नॉर्थ ईस्ट डायरी: सीमा विवाद के बाद मेघालय के डीएसपी बोले- असम पुलिस ने भीड़ को उकसाया होगा

05:43 PM Aug 29, 2021 | द वायर स्टाफ

इस हफ़्ते नॉर्थ ईस्ट डायरी में मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, मिज़ोरम और असम के प्रमुख समाचार.

असम मेघालय सीमा पर री-भोई जिले में हुआ विवाद. (फोटो साभार: द नॉर्थ ईस्ट टुडे)

शिलॉन्ग/ईटानगर/गुवाहाटी/आइजॉल/नई दिल्ली: मेघालय में असम के साथ लगती सीमा पर भीड़ के हमले में गंभीर रूप से घायल हुए राज्य के पुलिस उपाधीक्षक फिरोज रहमान ने शनिवार को आरोप लगाया कि इलाके में परेशानी को भांपते हुए असम पुलिस ‘लड़ाई के लिए तैयार’ थी, लेकिन जब उन पर हमला हुआ तो उसने मदद नहीं की और ऐसा हो सकता है कि असम पुलिस के कुछ कर्मियों ने भीड़ को हमले के लिए उकसाया हो.

री-भोई जिले में तैनात रहमान को उम्लापर में हालात का जायजा लेने के लिए जिला प्रशासन ने बुधवार को वहां भेजा था. इससे एक दिन पहले स्थानीय लोगों ने असम पुलिस द्वारा लगाए एक शिविर का घेराव कर लिया था.

रहमान ने बताया, ‘इलाके में कुछ परेशानी होने की सूचना मिलने पर मैं और मेरे साथ एक दल तुरंत वहां के लिए रवाना हुए. विवादित इलाके में पहुंचने पर भीड़ ने हमें घुसने तो दिया लेकिन वापस आते वक्त सड़क अवरुद्ध कर दी.’

उन्होंने कहा कि उन्हें उम्मीद थी कि असम पुलिस सुरक्षा देगी लेकिन उन्होंने मदद की गुहार नहीं सुनी.

उन्होंने कहा, ‘असम पुलिस वहां थी लेकिन उन्होंने हमारी मदद नहीं की. स्थानीय लड़कों ने हमसे हाथापाई शुरू कर दी. नेपाली और कार्बी लोग आए तथा मुझे और मेरे ड्राइवर पर हमला कर दिया.’

पुलिस अधिकारी ने कहा, ‘उन्होंने मुझ पर और मेरे चालक पर हमला कर दिया और नजदीक के एक खेत में फेंक दिया. मैं किसी तरह सुरक्षा के लिए भागा. अगर मैं नहीं भागता तो वे मुझे मार देते. हमने उन्हें किसी भी तरीके से नहीं उकसाया. यहां तक कि मंगलवार को उन्हीं लोगों ने हमसे अच्छी तरह बात की, लेकिन बुधवार को उन्होंने हमारे ऊपर हमला कर दिया. मुझे लगता है कि असम पुलिस के कुछ कर्मियों ने भीड़ को उकसाया होगा इसलिए वे हमारी मदद के लिए नहीं आए.’

अभी पुलिस अधिकारी का शिलॉन्ग के एक निजी अस्पताल में इलाज चल रहा है.

ज्ञात हो कि असम के पश्चिम कार्बी आंगलोंग ज़िले और मेघालय के री-भोई ज़िले के बीच का क्षेत्र 24 अगस्त से तनावपूर्ण है.

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, 23 अगस्त की रात मेघालय के री-भोई जिले के तीन लोगों को असम पुलिस की एक टीम ने राज्य की सीमा पर कथित रूप से पीटा था. घटना के बाद मेघालय के लोगों के एक समूह ने अगले दिन उमलाफेर इलाके में असम पुलिस की एक पुलिस चौकी को कथित तौर पर क्षतिग्रस्त कर दिया.

इसके बाद पश्चिम कार्बी आंगलोंग जिले के पुलिस अधीक्षक एसपी अजगवरन बसुमतारी ने बताया था कि 23 अगस्त की घटना पर बैठक की मांग को लेकर मेघालय के 100 से अधिक लोगों और पुलिसकर्मियों के असम में प्रवेश करने के बाद अगले दिन स्थिति तनावपूर्ण हो गई थी.

बसुमतारी का कहना था, ‘असम की ओर से भी कई लोग मौके पर जमा हो गए थे. बाद में हमारे पुलिसकर्मियों और नागरिकों द्वारा मेघालय पुलिसकर्मियों और नागरिकों को वापस भेजने में कामयाब होने के बाद स्थिति को नियंत्रण में लाया गया. लेकिन कुछ घंटों बाद मेघालय का एक पुलिस दल असम में करीब 15 किमी अंदर घुस गया और स्थानीय निवासियों ने मेघालय पुलिस के वाहनों को रोक लिया. दोनों समूहों के बीच कुछ धक्का-मुक्की हुई और बाद में मेघालय पुलिस को वापस ले जाया गया.’

उधर मेघालय पुलिस ने दावा किया था कि उनके एक अधिकारी बुधवार को स्थिति को नियंत्रित करने की कोशिश में घायल हो गए.

री-भोई जिले के एसपी एन. लामारे ने बताया था कि भीड़ को तितर-बितर करने के लिए दोनों राज्यों की पुलिस टीमें मौके पर पहुंचीं. इस दौरान हुई हाथापाई में एक डिप्टी एसपी घायल हो गए.

उल्लेखनीय है कि मेघालय 1972 में असम से अलग करके राज्य बनाया गया था. दोनों राज्यों के बीच समस्या तब शुरू हुई जब मेघालय ने 1971 के असम पुनर्गठन अधिनियम को चुनौती दी, जिसने मिकिर हिल्स या वर्तमान कार्बी आंगलोंग क्षेत्र के ब्लॉक एक और दो को असम को दे दिया.

मेघालय का तर्क है कि ये दोनों ब्लॉक तत्कालीन यूनाइटेड खासी और जयंतिया हिल्स जिले का हिस्सा थे, जब इसे 1835 में अधिसूचित किया गया था. वर्तमान में 733 किलोमीटर असम-मेघालय सीमा पर विवाद के 12 बिंदु हैं.

दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने जुलाई से अब तक दो दौर की बातचीत की है और जटिल सीमा विवादों को चरणबद्ध तरीके से हल करने के लिए दो क्षेत्रीय समितियों का गठन करने का निर्णय लिया गया.

6 अगस्त को गुवाहाटी में हुई पिछली बैठक में असम और मेघालय दोनों सरकारों ने अंतरराज्यीय सीमा विवाद को चरणबद्ध तरीके से सुलझाने का फैसला किया था.

दोनों राज्यों के कैबिनेट मंत्रियों की अध्यक्षता में तीन समितियों का गठन किया जाएगा और 12 विवादित क्षेत्रों में से छह को प्राथमिकता के आधार पर समाधान के लिए चिह्नित किया गया है.

असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा और मेघालय के उनके समकक्ष कोनराड संगमा ने कहा था कि दोनों राज्यों ने कैबिनेट मंत्रियों की अध्यक्षता में प्रत्येक पक्ष से तीन समितियां बनाने का फैसला किया है. समितियां छह चिह्नित स्थानों का दौरा करेंगी और 30 दिनों के भीतर रिपोर्ट सौंपेंगी.

पहले चरण में छह स्थानों- ताराबारी, गिज़ांग, फहाला, बकलापारा, खानापारा (पिलिंगकाटा) और रातचेरा में मतभेदों को हल करने के लिए कदम उठाए जाएंगे. ये क्षेत्र असम के कछार, कामरूप और कामरूप मेट्रोपॉलिटन जिलों और मेघालय के पश्चिम खासी हिल्स, री-भोई और पूर्वी जयंतिया हिल्स के अंतर्गत आते हैं.

दोनों राज्यों ने छह चिह्नित क्षेत्रों में मतभेदों को दूर करने के लिए संयुक्त रूप से काम करना शुरू करने के लिए तीन पांच सदस्यीय क्षेत्रीय समितियों का गठन करने का फैसला किया है.

इनमें से प्रत्येक समिति का नेतृत्व संबंधित राज्यों के कैबिनेट मंत्री करेंगे और यदि आवश्यक हो तो इसमें नौकरशाह और स्थानीय प्रतिनिधि भी शामिल होंगे.

बता दें कि इससे पहले बीते 26 जुलाई को असम कछार जिले के लैलापुर और मिजोरम के कोलासिब जिले के वैरेंग्टे गांव जो दोनों राज्यों की सीमा पर पड़ते हैं, में पुलिस बलों के बीच खूनी संघर्ष हुआ था, जिसमें असम पुलिस के छह पुलिसकर्मी और एक निवासी की मौत हो गई थी. जबकि 50 से अधिक अन्य घायल हो गए थे.

अरुणाचल प्रदेश: केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा- राज्य में नहीं रहेंगे चकमा-हाजोंग, आपसू का समर्थन

किरेन रिजिजू. (फोटो: पीटीआई)

बीते दिनों जन आशीर्वाद यात्रा के दौरान राज्य के तीन दिवसीय दौरे पर आए केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि अरुणाचल में रहने वाले सभी ‘विदेशियों’ को राज्य छोड़ना होगा और ‘कोई भी इसमें दखल नहीं दे सकता.’ भले ही नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) अरुणाचल पर लागू नहीं है, पर कानून मंत्री ने इसका हवाला देते हुए कहा कि ‘मूल आदिवासी लोगों को छोड़कर, किसी भी विदेशी को एसटी (अनुसूचित जनजाति) का दर्जा (अरुणाचल में) प्राप्त नहीं हो सकता है.’

उन्होंने कहा कि सीएए मूल निवासियों की पहचान, संस्कृति और अधिकारों की रक्षा करेगा और कोई भी इसे रोक नहीं सकता.’

इसके बाद चकमा संगठनों ने इस बयान की आलोचना की और चकमा डेवलपमेंट फाउंडेशन ऑफ इंडिया (सीडीएफआई) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत को पत्र लिखकर उनके समुदाय की ओर से रोष जताया है.

उल्लेखनीय है कि चकमा-हाजोंग उत्तर पूर्वी राज्यों में अपनी सुरक्षा के लिए भाजपा का समर्थन करते रहे हैं. मूल रूप से पूर्वी पाकिस्तान में चटगांव हिल ट्रैक्ट्स (सीएचटी) के निवासी चकमा बौद्ध हैं. उसी क्षेत्र, जो अब बांग्लादेश में हैं, से आने वाले हाजोंग हिंदू हैं. चकमा-हाजोंग असम सहित कई पूर्वोत्तर राज्यों में फैले हुए हैं.

इसके बाद ऑल अरुणाचल प्रदेश स्टूडेंट्स यूनियन (आपसू) ने बुधवार को कहा कि राज्य के लोग अब चकमा और हजोंग शरणार्थियों को स्वीकार नहीं करेंगे, जो 1960 के दशक में तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान से भारत आए थे. आपसू ने कहा कि अब उन्हें एक इंच जमीन नहीं दी जाएगी.

चकमा संगठन ने हाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर उस प्रस्ताव को खारिज कर दिया था जिसमें उन्हें अरुणाचल प्रदेश से दूसरे राज्यों में बसाने की बात की गई थी. इस पर प्रतिक्रिया देते हुए आपसू नेताओं ने संवाददाता सम्मेलन में कहा कि सरकार राज्य के मूल निवासियों के अधिकारों के खिलाफ फैसला नहीं कर सकती है.

राज्य विधानसभा में सरकार द्वारा पिछले साल दी गई जानकारी में कहा गया कि वर्ष 2015-16 में किए गए विशेष सर्वेक्षण के मुताबिक राज्य में चकमा और हजोंग समुदाय के लोगों की संख्या 65,875 है. दोनों जनजातियों के लोग मुख्य रूप से चांगलांग, नामसई और पापुम पारे जिले में रह रहे हैं.

आपसू के महासचिव दाई टोबोम ने कहा, ‘यूनियन चकमा और हजोंग को बसाने के खिलाफ है क्योंकि इससे इन जिलों में खतरनाक तरीके से जनसंख्यिकी बदलाव होगा.’ उन्होंने दावा किया कि इन दोनों जनजातियों का मूल जनजातियों के प्रति आक्रामक रवैया है.

उन्होंने कहा, ‘शरणार्थी दशकों पुरानी समस्या का सर्वमान्य समाधान चाहते थे. अब कह रहे हैं कि वे अरुणाचल प्रदेश से नहीं जाएंगे जिसे लोग कभी स्वीकार नहीं करेंगे.’

आपसू ने दावा किया कि चकमा और हजोंग समुदाय के दिल्ली में रह नेताओं को अरुणाचल प्रदेश की जमीनी हालात की जानकारी नहीं है. साथ ही कहा कि उन्हें शरणार्थियों का समर्थन करने से बचना चाहिए.

मिजोरम: बिजली की दरों में 20 प्रतिशत बढ़ोतरी के विरोध में प्रदर्शन, मंत्री के इस्तीफे की मांग 

मिजोरम की राजधानी आइजोल में कांग्रेस की युवा इकाई के कार्यकर्ताओं ने मंगलवार को बिजली की दरों में बढ़ोतरी के विरोध में प्रदर्शन किया और राज्य के बिजली मंत्री आर लालजिरलिआना के इस्तीफे की मांग की.

मंगलवार को आइजॉल के ‘वनापा हॉल’ के बाहर प्रदर्शन की अगुवाई कर रहे  युवा कांग्रेस की राज्य इकाई के अध्यक्ष लालमलसवमा नगहाका ने सरकार पर बिजली की दरों में बढ़ोतरी करके और फर्जी बिल जारी करके जनता को लूटने का आरोप लगाया.

उन्होंने कहा, ‘बिजली मंत्री को बढ़ी दरों और फर्जी बिलों की जिम्मेदारी लेनी चाहिए और विभाग को प्रभावी रूप से संचालित करने में नाकाम रहने के लिए उन्हें पद से इस्तीफा देना चाहिए.’

नगहाका ने कहा कि सरकार ने बिजली की दरों में 20.7 प्रतिशत की बढ़ोतरी की है,जो अप्रैल माह से प्रभावी हो गई है और यह बढ़ोतरी ऐसे वक्त में की गई है जब लोग पहले ही कोरोना वायरस संक्रमण के कारण मुश्किलों का सामना कर रहे हैं.

कांग्रेस नेता ने दावा किया कि अगस्त में जारी बिजली के बिल बहुत अधिक हैं और कुछ गरीब परिवार जो बहुत कम यूनिट खर्च करते हैं उनसे उपभोग शुल्क जमा कराने के लिए कहा गया है. ये शुल्क दस हजार से ले कर एक लाख रुपए के बीच हैं.

इस बीच राज्य बिजली इंजीनियर इन चीफ लालदुहजुआलो साइलो ने बिजली के बिलों में किसी प्रकार की खामी होने से इनकार किया है.

उन्होंने कहा, ‘यद्यपि लॉकडाउन के कारण मीटर की रीडिंग नहीं ली गई, लेकिन बिल तैयार कर लिए गए, साथ ही उपभोग शुल्क की गणना पूर्व के बिलों के कुल शुल्क के औसत आधार पर की गई.’

उन्होंने कहा कि बिजली के बिल अधिक हैं क्योंकि ये तीन माह-अप्रैल से जून तक के हैं.

असम: मुख्यमंत्री जो कुछ सपने में देखते हैं, वो बिना चर्चा-प्रक्रिया के क़ानून बन जाता है- अखिल गोगोई

अखिल गोगोई (फोटो: पीटीआई)

असम में हिमंत बिस्वा शर्मा सरकार पर निशाना साधते हुए निर्दलीय विधायक अखिल गोगोई ने शुक्रवार को दावा किया कि राज्य में ‘राजनीतिक अराजकतावाद’ बढ़ रहा है और मुख्यमंत्री की बात ही एकमात्र कानून बन गया है.

उन्होंने संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए, मई के बाद से पुलिस मुठभेड़ों की बढ़ती संख्या पर निराशा व्यक्त की और कहा कि पूर्वोत्तर राज्य में अब संविधान का पालन नहीं किया जाता.

उन्होंने कहा, ‘अगर मुख्यमंत्री कोई सपना देखते हैं, तो अगले दिन कैबिनेट की बैठक बुलाई जाती है और उन्होंने सपने में जो कुछ देखा, वह बिना किसी चर्चा या प्रक्रिया के कानून बन जाता है. मुख्यमंत्री जो कुछ भी कहते हैं वह यहां कानून बन जाता है.’

रायजोर दल के प्रमुख गोगोई ने आरोप लगाया, ‘आजादी के बाद से असम के राजनीतिक इतिहास में ऐसी स्थिति कभी नहीं आई. राज्य में पूरी तरह से राजनीतिक अराजकता है. मैंने पढ़ा है कि शर्मा के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद से 56 मुठभेड़ हुई हैं.’

अखिल गोगोई राज्य सरकार पर बीते कुछ समय से निशाना साधते रहे हैं. 13 अगस्त को गो-संरक्षण विधेयक पास होने के बाद उन्होंने मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा के बारे में कहा था कि उन्हें राज्य के इतिहास में ‘सबसे अधिक सांप्रदायिक और फूट डालने वाले मुख्यमंत्री’ के तौर पर याद किया जाएगा.

शुक्रवार को गोगोई ने राज्य में भाजपा को हराने के लिए विपक्षी दलों के बीच एकता की आवश्यकता पर भी जोर दिया और कहा कि गेंद कांग्रेस के पाले में है क्योंकि उसे यह तय करना होगा कि वह राज्य में होने वाले उपचुनावों में रायजोर दल के साथ गठबंधन करना चाहती है या नहीं.

उन्होंने कहा, ‘हमने अपने इरादे स्पष्ट कर दिए हैं. अब यह राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस पर निर्भर करता है कि वह यह प्रदर्शित करे कि वे एक बार फिर सच्ची लोकतांत्रिक राजनीति स्थापित कर देशद्रोहियों को हराना चाहते हैं या नहीं.’

उन्होंने कहा, ‘अगर कांग्रेस हमारे साथ थौरा, मरियानी और गोसाईगांव में आम उम्मीदवारों को खड़ा करने में विफल रहती है, तो हम समझेंगे कि यह वास्तव में भाजपा की एक शाखा है.’ बता दें कि असम की पांच विधानसभा सीटों पर इस साल चुनाव होना है.

बाघजान आग: अपने मामले में खुद जज नहीं बन सकती ओआईएल, दोबारा बनेगी समिति- सुप्रीम कोर्ट

जून 2020 में ऑयल इंडिया के कुएं में लगी आग. (फाइल फोटो: पीटीआई)

बीते सोमवार (23 अगस्त) को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि असम के बाघजान तेल कुएं में आग लगने की घटना से एक प्रमुख सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी ऑयल इंडिया लिमिटेड (ओआईएल) द्वारा पर्यावरण को हुए नुकसान का आकलन करने और जरूरी उपाए सुझाने के लिए एक समिति को फिर से गठित किया जाएगा और साथ ही कहा, ‘ऑयल इंडिया अपने मामले में खुद न्यायाधीश नहीं बन सकती.’

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने विधि अधिकारियों- केएम नटराज और अमन लेखी से कहा कि वे विशेषज्ञों के नाम पर याचिकाकर्ताओं द्वारा दिए गए सुझावों पर गौर करें और कहा कि समिति को फिर से गठित किया जाएगा.

गौरतलब है कि मई 2020 में तिनसुकिया ज़िले के बाघजान में ऑयल इंडिया लिमिटेड के एक कुएं में गैस रिसाव के बाद लगी को क़रीब पांच महीने बाद बुझाया जा सका था. राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) द्वारा इसके लिए गठित जांच समिति में कंपनी के प्रबंध निदेशक को शामिल किया गया था, जिस पर हैरानी जताते हुए शीर्ष अदालत ने बीते जुलाई महीने में इस निर्णय पर रोक लगा दी थी.

एनजीटी के 19 फरवरी 2020 के आदेश पर रोक लगाते हुए कहा था कि ओआईएल बाघजान तेल कुएं में आग लगने की घटना का दोषारोपण ठेकेदार पर करके और संबंधित व्यक्तियों की जिम्मेदारी तय करने के लिए छह सदस्यीय नई समिति का गठन करके अपनी जिम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड़ सकता.

पीठ ने कहा, ‘हम समिति का फिर से गठन करेंगे और इसकी अध्यक्षता जस्टिस बीपी कटाके करेंगे. ऑयल इंडिया अपने ही मामले में न्यायाधीश नहीं हो सकती है. हम ऑयल इंडिया के प्रतिनिधियों के नाम हटा देंगे और इसके बजाय कुछ विशेषज्ञों को शामिल करेंगे, जो नुकसान का आकलन करने और पर्यावरण को हुए नुकसान के कारण उचित मुआवजा देने के काम से जुड़े होंगे, जिसमें ओआईएल के तेल क्षेत्र में हुए विस्फोट के कारण जैव विविधता की हानि भी शामिल है.’

याचिकाकर्ता कार्यकर्ता बोनानी कक्कड़ की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ मित्रा ने कहा कि जिन छह विशेषज्ञों का सुझाव दिया गया है, उनमें से चार राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) द्वारा गठित समिति के काम से जुड़े होने के कारण इस विषय से अच्छी तरह परिचित हैं.

सुनवाई के दौरान पीठ ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अमन लेखी से कहा कि ऑयल इंडिया का एक प्रतिनिधि नुकसान का आकलन करने के लिए गठित समिति में कैसे हो सकता है, जबकि नुकसान का आरोप खुद सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम (पीएसयू) पर है.

गौरतलब है कि 27 मई, 2020 को राजधानी गुवाहाटी से करीब 450 किलोमीटर दूर तिनसुकिया जिले के बाघजान गांव में ऑयल इंडिया लिमिटेड के पांच नंबर तेल के कुएं में विस्फोट (ब्लोआउट) हो गया था, जिसके बाद इस कुएं से अनियंत्रित तरीके से गैस रिसाव शुरू हुआ था.

ब्लोआउट वह स्थिति होती है, जब तेल और गैस क्षेत्र में कुएं के अंदर दबाव अधिक हो जाता है और उसमें अचानक से विस्फोट के साथ और कच्चा तेल या प्राकृतिक गैस अनियंत्रित तरीके से बाहर आने लगते हैं. कुएं के अंदर दबाव बनाए रखने वाली प्रणाली के सही से काम न करने से ऐसा होता है.

इसके बाद नौ जून 2020 को यहां भीषण आग लग गई, जिसमें दो दमकलकर्मियों की मौत हो गई थी. करीब पांच महीने बाद नवंबर में ऑयल इंडिया के कुएं की आग को पूरी तरह बुझाया जा सका था.

एनजीटी अध्यक्ष एके गोयल के नेतृत्व वाली पीठ ने अपने आदेश में कहा था कि प्रथमदृष्टया वह सहमत है कि सुरक्षा एहतियात बरतने में ओआईएल नाकाम रही और यह सुनिश्चित किए जाने की जरूरत है कि दोबारा ऐसी घटनाएं न हों.

पीठ ने कहा था कि यह समिति स्थिति की समीक्षा करेगी और घटना में संबंधित लोगों की नाकामियों के लिए जिम्मेदारी तय करने समेत समाधान के लिए उपयुक्त कदम का निर्देश देगी.

एनजीटी ने 24 जून 2020 को मामले पर गौर करने और एक रिपोर्ट सौंपने के लिए उच्च न्यायालय के पूर्व जस्टिस बीपी कटाके की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था.

घटना के बाद एनजीटी ने इस आग पर काबू पाने में असफल रहने पर ऑयल इंडिया पर 25 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया था. अधिकरण का कहना था कि कुएं में लगी आग से पर्यावरण को बहुत नुकसान हो रहा है.

शुरुआत में कुएं में आग लगने की घटना के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने इस घटना की उच्च स्तरीय जांच के आदेश भी दिए थे.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)