अमेज़ॉन पर हमला और राष्ट्रीय मौद्रिकरण पर चुप्पी संघ परिवार के अंतर्विरोध को उजागर करती है

अगर महज़ दो फीसदी बाज़ार हिस्सेदारी वाले अमेज़ॉन को ईस्ट इंडिया कंपनी 2.0 कहा जा सकता है, तो फिर केंद्र सरकार को क्या कहा जाए जो एक तरफ सरकारी एकाधिकार रहे जनरल इंश्योरेंस कॉरपोरेशन और लाइफ इंश्योरेंस कॉरपोरेशन की बिक्री के लिए विदेशी पूंजी को दावत दे रही है, दूसरी तरफ ऊर्जा और रेलवे जैसे रणनीतिक क्षेत्र में थोक भाव से निजीकरण को बढ़ावा दे रही है?

अगर महज़ दो फीसदी बाज़ार हिस्सेदारी वाले अमेज़ॉन को ईस्ट इंडिया कंपनी 2.0 कहा जा सकता है, तो फिर केंद्र सरकार को क्या कहा जाए जो एक तरफ सरकारी एकाधिकार रहे जनरल इंश्योरेंस कॉरपोरेशन और लाइफ इंश्योरेंस कॉरपोरेशन की बिक्री के लिए विदेशी पूंजी को दावत दे रही है, दूसरी तरफ ऊर्जा और रेलवे जैसे रणनीतिक क्षेत्र में थोक भाव से निजीकरण को बढ़ावा दे रही है?

वॉलमार्ट के ख़िलाफ़ स्वदेशी जागरण मंच का प्रदर्शन. (फाइल फोटो: पीटीआई)

भारतीय दिग्गज आईटी कंपनी इंफोसिस पर भारत के हितों के खिलाफ काम करने का आरोप लगाने के बाद भारतीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के मुखपत्र पांचजन्य ने अमेजॉन को ईस्ट इंडिया कंपनी 2.0 करार दिया है जिसका इरादा भारत के खुदरा बाजार पर एकाधिकार कायम करने का है और उसके कदम भारत के नागरिकों के आर्थिक, राजनीतिक और व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर कब्जा जमाने वाले हैं.’ आरोप है कि अमेजॉन ने भारत में अपना कारोबार बढ़ाने के लिए 1.2 अरब अमेरिकी डॉलर कानूनी फीस या कथित घूस के तौर पर खर्च किए. अमेरिकी अधिकारी इसकी जांच कर रहे हैं.

संघ से संबद्ध स्वदेशी जागरण मंच ने भी यह कहा है कि अमेजॉन जैसी ई-कॉमर्स दिग्गज कंपनियां छोटे कारोबारियों और किराना दुकानों को नुकसान पहुंचाएंगीं. लेकिन हकीकत यह है कि रिलायंस और टाटा भी इस क्षेत्र मे सक्रिय हैं (जियो मार्ट और बिग बास्केट) टाटा भारत में एक बड़े ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म के निर्माण के लिए वॉलमार्ट के साथ हाथ मिलाने के लिए प्रयासरत है.

अगर किराना दुकानों को अमेजॉन से नुकसान पहुंचेगा तो जियो मार्ट, बिग बास्केट और टाटा वालमार्ट से भी इन्हें नुकसान पहुंचेगा. सिर्फ अमेजॉन पर निशाना साधकर संघ परिवार से संबंधित पांजजन्य और स्वदेशी जागरण मंच परोक्ष तौर पर घरेलू कारोबारी एकाधिकारवादी कंपनियों के ई-कॉमर्स परियोजनाओं की मदद कर रहा है. इससे छोटे किराना दुकानों को बचाया नहीं जा सकेगा, जिसकी रक्षा करने का दावा संघ परिवार कर रहा है.

संघ परिवार के ढांचे के भीतर जिस तरह से इस मुद्दे उठाया गया है, उसमें एक नीतिगत अंतर्विरोध साफ झलकता है. इनमें से कुछ सेवा क्षेत्र में व्यापार और निवेश की आपसदारी के डब्ल्यूटीओ नियमों पर संभवतः खरे नहीं उतर पाएंगे. ये चीन, जिसके ई-कॉमर्स निवेश से भारत किनारा कर रहा है, के जवाब में विकसित हो रहे भारत-अमेरिका द्विपक्षीय आर्थिक साझेदारी के भी खिलाफ जा सकता है.

मोदी सरकार ने आधिकारिक तौर पर अमेजॉन, जियो मार्ट और टाटा को एक विनियामक तंत्र के भीतर काम करने की इजाजत दी है. यह विनियामक तंत्र इस क्षेत्र में हो रहे भारी विकास, जिसकी गति महामारी के कारण और बढ़ गई है, के जवाब में तेजी से विकसित हो रहा है. ई-कॉमर्स क्षेत्र, इसके व्यवस्थित विकास के लिए लाए गए नये नियमों के कारण एक नये संतुलन को हासिल कर रहा है.

भारतीय खुदरा बाजार वर्तमान में करीब 800 अरब अमेरिकी डॉलर का है और ई-कॉमर्स की इसमें हिस्सेदारी महज 5-6 फीसदी की है. इसका मतलब है कि फ्लिपकार्ट, अमेजॉन, जियो मार्ट, बिग बास्केट और छोटी कंपनियों द्वारा सालाना 40-50 अरब डॉलर की बिक्री की जाती है. डिजिटल बिजनेस को दिये जा रहे बढ़ावे के कारण ई-कॉमर्स कारोबार 2050 तक बढ़कर तिगुना हो सकता है.

राजनीतिक अर्थशास्त्र के नजरिए से देखें तो इससे छोटे परचून और किराना दुकानों के नुकसान पहुंचेगा और उन्हें कुछ नया सोचना होगा. यह प्रक्रिया दूसरे देशों में घट चुकी है, जहां ई-कॉमर्स और वॉलमार्ट जैसे सुपर स्टोरों ने प्रमुखता हासिल कर ली है.

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि ई-कॉमर्स को बढ़ावा देने के लिए लिए गए नीतिगत निर्णय व्यापक प्रभाव वाले होते हैं. संघ परिवार के संगठनों का सिर्फ एक कंपनी अमेजॉन के खिलाफ विरोध का झंडा उठाना न सिर्फ पाखंडपूर्ण है, बल्कि यह असली मसलों से ध्यान भटकाने वाला भी है.

अगर सिर्फ 2 फीसदी बाजार हिस्सेदारी वाले अमेजॉन को ईस्ट इंडिया कंपनी 2.0 कहा जा सकता है, तो फिर केंद्र सरकार को क्या कहा जाएगा जो एक तरफ तो अभी तक सरकारी एकाधिकार रहे जनरल इंश्योरेंस कॉरपोरेशन और लाइफ इंश्योरेंस कॉरपोरेशन की बिक्री के लिए विदेशी पूंजी को दावत दे रही है, वहीं दूसरी तरफ ऊर्जा और रेलवे जैसे रणनीतिक क्षेत्र में थोक भाव से निजीकरण को बढ़ावा दे रही है? यह वास्तव में ईस्ट इंडिया कंपनी 2.0 के लिए पलक-पांवड़े बिछाने की तरह है!

लेकिन आरएसएस और इससे संबद्ध संगठनों ने बीमा क्षेत्र में बड़े पैमाने के विनिवेश पर पूरी चुप्पी ओढ़ ली है, जबकि यह हमेशा से इसके पूरी तरह से खिलाफ रहे हैं.

यह एक दृढ़ मान्यता थी कि भारतीय निवेश को किसी भी कीमत पर विदेशी कंपनियों के हवाले नहीं किया जा सकता है. यूपीए-1 के कार्यकाल के दौरान भाजपा के पिछली पंक्ति में बैठने वाले नेताओं ने संसद में उनके नेता जसवंत सिंह की बात न मानते हुए बीमा क्षेत्र में विदेशी निवेश की सीमा में एक छोटी-सी बढ़ोतरी के प्रस्ताव के खिलाफ वोट किया था.

सिंह ने तत्कालीन वित्त मंत्री पी. चिदंबरम को कानून में संशोधन में मदद करने का आश्वासन दिया था, लेकिन भाजपा ने बीमा कंपनियों में विनिवेश की राह खोलने वाले विधेयक को बगैर किसी चर्चा के पास करा दिया!

संघ परिवार के संगठनों को यह समझना चाहिए कि मोदी सरकार द्वारा रणनीतिक तौर पर सबसे अहम परिसंपत्तियों को बेचने की कोशिशों के बीच ईस्ट इंडिया कंपनी 2.0 के बड़े बोल की विश्वसनीयता शून्य है. दो नावों की सवारी करने की भी अपनी सीमा है.

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