पिता जीवित हों या नहीं, संपत्ति में बेटी को भी हिस्सेदार माना जाएगा: सुप्रीम कोर्ट

हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 के ज़रिये पिता की संपत्ति में बेटी को बराबर का हिस्सा देने का अधिकार दिया गया था. हालांकि इसे लेकर एक विवाद यह था कि यदि पिता का निधन साल 2005 के पहले हो गया है तो यह क़ानून बेटियों पर लागू होगा या नहीं. इसे लेकर कई याचिकाएं दायर की गई थीं. The post पिता जीवित हों या नहीं, संपत्ति में बेटी को भी हिस्सेदार माना जाएगा: सुप्रीम कोर्ट appeared first on The Wire - Hindi.

हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 के ज़रिये पिता की संपत्ति में बेटी को बराबर का हिस्सा देने का अधिकार दिया गया था. हालांकि इसे लेकर एक विवाद यह था कि यदि पिता का निधन साल 2005 के पहले हो गया है तो यह क़ानून बेटियों पर लागू होगा या नहीं. इसे लेकर कई याचिकाएं दायर की गई थीं.

New Delhi: A view of the Supreme Court of India in New Delhi, Monday, Nov 12, 2018. (PTI Photo/ Manvender Vashist) (PTI11_12_2018_000066B)

सुप्रीम कोर्ट. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को दिए अपने एक बेहद महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि एक बेटी को अपने पिता की संपत्ति में बराबर का अधिकार है.

शीर्ष अदालत ने कहा कि हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम 2005 के तहत बेटियों को ये अधिकार प्राप्त है और इससे कोई मतलब नहीं है कि इस कानून के संशोधन के समय लड़की के पिता जिंदा थे या नहीं.

लाइव लॉ के मुताबिक, तीन जजों की पीठ ने माना कि यह संशोधन कानून 09/09/2005 को जीवित सभी बेटियों पर लागू है और इससे कोई मतलब नहीं कि बेटी कब पैदा हुई है.

मालूम हो कि साल 2005 में इस कानून में संशोधन कर पिता की संपत्ति में बेटा और बेटी को बराबर का हिस्सा देने का अधिकार दिया गया था. हालांकि इसे लेकर एक विवाद यह था कि यदि पिता की मृत्यु 2005 के पहले हो गई तो क्या ये कानून बेटियों पर लागू होगा या नहीं.

इस संबंध में कई याचिकाएं दायर की गई थीं, जिस पर जस्टिस अरुण मिश्रा की अगुवाई वाली पीठ ने ये फैसला दिया है.

मिश्रा ने फैसला पढ़ते हुए कहा, ‘बेटी को अवश्य ही बेटों के बराबर अधिकार दिया जाना चाहिए, बेटी उम्र भर बेटी ही रहती है. पिता जीवित हों या नहीं, बेटी को हिस्सेदार माना जाएगा.’

दिल्ली हाईकोर्ट ने हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा 6 की व्याख्या के संबंध में विचार-विमर्श किया था और साल 2005 के हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम को लेकर सुप्रीम कोर्ट के दो विपरीत फैसलों का मुद्दा उठाया था.

इसके बाद मामले को सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों के पास भेजा गया था. पीठ ने आगे निर्देश दिया कि इस मुद्दे पर ट्रायल कोर्ट में लंबित मामलों का छह महीने में फैसला किया जाए.

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