भेदभावपूर्ण धर्मांतरण विरोधी क़ानूनों, फ़र्ज़ी केस को लेकर ईसाई समूहों ने पीएम को पत्र लिखा

फेडरेशन ऑफ कैथोलिक एसोसिएशन ऑफ आर्चडायसिस ऑफ दिल्ली के अध्यक्ष और यूनाइटेड क्रिश्चियन फोरम के राष्ट्रीय समन्वयक एसी माइकल ने दोनों समूहों की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेजे पत्र में धर्मांतरण विरोधी क़ानून, अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों पर हमले और दलित ईसाइयों को आरक्षण लाभ से वंचित करने के मुद्दे उठाए हैं. The post भेदभावपूर्ण धर्मांतरण विरोधी क़ानूनों, फ़र्ज़ी केस को लेकर ईसाई समूहों ने पीएम को पत्र लिखा appeared first on The Wire - Hindi.

फेडरेशन ऑफ कैथोलिक एसोसिएशन ऑफ आर्चडायसिस ऑफ दिल्ली के अध्यक्ष और यूनाइटेड क्रिश्चियन फोरम के राष्ट्रीय समन्वयक एसी माइकल ने दोनों समूहों की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेजे पत्र में धर्मांतरण विरोधी क़ानून, अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों पर हमले और दलित ईसाइयों को आरक्षण लाभ से वंचित करने के मुद्दे उठाए हैं.

दिल्ली के सेक्रेड हार्ट कैथेड्रल कैथोलिक चर्च में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. (फोटो साभार: पीएमओ वेबसाइट)

नई दिल्ली: फेडरेशन ऑफ कैथोलिक एसोसिएशन ऑफ आर्चडायसिस ऑफ दिल्ली (एफसीएएडी) के अध्यक्ष और यूनाइटेड क्रिश्चियन फोरम के राष्ट्रीय समन्वयक एसी माइकल ने दोनों समूहों की ओर से भारत में ईसाइयों द्वारा सामना किए जा रहे गंभीर मुद्दों और भेदभाव के बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है.

रिपोर्ट के अनुसार, माइकल ने 21 अप्रैल के अपने पत्र में कहा है कि जब मोदी ईस्टर पर सेक्रेड हार्ट कैथेड्रल कैथोलिक चर्च गए थे और वहां उनका स्वागत किया गया था, तब समुदाय अपनी शिकायतों को व्यक्त करने के लिए इस उपयुक्त माध्यम और समय का उपयोग करना चाहता था.

27 अप्रैल को एफसीएएडी ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की जिसमें कहा गया कि प्रधानमंत्री कार्यालय ने माइकल के पत्र को स्वीकार कर लिया है और प्रतिक्रिया में लोक शिकायत पोर्टल की पंजीकरण संख्या जारी की है.

अपने पत्र में माइकल ने तीन महत्वपूर्ण चिंताएं उठाई है. पहला, उन्होंने कहा कि तथाकथित ‘धर्म की स्वतंत्रता’ कानून, जो 11 राज्यों में पारित किए गए हैं, ईसाइयों के लिए हानिकारक हैं. भाजपा सरकारें ‘लव जिहाद’ पर निशाने के बहाने इन कानूनों को राज्यों में लागू करने पर ज़ोर दे रही हैं. विभिन्न राज्यों से कई रिपोर्ट्स में तर्क दिया गया है कि इन कानूनों का इस्तेमाल धार्मिक अल्पसंख्यकों को परेशान करने के लिए किया जा रहा है.

माइकल ने अपने पत्र में कहा, ‘धर्मांतरण विरोधी विधेयक अनुच्छेद 25 की भावना के खिलाफ है. ऐसे कई राज्यों में ईसाई समुदाय के सदस्यों को परेशान किया जा रहा है और धर्मांतरण के झूठे और मनगढ़ंत आरोपों में कैद किया जा रहा है.’

दूसरा, माइकल अल्पसंख्यक स्कूलों के महत्व के बारे में बात करते हैं, जो संविधान के तहत संरक्षित हैं. माइकल कहते हैं कि भारत के 72 प्रतिशत अल्पसंख्यक स्कूलों में ईसाई भी हैं. माइकल ने कहा, ‘भारत में इस समुदाय द्वारा चलाए जा रहे 54,000 से अधिक शैक्षणिक संस्थान हैं. ये संस्थान विभिन्न धार्मिक, भाषाई और आर्थिक रूप से कमजोर पृष्ठभूमि के छह करोड़ से अधिक बच्चों और युवाओं को शिक्षा प्रदान करते हैं.’

माइकल ने आगे कहा कि ये स्कूल अब बहुसंख्यक भीड़ के हमले का शिकार हो रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘आज हमारे कई स्कूलों और कॉलेजों पर हमले हो रहे हैं और उन्हें हिंसक भीड़ के हमलों, पथराव और भारी संपत्ति के नुकसान का सामना करना पड़ा है. प्रिंसिपल और शिक्षकों पर जबरन धर्मांतरण का आरोप लगाया जा रहा है, सुबह की सभाओं को बाधित किया जा रहा है और शिक्षा नीतियां स्वायत्तता को कमजोर कर रही हैं.’

तीसरा, माइकल ने भारत में दलित ईसाइयों के लगातार हाशिए पर जाने की बात की है. वे लिखते हैं कि आंकड़े साबित करते हैं कि दलित ईसाई ‘वंचित और हाशिए पर’ हैं, फिर भी वे अनुसूचित जातियों के लिए निर्धारित आरक्षण से लाभ उठाने में असमर्थ हैं.

माइकल ने लिखा, ‘कानून का पालन करने वाले नागरिकों के रूप में हम भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश केजी बालकृष्णन की अध्यक्षता में केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त तीन सदस्यीय आयोग को स्वीकार करेंगे, ऐसे नए व्यक्तियों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने की संभावना पर विचार करेगा, जो ऐतिहासिक रूप से अनुसूचित जाति से संबंध रखते थे, लेकिन जो हिंदू, बौद्ध और सिख धर्म के अलावा अन्य धर्मों में परिवर्तित हो गए.’

पत्र में लिखा है, ‘भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंगनाथ मिश्रा के नेतृत्व में आयोग ने नौकरियों और उच्च शिक्षा में अल्पसंख्यकों के लिए एक निश्चित संख्या में आरक्षण की सिफारिश की थी. कृपया अनुसूचित जाति आरक्षण कोटा के तहत आरक्षण लाभ प्राप्त करने के लिए दलितों को अनुमति दें जो अपनी मर्जी से इस्लाम या ईसाई धर्म में परिवर्तित हो गए हैं.’

अंत में माइकल ने प्रधानमंत्री से कहा कि वे किसी को भी भारत की विविधता और जीवंतता को कम करने की कोशिश न करने दें. उन्होंने कहा, ‘एक जीवंत लोकतंत्र का अर्थ है हमारे देश में प्रत्येक व्यक्ति का शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व. आइए हम भारत की इस महान विविधता को अपनाएं और कुछ दिग्भ्रमित लोगों को इसका गला घोंटने न दें.’

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