध कर रहे हैं. उन्हें डर है कि सरकार इनके ज़रिये न्यूनतम समर्थन मूल्य दिलाने की स्थापित व्यवस्था ख़त्म करना चाह रही है.

नए कृषि कानूनों के विरोध में पंजाब से दिल्ली के नजदीक सिंघू बॉर्डर पर पहुंचकर प्रदर्शन करते किसान. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: कृषि उत्पाद विपणन समितियां यानी कि एपीएमसी मंडियों की पहुंच से दूर कई किसानों, खासकर छोटे एवं सीमांत कृषकों को लाभ पहुंचाने के लिए ग्रामीण हाटों को कृषि बाजार में परिवर्तित करने की योजना ठंडे बस्ते में पड़ी हुई है.

आलम ये है कि मोदी सरकार द्वारा देश के 22,000 हाटों को ग्रामीण कृषि बाजार बनाने के लक्ष्य के तहत अब तक एक भी हाट को कृषि बाजार में परिवर्तित या विकसित नहीं किया जा सका है. द वायर  द्वारा सूचना का अधिकार कानून (आरटीआई) के तहत प्राप्त दस्तावेजों से ये जानकारी सामने आई है.

यह किसानों को बेहतर कृषि बाजार देने के केंद्र एवं राज्य सरकारों के दावों पर सवालिया निशान खड़े करता है.

किसानों की आय दोगुनी करने लिए बनी समिति की सिफारिश को स्वीकार करते हुए सरकार ने साल 2018-19 के बजट में घोषणा की थी कि कृषि उत्पादों की बिक्री तंत्र को मजबूत करने के लिए देश भर के 22,000 ग्रामीण हाटों को कृषि बाजार में तब्दील किया जाएगा, ताकि जो किसान एपीएमसी मंडियों तक नहीं पहुंच पाते हैं, वे अपने नजदीक इन हाटों में फसल बेचकर लाभकारी मूल्य प्राप्त कर सकें.

इसमें से 10,000 ग्रामीण कृषि बाजारों में मार्केटिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास के लिए सरकार ने नाबार्ड के अधीन 2,000 करोड़ रुपये के एग्री-मार्केट इन्फ्रास्ट्रक्चर फंड (एएमआईएफ) को मंजूरी दी थी. इस फंड का उद्देश्य राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों को सस्ती दर (करीब छह फीसदी) पर लोन देना है, ताकि वे इस पैसे का इस्तेमाल कर अपने यहां के हाटों को कृषि बाजार में परिवर्तित कर सकें.

हालांकि नाबार्ड ने बताया है कि इस फंड को प्राप्त करने के लिए अभी तक एक भी राज्य ने प्रस्ताव नहीं भेजा है, जबकि एएमआईएफ की गाइडलाइन के मुताबिक 31 मार्च 2020 तक राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा भेजे गए प्रस्तावों और सत्यापन के बाद इसकी स्वीकृति वालों को ही योजना के तहत फंड प्राप्त करने योग्य माना जाएगा.

केंद्रीय जन सूचना अधिकारी देवाशीष पाढ़ी ने भेजे अपने जवाब में बताया, ‘भारत सरकार ने एग्री-मार्केट इन्फ्रास्ट्रक्चर फंड के दिशानिर्देश सभी राज्यों को जारी कर दिए हैं और नाबार्ड ने 22 जुलाई 2020 को अपने क्षेत्रीय कार्यालयों में एक आंतरिक दिशानिर्देश भेजा है. हालांकि अभी तक हमें किसी भी राज्य से कोई प्रस्ताव नहीं मिला है.’

खराब कृषि मार्केटिंग व्यवस्था वाले राज्यों के लिए महत्वपूर्ण इस योजना को 2018-19 से 2025-26 के बीच में लागू किया जाना है.

चूंकि इस संबंध में अभी तक किसी राज्य ने कोई प्रस्ताव नहीं भेजा है, इसलिए कोई फंड जारी नहीं किया गया है और परिणामस्वरूप किसी भी हाट को ग्रामीण कृषि बाजार में विकसित नहीं किया जा सका है.

नाबार्ड द्वारा भेजा गया जवाब.

कृषि मंत्रालय ने भी इस बात की पुष्टि की है कि इस योजना के तहत किसी भी हाट को कृषि बाजार में तब्दील नहीं किया जा सका है. मंत्रालय के कृषि विपणन डिवीजन में जन सूचना अधिकारी आशीष बागड़े ने अपने जवाब में कहा, ‘जहां तक कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय की बात है तो किसी भी ग्रामीण हाट को कृषि बाजार में विकसित और अपग्रेड नहीं किया गया है.’

विशेषज्ञों का कहना है कि इस योजना के डिजाइन में ही समस्या है, चूंकि केंद्र ने इस फंड के तहत सीधे कोई राशि देने के बजाय लोन देने का प्रावधान रखा है, इसलिए राज्यों द्वारा प्रस्ताव न भेजने की ये एक प्रमुख वजह हो सकती है.

मालूम हो कि कृषि उत्पादों की बिक्री एवं खरीदी के लिए देश के विभिन्न जिलों में एपीएमसी मंडिया बनाई गई हैं, लेकिन इनकी संख्या जरूरत की तुलना में कम होने के कारण ये काफी दूरी पर स्थित होती हैं. नतीजतन यदि किसान इन मंडियों में अपनी उपज बेचना चाहता है तो उसे आवागमन पर भारी खर्च करना पड़ता है, जो कि छोटे एवं सीमांत किसानों के लिए संभव नहीं होता है.

इसके कारण इन किसानों को अपने उत्पाद स्थानीय एजेंट और ट्रेडर को बेचने पड़ते हैं, जो कि अपनी शर्तों पर खरीदी करते हैं या यूं कहें कि किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से काफी कम दाम पर अपनी उपज इन्हें बेचना पड़ता है. बाद में यही एजेंट और ट्रेडर्स इन किसानों के उत्पाद को ले जाकर एमएसपी पर एपीएमसी मंडी में बेचते हैं और अच्छा मुनाफा कमाते हैं.

प्रख्यात कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन की अध्यक्षता वाली किसानों पर राष्ट्रीय आयोग ने अपनी रिपोर्ट में सिफारिश की थी कि किसानों को लाभकारी मूल्य देने के लिए देश में 80 वर्ग किमी. पर एक कृषि बाजार होना चाहिए.

हालांकि हकीकत ये है कि देश में 496 वर्ग किमी. पर महज एक एपीएमसी मंडी है, जो कि कृषि मंडियों की कमी को दर्शाता है और यहां पर बड़े किसान ही पहुंच पाते हैं. 31 मार्च 2017 तक भारत में कुल 6,630 एपीएमसी मंडियां थीं.

इसलिए डॉ. अशोक दलवई की अगुवाई में किसानों की आय दोगुनी करने के लिए बनी समिति ने इस संकट पर संज्ञान लेते हुए सिफारिश की थी कि इस समस्या के समाधान के लिए कृषि बाजार की व्यवस्था को सुधारने की जरूरत है और इसके लिए देश भर 22,000 ग्रामीण हाटों को कृषि बाजार में विकसित किया जाना चाहिए.

ये कृषि बाजार ग्रामीण स्तर पर स्थिति होते हैं और यहां पर हर तरह के किसानों की पहुंच आसान होती है.

इस योजना के तहत इन ग्रामीण हाटों में बाउंड्री वॉल, रोड एवं नाला, पार्किंग, बिजली व्यवस्था, खरीद एवं बिक्री के लिए विशेष स्थान, कोल्ड स्टोरेज, साफ-सफाई, आराम कक्ष, पीने के लिए पानी, शौचालय और पेड़ लगाने जैसे कार्य किए जाने थे.

इन कार्यों को भारत सरकार की पहले से चली आ रहीं योजनाओं जैसे कि मनरेगा, बागवानी के एकीकृत विकास के लिए मिशन (एमआईडीएच), कृषि विपणन इन्फ्रास्ट्रक्चर (एएमआई), राष्ट्रीय कृषि विकास योजना- रफ्तार (आरकेवीवाई-रफ्तार), प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना इत्यादि तथा नई योजना एएमआईएफ की मदद से पूरा किया जाना था.

हालांकि आधिकारिक दस्तावेज दर्शाते हैं कि ये योजना अभी तक अपने शैशव अवस्था को भी पार नहीं कर पाई है. इसी साल फरवरी महीने में कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री द्वारा लोकसभा में पेश आंकड़ों के मुताबिक मनरेगा के तहत सिर्फ 750 ग्रामीण हाटों में कार्य शुरू किया गया था और इसमें से 438 में ही कार्य पूरा हो पाया था.

पूर्व कृषि सचिव सिराज हुसैन कहते हैं कि अब जनता भी कृषि को बड़ा मुद्दा नहीं बना रही है, इसलिए राज्य सरकारें भी इसे लेकर गंभीर नहीं हैं.

उन्होंने कहा, ‘ये बेहद हैरानी की बात है कि बिहार चुनाव के दौरान जब लोकनीति-सीएसडीए ने सर्वे किया तो खेती-किसानी टॉप-10 में भी कोई मुद्दा नहीं था. जब कृषि वोटर के लिए महत्वपूर्ण ही नहीं है तो राज्य सरकारें क्यों इसके लिए जहमत उठाएं.’

(फोटो: पीटीआई)

सिराज हुसैन ने कहा कि चूंकि बिहार में एपीएमसी मंडियां ही नहीं हैं, इसलिए उन्हें तो सबसे पहले इस योजना का फायदा उठाना चाहिए था और केंद्र सरकार से मदद प्राप्त करने के लिए प्रस्ताव भेजना चाहिए था.

मालूम हो कि बीते सितंबर महीने में मोदी सरकार ने बेहतर कृषि मार्केटिंग व्यवस्था तैयार करने के नाम पर तीन विवादित कृषि कानूनों को पारित किया था, जिसमें कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) कानून 2020 भी शामिल है. इसका उद्देश्य कृषि उपज विपणन समितियों (एपीएमसी मंडियों) के बाहर भी कृषि उत्पादों को बेचने और खरीदने की व्यवस्था तैयार करना है.

हालांकि इसे लेकर चौतरफा विरोध हो रहा है और 26-27 नवंबर को इसके खिलाफ किसानों का बड़ा प्रदर्शन रहा है. ‘दिल्ली चलो मार्च’ के तहत आसपास के राज्यों, विशेषकर पंजाब के किसान दिल्ली पहुंच रहे हैं.

इन किसानों को रोकने के लिए हरियाणा की मनोहर लाल खट्टर सरकार ने पंजाब से लगी अपनी सभी सीमाएं सील कर दी हैं. दिल्ली के सीमावर्ती इलाकों में भी पुलिस ने अपनी चौकसी बढ़ा दी है.

बीते 26 नवंबर को किसानों को रोकने के क्रम में जगह-जगह उन पर पानी की बौछार छोड़ने के अलावा आंसू गैस के गोल भी दागे गए.

दरअसल किसानों को इस बात का भय है कि सरकार इन कानूनों के जरिये न्यूनतम समर्थन मूल्य दिलाने की स्थापित व्यवस्था को खत्म करना चाह रही है और यदि इन्हें लागू किया जाता है तो किसानों को व्यापारियों के रहम पर जीना पड़ेगा.

हुसैन ने कहा कि इस नए एक्ट को कामयाब बनाने के लिए ये जरूरी है कि ग्रामीण कृषि मार्केट की योजना सफल हो. उन्होंने कहा, ‘इसके लिए एपीएमसी के बाहर इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाए जाए, ताकि किसान अच्छी कीमत पा सकें. अगर राज्य सरकारें वाकई चाहती हैं कि एपीएमसी के बाहर व्यापार हो तो उन्हें इस योजना को और तत्परता से लागू करना चाहिए.’

वहीं स्वराज इंडिया के राष्ट्रीय महासचिव और कृषि कार्यकर्ता अविक साहा ने कहा कि देश में जब 17 राज्यों में भाजपा की सरकार है तो उन्हें इसका लाभ उठाने से किसने रोका था. उन्होंने कहा कि नए कृषि कानून से ये योजना बिल्कुल खत्म हो जाएगी.

साहा ने कहा, ‘सरकार का कभी भी इस योजना को आगे बढ़ाने का मकसद नहीं था, ये सिर्फ एक प्रचार था. इसका डिजाइन ही ऐसा बनाया गया था कि इसे लागू न किया जा सके. अब नया कानून लाकर इसका अंतिम संस्कार किया गया है. सरकार ने एपीएमसी के बाहर प्राइवेट सेक्टर द्वारा खरीददारी का रास्ता खोल दिया है. अब क्यों वे इन हाटों का कृषि बाजार बनाने में पैसा खर्च करेंगे.’

ये जानने के लिए कि इस योजना के तहत राज्यों द्वारा प्रस्ताव न भेजने पर क्या कृषि मंत्रालय ने कोई कदम उठाया है, द वायर  ने कृषि सचिव एवं ग्रामीण कृषि बाजार स्कीम को देख रहे संयुक्त सचिव को ई-मेल भेजा है. यदि कोई जवाब आता है तो उसे स्टोरी में शामिल कर लिया जाएगा.

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