असम: हाईकोर्ट ने फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल के आदेश को किया ख़ारिज, कहा- नागरिकता महत्वपूर्ण अधिकार है

08:12 PM Sep 14, 2021 | द वायर स्टाफ

ये मामला असम के मोरीगांव ज़िले के मोइराबारी निवासी असोरुद्दीन से जुड़ा हुआ है, जिन्हें अपनी नागरिकता साबित करने के लिए फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल में बुलाया गया था, लेकिन वह उपस्थित नहीं हो सके थे और ट्रिब्यूनल ने उनका पक्ष जाने बिना ही उन्हें विदेशी घोषित कर दिया था.

(फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: गुवाहाटी हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल (एफटी) के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें सुनवाई के दौरान मोरीगांव निवासी के अनुपस्थिति में उन्हें विदेशी ठहरा दिया गया था.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक मोरीगांव जिले के मोइराबारी निवासी असोरुद्दीन द्वारा दायर एक याचिका पर एक आदेश पारित करते हुए जस्टिस मनीष चौधरी और जस्टिस एन. कोटिस्वर सिंह की खंडपीठ ने कहा कि नागरिकता ‘व्यक्ति का महत्वपूर्ण अधिकार’ होता है और इसे संबंधित व्यक्ति द्वारा पेश किए गए साक्ष्यों को संज्ञान में लेते हुए ‘मेरिट के आधार’ पर तय किया जाना चाहिए.

कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता ने बताया है कि उनका नाम, उनके दादा-दादी, माता-पिता के साथ, साल 1965, 1970 और 1971 की मतदाता सूची में शामिल है, जो असम के नगांव जिले के सहरिआपम गांव के रहने वाले हैं. आदेश में कहा गया है, ‘तदनुसार यह साबित करने के लिए पर्याप्त दस्तावेज और सबूत हैं कि वह एक भारतीय नागरिक हैं.’

हालांकि कोर्ट ने आदेश को नहीं पलटा, बल्कि मामले को वापस फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल में भेज दिया. न्यायालय ने कहा कि इसमें कुछ ऐसी तथ्यात्मक चीजें हैं, जिस पर इस कोर्ट नहीं, बल्कि ट्रिब्यूनल द्वारा विचार किया जाना चाहिए.

उन्होंने याचिकाकर्ता को फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल, मोरीगांव में 8 नवंबर को या उससे पहले पेश होने का निर्देश दिया.

असोरुद्दीन के वकील एमए शेख ने दलील दी कि वह अपनी सुनवाई के लिए उपस्थित नहीं हो सके, क्योंकि वह ‘बहुत गरीब’ हैं और ‘आसानी से संबंधित दस्तावेज एकत्र नहीं कर सकते हैं.’

शेख ने कहा, ‘न तो उनका वकील के साथ संवाद हो सका और न ही उनके वकील ने उन्हें ट्रिब्यूनल द्वारा तय की गई तारीखों के बारे में बताया था. इसके अलावा यह प्रस्तुत किया गया है कि याचिकाकर्ता को अपनी आजीविका कमाने के लिए असम छोड़कर केरल जाना पड़ा.’

उन्होंने कहा कि असोरुद्दीन के दस्तावेजों की उचित जांच के बिना उन्हें डी-वोटर या संदिग्ध मतदाता घोषित कर दिया गया था. वकील ने यह भी बताया कि 12 फरवरी, 2010 को ट्रिब्यूनल से नोटिस प्राप्त करने पर असोरुद्दीन इसके सामने पेश हुए थे ‘क्योंकि उनका कार्यवाही से बचने का कोई इरादा नहीं था.’

फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल की ओर से पेश हुए वकील ने असोरुद्दीन की याचिका पर आपत्ति जताते हुए कहा कि इस पर विचार नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि वह कार्यवाही के दौरान अनुपस्थित थे.

हालांकि न्यायाधीशों ने कहा कि उन्होंने असोरुद्दीन की परिस्थितियों को ध्यान में रखा है और ट्रिब्यूनल के समक्ष पेश नहीं होने के उनके पास ‘पर्याप्त कारण’ थे.

आदेश में कहा गया है, ‘हम याचिकाकर्ता को फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल के सामने पेश होने का एक और मौका देने के इच्छुक हैं, ताकि यह साबित हो सके कि वह एक भारतीय हैं, विदेशी नहीं.’

आदेश में कहा गया है कि असोरुद्दीन कार्यवाही के दौरान जमानत पर रहेंगे और उन्हें नौ सितंबर से 15 दिनों के भीतर एसपी (सीमा), मोरीगांव के सामने 5,000 रुपये के जमानत बांड के साथ पेश होना होगा.