उत्तर प्रदेश: सफ़र की तकलीफों के बाद क्वारंटाइन सेंटर की बदहाल व्यवस्थाओं से बेहाल मज़दूर

देश के विभिन्न शहरों से तमाम परेशानियों के बाद अपने गांव पहुंचे मज़दूरों को गांव के स्कूलों में बनाए गए क्वारंटाइन सेंटरों में रखा गया है. अधिकांश स्कूलों में बिजली, पानी, शौचालय आदि से जुड़ी अव्यवस्थाओं के चलते मज़दूरों का यह 'एकांतवास' नए संघर्ष में बदल गया है. The post उत्तर प्रदेश: सफ़र की तकलीफों के बाद क्वारंटाइन सेंटर की बदहाल व्यवस्थाओं से बेहाल मज़दूर appeared first on The Wire - Hindi.

देश के विभिन्न शहरों से तमाम परेशानियों के बाद अपने गांव पहुंचे मज़दूरों को गांव के स्कूलों में बनाए गए क्वारंटाइन सेंटरों में रखा गया है. अधिकांश स्कूलों में बिजली, पानी, शौचालय आदि से जुड़ी अव्यवस्थाओं के चलते मज़दूरों का यह ‘एकांतवास’ नए संघर्ष में बदल गया है.

प्राथमिक विद्यालय हाटा (हरसेवकपुर नंबर-2) में सजीवन. (फोटो साभार: सजीवन)

प्राथमिक विद्यालय हाटा (हरसेवकपुर नंबर-2) में सजीवन. (फोटो साभार: सजीवन)

कोरोना महामारी को लेकर 25 मार्च को हुए देशव्यापी लॉकडाउन के बाद अपने गांव लौटे प्रवासी मजदूर अब अपने घर के बजाय गांव के स्कूलों में बने क्वांरटीन सेंटर में हैं.

अधिकतर क्वारंटाइन सेंटरों में कामचलाऊ व्यवस्था है और यहां रूके प्रवासी मजदूरों को अपने घर से आए भोजन-पानी पर निर्भर रहना पड़ रहा है.

ग्रामीण क्षेत्र के स्कूलों के टॉयलेट या तो खराब हैं या प्रयोग करने लायक नहीं है जिसके कारण प्रवासी मजदूरों को बाहर खुले में शौच करने जाना पड़ता है.

गांव में आकर घर-परिवार से दूर इन प्रवासी मजदूरों के लिए उनका मोबाइल फोन एक बड़ा सहारा है जिससे उनका समय कट रहा है.

गोरखपुर मंडल के चार जिलों गोरखपुर, देवरिया, कुशीनगर और महराजगंज के पांच क्वारंटाइन सेंटरों पर रह रहे प्रवासी मजदूरों से बातचीत कर उनका हालचाल जाना.

गोरखपुर के हरसेवकपुर 2 ग्राम पंचायत के हाता प्राथमिक विद्यालय पर दो प्रवासी मजदूर सजीवन और एजाज क्वारंटाइन में हैं.

सजीवन झारखंड के रांची में चार पहिया वाहनों की धुलाई का काम करते थे. वह 20 मार्च को ही अपने गांव से रांची गए थे. लॉकडाउन के कारण पांच दिन तक रांची में ही फंसे रहे.

10 मार्च को उन्हें रांची में एक ट्रक मिला जो वाराणसी आ रहा था, जिससे वे वाराणसी तक आए और वहां से मऊ तक बस से. फिर वहां से 30 मार्च को गोरखपुर पहुंचे.

इस दौरान उनका वाराणसी, मऊ और गोरखपुर के राजघाट में मेडिकल चेकअप हुआ था. उनका गांव गोरखपुर शहर से सटा है. वह हरसेवकपुर के चौहान टोला के रहने वाले हैं.

घर पहुंचकर नहा-धोकर बैठे ही थे कि ग्राम प्रधान का फोन आ गया कि उन्हें प्राईमरी स्कूल हाता में रहना होगा.

यहीं उनके साथ रह रहे एजाज का दिल्ली से गांव तक का सफर उनकी तरह आसान नहीं रहा. बढ़ई का कम् करने वाले एजाज दिल्ली के कीर्तिनगर में रह रहे थे. वह 30 मार्च को कीर्तिनगर से पैदल आनंद विहार को निकले.

पूरे दिन पैदल चलते हुए शाम को सात बजे आनंद विहार पहुंचे, जहां काफी भीड़ थी. दो घंटे तक रुकने के बाद भी उन्हें कोई बस नहीं मिली.

वहां तैनात पुलिसकर्मियों ने बताया कि बस लालकुंआ से मिलेगी, तो वे पैदल ही आनंद बिहार से लालकुंआ चल दिए. चार घंटे पैदल चलने के बाद वह रात एक बजे लालकुंआ पहुंचे, जहां से उन्हें रात ढाई बजे लखनऊ के लिए बस मिली.

इस बस से वह 31 मार्च को गोरखपुर पहुंचे. घर पहुंचकर बैठे ही थे कि प्रधान को फोन आया कि घर नहीं रहना है, प्राइमरी स्कूल पहुंचो.

दोनों प्रवासी मजदूर यहां आए तो जरूरी सुविधाएं उन्हें ही जुटानी पड़ी. स्कूल में बिजली कनेक्शन था लेकिन कोई बल्ब नहीं था. उन्होंने बल्ब लगवाया. चारपायी और मच्छरदानी भी घर से मंगवाई.

दोनों के खाने की व्यवस्था ग्राम पंचायत या प्रशासन की ओर से नहीं है. उनके घर से ही खाना आता है. स्कूल का हैंडपंप ठीक है. टॉयलेट भी ठीक है जिससे नित्य क्रिया में कोई दिक्कत नहीं हो रही है.

§

महराजगंज जिले के निचलौल क्षेत्र के कमता स्थित प्राइमरी स्कूल में 19 प्रवासी मजदूर रह रहे हैं. इसमें 18 मजदूर- सुभान अली, जलालुद्दीन, संदेश, राजीव, दुर्गेश, मिलन कुमार, फिरोज, मंजेश, हसनैन, बबलू, इरफान, अर्जन, एलन, मिंटू, काजू, प्रमोद, नागेश्वर, राहुल रह रहे हैं.

ये सभी एक साथ जयपुर से चलकर 29 मार्च को गांव पहुंचे थे. एक मजदूर जितेंद्र दिल्ली से गांव पहुंचे. एक साथ आने वाले 18 मजदूर जयपुर के एक कारखाने में सिलाई का काम करते थे.

निचलौल क्षेत्र के प्राथमिक विद्यालय कमता में रह रहे प्रवासी मजदूर. (फोटो साभार: मिलन)

निचलौल क्षेत्र के प्राथमिक विद्यालय कमता में रह रहे प्रवासी मजदूर. (फोटो साभार: मिलन कुमार)

12 घंटे के काम के बदले इन्हें 350 रुपये दिहाड़ी मिलती थी, वहां किराये पर घर लेकर रहते थे. ये सभी 20 मार्च को ही जयपुर से निकलना चाहते थे लेकिन कारखानेदार द्वारा मजदूरी का भुगतान नहीं किए जाने के कारण रूके रहे.

उन्हें सात दिन बाद 27 तारीख को मजदूरी मिली. तब तक देशव्यापी लॉकडाउन हो गया था. मजदूरी मिलने के बाद वे तुरंत रवाना हो गए.

मिलन ने बताया कि वे सभी दो किलोमीटर तक पैदल चलते रहे. तभी उन्हें आलू लदा एक ट्रक मिला जो संयोग से गोरखपुर ही जा रहा था. हर मजदूर से दो-दो हजार रुपये किराए की शर्त पर वह सभी को गोरखपुर ले जाने पर राजी हो गया.

इस ट्रक से वे 24 घंटे में गोरखपुर पहुंचे. गोरखपुर से वे फरेंदा, महराजगंज, सिन्दुरिया होते हुए अपने गांव पहुंचे. गांव तक पहुंचने के लिए उन्हें तीन किलोमीटर पैदल चलना पड़ा.


यह भी पढ़ें: लॉकडाउन में पलायन- आठ सौ किलोमीटर, साठ घंटे और दस मज़दूरों का संघर्ष


गांव पहुंचने के बाद उन्हें कमता प्राइमरी स्कूल में पहुंचा दिया गया. यहां उन्हें बिस्तर तो मिल गया लेकिन मच्छरों से बचने के लिए सबको मच्छरदानी का इंतजाम करना पड़ा.

पीने का पानी घर से ही आता है. शुरू के दो दिन यानी 30 और 31 मार्च को स्कूल पर भोजन का प्रबंध नहीं था. घर से ही भोजना आता था. एक अप्रैल से स्कूल पर भोजन बन रहा है.

स्कूल पर भोजन व्यवस्था व अन्य सुविधाओं के लेकर प्रवासी मजदूरों को काफी संघर्ष करना पड़ा. उनकी मांग से गुस्साए प्रधान ने चेतावनी दी कि वह 100 नंबर पर फोन कर पुलिस बुला लेंगे और सबकी पिटाई करवाएगें.

मजदूरों के काफी हल्ला करने पर रोशनी के लिए बल्ब लगे. इस स्कूल में टॉयलेट तो है लेकिन उसमें ताला बंद हैं. मजदूरों की मांग के बावजूद अभी तक उसे खोला नहीं गया है. सभी मजदूरों को खुले में शौच करने जाना पड़ता है.

§

कुशीनगर जिले खड्डा प्राथमिक विद्यालय सूरजपुर में 25 प्रवासी मजदूर रह रहे हैं. यह क्वारंटाइन सेंटर पनियहवा रेलवे स्टेशन के पास है.

इनमें से 18 मजदूर- दिनेश, मनोहर, संदीप, शैलेश, मनीष, जवाहिर, पप्पू, उमेश, अनिल, रोहित, पिंटू, धनंजय, राकेश, अडनानी, आशीष, सबरजीज, पट्टू, राधेश्याम सभी भी जयपुर में सिलाई का काम करते थे. ये एक साथ 31 मार्च को गांव लौटे.

इनका गांव तक का सफर बेहद तकलीफ भरा था. ये जयपुर से 300 किलोमीटर पैदल चलते हुए आगरा पहुंचे. आगरा से बस से लखनऊ के 50 किलोमीटर पहले तक आए.

प्राथमिक विद्यालय सूरजपुर (कुशीनगर) में रह रहे मजदूर. (फोटो: रमाशंकर चौधरी)

प्राथमिक विद्यालय सूरजपुर (कुशीनगर) में रह रहे मजदूर. (फोटो: रमाशंकर चौधरी)

लखनऊ पहुंचने के लिए करीब 50 किलोमीटर पैदल चले, जहां उन्हें एक प्राइवेट बस मिली जिसने हर मजदूर से एक हजार किराया लेने की शर्त पर गोरखपुर पहुंचाने की बात कही.

बस में 20 मजदूर सवार हुए और सभी ने एक-एक हजार रुपये किराया दिया. ये 31 मार्च की सुबह गोरखपुर पहुंचे. गोरखपुर शहर तक पहुंचने के लिए उन्हें 17 किलोमीटर फिर पैदल चलना पड़ा जिसमें उनके दो घंटे लगे.

एक साथ समूह में चल रहे इन मजदूरों को पुलिस ने रोका और करीब एक घंटे तक वहीं रखा. पुलिस ने जब उन्हें जाने दिया, तो गोरखपुर से उन्होंने ढुलाई करने वाले एक छोटे लोडर को 3,500 रुपये में तय किया.

उस पर सवार होकर कुशीनगर जिले के नेबुआ नौरंगिया पहुंचे. फिर पैदल चलते हुए 31 मार्च की शाम गांव पहुंचे.

मजदूरों के इस समूह में शामिल राधेश्याम ने बताया कि जयपुर से गांव तक पहुंचने में चार दिन लगे और हर मजदूर का तीन हजार से ज्यादा खर्च हुआ. दस दिन की दिहाड़ी जयपुर से गांव पहुंचने में खर्च हो गयी.

जब ये मजदूर गांव पहुंचे तो उन्हें घर नहीं जाने दिया गया. सभी को ब्लॉक मुख्यालय ले जाकर स्क्रीनिंग की गई. स्क्रीनिंग के बाद उन्हें स्कूल पर भेज दिया गया.

स्कूल में बिजली कनेक्शन है लेकिन किसी भी कमरे में बल्ब नहीं लगे थे. मजदूरों ने यहां पर अपनी व्यवस्था से बल्ब लगाया. वे चार कमरों में दो-दो मीटर की दूरी पर रहते हैं.

राधेश्याम ने बताया कि 31 मार्च से छह अप्रैल की सुबह तक खाने-पीने की व्यवस्था घर से ही करनी पड़ी. सोमवार शाम को यहां पर स्कूल की रसोइया खाना बनाने आयी हैं.

कुछ लोग आलू, प्याज व आटा दे गए हैं. कहा गया है कि यहां से खाना मिलेगा. स्कूल में चार टॉयलेट हैं और वे चालू हालत में हैं. इसलिए उन्हें शौच के लिए बाहर नहीं जाना पड़ रहा है.

राधेश्याम ने बताया कि पूरा दिन मोबाइल और आपस में बातचीत में कट रहा है. समाचार और फिल्में देख रहे हैं.

राधेश्याम देश में कोरोना मरीजों की बढ़ती संख्या से चिंतित नजर आ रहे थे. बोले कि मरीजों की संख्या जल्द ही पांच हजार पहुंच जाएगी. यहां रह रहे सभी मजदूर युवा हैं और उनकी आयु 20-30 वर्ष के बीच है.

§

इसी जिले के रामपुर जंगल स्थित क्वारंटाइन सेंटर में व्यवस्था ठीक नहीं है. यहां 35 प्रवासी मजदूरों को क्वारंटाइन किया गया है.

पूर्व माध्यमिक विद्यालय रामपुर जंगल क्षेत्र खड्डा में रह रहे ये मजदूर दिल्ली और जयपुर से आये हैं. दो मजदूर बिहार से लौटे हैं.

रामपुर जंगल के प्राथमिक विद्यालय में प्रवासी मजदूर.(फोटो: रमाशंकर चौधरी)

रामपुर जंगल के प्राथमिक विद्यालय में प्रवासी मजदूर.(फोटो: रमाशंकर चौधरी)

स्कूल के सभी टॉयलेट टूटे-फूटे हैं और काफी समय से प्रयोग में नहीं हैं. इस कारण मजदूरों को शौच के लिए बाहर जाना पड़ता है.

यहां रह रहे प्रवासी मजदूर जितेंद्र ने बताया कि वे लोग 30 मार्च की शाम हो यहां आए थे. उस रात उन्हें भोजन नहीं मिला और भूखे सोना पड़ा.

रामपुर जंगल के प्राथमिक विद्यालय का शौचालय. (फोटो: रमाशंकर चौधरी)

रामपुर जंगल के प्राथमिक विद्यालय का शौचालय. (फोटो: रमाशंकर चौधरी)

काफी प्रयास के बाद केवल 24 बिस्तर मिले. दूसरे दिन दोपहर तक केवल चाय मिल सकी. फिर एक किलो गुड़ भिजवा दिया गया.  यहां बिजली भी नहीं है.

केवल एक हैंडपंप है जिस पर सभी को स्नान करना है. केवल दो बाल्टी दी गयी है. जितेंद्र कहते हैं कि जब हम लोगों ने सुविधा की मांग की तो गांव के सचिव ने कहा कि वे ज्यादा शोर करेंगे तो उन सभी को देवरिया भेज दिया जाएगा.

§

देवरिया के गौरीबाजार स्थित नगरैली प्राथमिक विद्यालय में बनाए गए क्वारंटाइन सेंटर में 11 प्रवासी मजदूर- राम अवतार, रामानंद, दीपक, रानू, रमेश, रामू, रामाअशीष, निरंजन, धीरज, कामेश्वर और कमलेश रह रहे हैं.

ये सभी मजदूर गाजियाबाद में पेंटिंग, फर्नीचर बनाने का काम कर रहे थे. मिलन ने बताया कि सभी लोग 29 मार्च को अपने गांव पहुंचे.

सभी को साहिबाबाद से लखनऊ होते हुए गोरखपुर के लिए बस मिल गई. साहिबाबाद, लखनऊ और गोरखपुर में उनका नाम व पता नोट किया गया.

यहां रुके प्रवासी मजदूर क्वारंटाइन सेंटर की व्यवस्था से परेशान हैं. रामानंद का कहना है कि यहां बहुत गंदगी है. स्कूल का हैंडपंप पीला पानी दे रहा है जिससे वे यहां का पानी भी नहीं पी पा रहे हैं.

प्राथमिक विद्यालय नगरौली (गौरीबाजार) देवरिया में रह रहे कामगार. (फोटो: धीरज )

प्राथमिक विद्यालय नगरौली (गौरीबाजार) देवरिया में रह रहे कामगार. (फोटो: धीरज )

वे गांव आने वाले आरओ की एक गाड़ी से अपने लिए भी आरओ का पानी मंगवा रहे हैं जिसका अपने पास से पैसा देना पड़ता है. सभी का खाना घर से आता है.

उन्होंने बताया कि घर से चारपाई, बिस्तर मच्छरदानी की व्यवस्था की है. स्कूल का टॉयलेट खराब है. उन्हें शौच के लिए बाहर जाना पड़ता है. व्यवस्था के नाम पर कुछ नहीं है. सारी व्यवस्था अपने से करनी पड़ी है.

वे आगे कहते हैं कि शाम होते ही मच्छरों का हमला शुरू हो जाता है. पूरी रात मच्छर भगाने वाले कॉइल के सहारे काटते हैं. सेंटर पर रहते हुए आठ दिन निकल गए हैं. अब छह दिन और काटना है.

तमाम तकलीफ उठाकर अपने गांव पहुंचे ये प्रवासी मजदूर अब अपने ही गांव में परदेसी बनकर रह रहे हैं. सफर की तकलीफ से उबर नहीं पाए थे कि उन्हें 14 दिन के एकांतवास में रहना पड़ रहा है.

और यह एकांतवास भी वे अपनी जिजीविषा के बूते ही काट रहे हैं क्योंकि क्वारंटाइन सेंटर की व्यवस्थाएं उन्हें आराम देने की बजाय पीड़ा में ही इज़ाफा कर रही हैं.

(लेखक गोरखपुर न्यूज़लाइन वेबसाइट के संपादक हैं.)

The post उत्तर प्रदेश: सफ़र की तकलीफों के बाद क्वारंटाइन सेंटर की बदहाल व्यवस्थाओं से बेहाल मज़दूर appeared first on The Wire - Hindi.