पातालपानी रेलवे स्टेशन का नाम टंट्या भील रेलवे स्टेशन होगा: शिवराज सिंह चौहान

टंट्या भील को आदिवासी आदर्श एवं मध्य प्रदेश का जननायक कहा जाता है. मध्य प्रदेश सरकार के अनुरोध पर केंद्र सरकार ने इसी महीने भोपाल में स्थित देश के सबसे आधुनिक हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर ‘रानी कमलापति रेलवे स्टेशन’ किया है. रानी कमलापति गोंड शासक की पत्नी थीं.

टंट्या भील को आदिवासी आदर्श एवं मध्य प्रदेश का जननायक कहा जाता है. मध्य प्रदेश सरकार के अनुरोध पर केंद्र सरकार ने इसी महीने भोपाल में स्थित देश के सबसे आधुनिक हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर ‘रानी कमलापति रेलवे स्टेशन’ किया है. रानी कमलापति गोंड शासक की पत्नी थीं.

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जनजातीय गौरव सप्ताह के समापन समारोह को संबोधित करते हुए. (फोटो: ट्विटर/@ChouhanShivraj)

भोपाल: आदिवासियों तक अपनी पहुंच को और मजबूत करने के लिए मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सोमवार को घोषणा की कि इंदौर शहर के पास स्थित पातालपानी रेलवे स्टेशन का नाम टंट्या भील रेलवे स्टेशन होगा.

उन्होंने कहा कि इसके अलावा इंदौर शहर के दो अन्य स्थानों का नाम भी टंट्या भील के नाम पर रखा जाएगा.

टंट्या भील को आदिवासी आदर्श एवं मध्य प्रदेश का जननायक कहा जाता है. स्थानीय लोग टंट्या भील को टंट्या मामा भी कहते हैं.

प्रदेश सरकार के अनुरोध पर केंद्र सरकार ने इसी महीने भोपाल में स्थित देश के सबसे आधुनिक हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर ‘रानी कमलापति रेलवे स्टेशन’ किया है. रानी कमलापति गोंड शासक की पत्नी थीं.

गोंड समुदाय भारत में आदिवासियों का सबसे बड़ा समुदाय है.

चौहान ने मंडला जिले के रामनगर में जनजातीय गौरव सप्ताह के समापन समारोह को संबोधित करते हुए कहा, ‘पातालपानी रेलवे स्टेशन का नाम टंट्या भील रेलवे स्टेशन होगा.’

उन्होंने कहा कि इंदौर स्थित भंवर कुआं चौराहे का नाम भी टंट्या भील चौराहा और इंदौर में एमआर-10 बस अड्डे का नाम भी टंट्या भील बस अड्डा किया जाएगा, जो 53 करोड़ रुपये की लागत से बनेगा.

शिवराज सिंह चौहान ने पिछली सरकारों पर आदिवासी इतिहास की अनदेखा करने का आरोप लगाया.

उन्होंने ट्वीट कर कहा, ‘कांग्रेस ने जनजातीय नायकों का सम्मान नहीं किया. भगवान बिरसा मुंडा, टंट्या मामा, शंकर शाह, रघुनाथ शाह जैसे नायकों के अनदेखा किया. हम इनके योगदान को सम्मान देंगे.’

मुख्यमंत्री ने कहा कि पातालपानी स्थित टंट्या भील मंदिर का जीर्णोद्धार किया जाएगा और मंडला में एक मेडिकल कॉलेज खोला जाएगा, जिसका नाम राजा हृदय शाह मेडिकल कॉलेज होगा.

उन्होंने कहा कि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, मानपुर का नाम टंट्या भील स्वास्थ्य केंद्र होगा.

चौहान ने कहा कि देश एवं प्रदेश में जनजातियों का वैभवशाली एवं गौरवशाली इतिहास रहा है तथा जनजातीय नायकों ने स्वतंत्रता संग्राम में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

उन्होंने कहा, ‘हमारी जनजातियों के गौरव को अंग्रेजों ने समाप्त करने के सभी प्रयास किए. हम इसे पुन: स्थापित कर रहे हैं.’

चौहान ने कहा कि जनजातीय समुदायों के लोगों के विरुद्ध दायर छोटे और झूठे मुकदमे वापस लिए जाएंगे.

वहीं, राज्य के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने भोपाल में संवाददाताओं से कहा, ‘पातालपानी रेलवे स्टेशन का नाम अमर शहीद टंट्या भील के नाम पर रखने का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा जाएगा.’

मिश्रा ने बताया कि आजादी के 75वें महोत्सव के अंतर्गत चार दिसंबर को पातालपानी में टंट्या भील के बलिदान दिवस पर बड़े कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा और इस कार्यक्रम को लेकर दो यात्राएं निकाली जाएंगी.

उन्होंने कहा कि पहली यात्रा टंट्या भील की जन्मस्थली पंधाना के बड़ौदा अहीर गांव से और दूसरी यात्रा सैलाना से शुरू होकर विभिन्न जिलों से होते हुए धार होकर इंदौर पहुंचेगी तथा मंत्री अपने प्रभार के जिलों में यात्रा की जिम्मेदारी संभालेंगे.

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय रॉबिन हुड के रूप में मशहूर टंट्या भील 1878 से 1889 के बीच भारत में एक डकैत थे. उस समय के ब्रिटिश शासकों द्वारा उन्हें एक अपराधी के रूप में वर्णित किया गया है, लेकिन भारतीयों द्वारा उन्हें एक वीर व्यक्ति माना जाता था.

रिपोर्टों के अनुसार, टंट्या ने 1857 के विद्रोह के बाद अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह करने का फैसला किया. उन्हें 1874 में गिरफ्तार कर लिया गया था.

एक साल की सजा के बाद टंट्या ने चोरी और अपहरण सहित और भी गंभीर अपराध किए. 1878 में उन्हें फिर से खंडवा में सलाखों के पीछे डाल दिया गया, लेकिन तीन दिन जेल में बिताने के बाद वे भाग गए और डकैत बन गए.

टंट्या को उन क्रांतिकारियों में से एक के रूप में जाना जाता है, जिन्होंने 12 साल तक ब्रिटिश शासन के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष किया था.

रिपोर्टों में कहा गया है कि वह ब्रिटिश सरकार के खजाने और उनके अनुयायियों की संपत्ति को गरीबों और जरूरतमंदों में बांटने के लिए लूटते थे. तब से टंट्या भील जनजाति के लिए गौरव बन गए.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)