महाराष्ट्र: राज्य सरकार ने कोर्ट से कहा- आईपीएस अधिकारी परमबीर सिंह का पता नहीं चल पाया

03:53 PM Oct 21, 2021 | द वायर स्टाफ

बॉम्बे हाईकोर्ट परमबीर सिंह की उस याचिका पर सुनवाई कर रहा था जिसमें पुलिस निरीक्षक भीमराव घाडगे की एक शिकायत पर उनके ख़िलाफ़ एससी-एसटी एक्ट समेत विभिन्न धाराओं के तहत दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने का अनुरोध किया गया है. राज्य सरकार ने सुनवाई में कहा कि परिस्थितियों को देखते हुए अब वह अपने आश्वासन पर क़ायम नहीं रहना चाहती कि सिंह के ख़िलाफ़ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी.

मुंबई पुलिस के पूर्व आयुक्त परमबीर सिंह. (फाइल फोटो: पीटीआई)

मुंबई: महाराष्ट्र सरकार ने बुधवार को बंबई उच्च न्यायालय में कहा कि मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह का पता नहीं चल पाया है.

इसके साथ ही सरकार ने कहा कि भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) अधिकारी का पता नहीं चल रहा है, इसलिए वह अपने आश्वासन पर कायम नहीं रहना चाहती कि उत्पीड़न कानून संबंधी एक मामले में उनके खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई (जैसे गिरफ्तारी) नहीं की जाएगी.

राज्य सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता डेरियस खंबाटा ने जस्टिस नितिन जामदार और जस्टिस सारंग कोतवाल की खंडपीठ से कहा कि अब परिस्थितियां बदल गई हैं.

खंबाटा ने कहा, ‘उनका पता नहीं चल पा रहा है. इन परिस्थितियों में हम अपने पहले के बयान पर कायम नहीं रहना चाहते हैं, जब सरकार ने कहा था कि वह उनके खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं करेगी.’

परमबीर सिंह की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता महेश जेठमलानी ने कहा कि उन्हें अभी तक भगोड़ा नहीं घोषित किया गया है. जेठमलानी ने कहा, ‘इस मामले में उन्हें दो बार समन जारी किया गया और दोनों बार उन्होंने जवाब दिया.’

उल्लेखनीय है कि इस महीने की शुरुआत में मुंबई पुलिस के पूर्व आयुक्त के देश छोड़कर फरार होने की खबरों के बीच उनके खिलाफ लुकआउट नोटिस जारी किया गया था.

सिंह के अपने घर पर नहीं पाए जाने और केंद्र और राज्य की एजेंसियों द्वारा कई बार समन दिए जाने के बावजूद पेश न होने के बाद यह नोटिस जारी किया गया था. उस समय ऐसी अपुष्ट ख़बरें सामने आई थीं कि गिरफ़्तारी से डर से सिंह देश छोड़कर भाग गए हैं.

बुधवार को उच्च न्यायालय इन वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी की उस याचिका पर सुनवाई कर रहा था जिसमें पुलिस निरीक्षक भीमराव घाडगे की एक शिकायत पर उनके खिलाफ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) कानून तथा भादंसं की विभिन्न धाराओं के तहत दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने का अनुरोध किया गया है. अदालत ने सुनवाई अगले सप्ताह के लिए स्थगित कर दी.

समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, वर्तमान में अकोला जिले में तैनात घाडगे ने परमबीर सिंह और कुछ अन्य अधिकारियों के खिलाफ सिंह के ठाणे के पुलिस आयुक्त रहने के दौरान भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं.

घडगे ने दावा किया कि सिंह ने उन पर एक मामले से कुछ लोगों के नाम हटाने के लिए दबाव डाला और जब उन्होंने इनकार किया तो उनके खिलाफ झूठे मामले तैयार किए गए.

उनकी प्राथमिकी अत्याचार अधिनियम के तहत दर्ज की गई थी क्योंकि शिकायतकर्ता एक अनुसूचित जाति से आते हैं, साथ ही सिंह पर जबरन वसूली और कुछ अपराधों की धाराएं भी लगाई गई हैं.

उधर, सिंह के वकील ने दावा किया कि यह एफआईआर महाराष्ट्र के पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख के खिलाफ सिंह के भ्रष्टाचार के आरोपों पर आई प्रतिक्रिया थी.

परमबीर सिंह पर ठाणे और मुंबई में कम से कम चार जबरन वसूली के मामले भी चल रहे हैं.

गौरतलब है कि इस साल मार्च महीने में मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह ने राज्य के पूर्व गृहमंत्री अनिल देशमुख के खिलाफ रिश्वत के आरोप लगाए थे और अदालत ने जांच एजेंसी को इन आरोपों की जांच करने का निर्देश दिया था.

देशमुख ने इन आरोपों के बाद अप्रैल में अपने पद से इस्तीफा दे दिया था. उन्होंने इन आरोपों को खारिज किया था.

उद्योगपति मुकेश अंबानी के आवास के बाहर एक एसयूवी से विस्फोटक सामग्री मिलने के मामले की जांच के दौरान सहायक पुलिस निरीक्षक सचिन वझे की भूमिका सामने आने के बाद सिंह को उनके पद से हटा दिया गया था. वझे को भी सेवा से बर्खास्त कर दिया गया.

पुलिस आयुक्त के पद से हटाए जाने के बाद सिंह ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को पत्र लिखकर आरोप लगाया था कि देशमुख ने वझे को मुंबई के बार और रेस्तरां से एक महीने में 100 करोड़ रुपये से अधिक की रकम वसूलने को कहा था.

सिंह ने कहा कि वझे पर अत्यधिक दबाव था और उन्होंने इसकी शिकायत कई बार सिंह से की थी. सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) दोनों इन आरोपों की जांच कर रहे हैं और कई बार देशमुख को पूछताछ के लिए तलब भी किया जा चुका है.

वहीं, देशमुख ने इन जांच के खिलाफ अदालत का रुख किया था और इसे राजनीतिक प्रतिशोध करार दिया था. राज्य सरकार ने सिंह द्वारा लगाए गए आरोपों की जांच के लिए सेवानिवृत्त जज केयू चांदीवाल की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया था.

इस आयोग ने कई बार सिंह को तलब किया और यहां तक कि एक बार सिंह के खिलाफ जमानती वारंट भी जारी किया गया लेकिन सिंह आयोग के समक्ष पेश नहीं हुए.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)