इस हफ्ते नॉर्थ ईस्ट डायरी में मिज़ोरम, असम, त्रिपुरा, नगालैंड और मेघालय के प्रमुख समाचार.
पुलिसकर्मी ने बताया कि म्यांमार के कुछ शरणार्थी भी थिंगसाई गांव पहुंचे हैं.’ बता दें कि दरअसल दोनों पक्षों की ओर से यह मुठभेड़ म्यांमार के थांगटलांग से मिजोरम में लगभग 100 शरणार्थियों के घुसने पर हुई है. इन लोगों ने म्यांमार-मिजोरम सीमावर्ती नदी टीओ को पार किया और चम्पई जिले के फरकॉन और थेक्टे गांवों में शरण लीं, जहां इन्हें क्वारंटीन कर दिया गया है. सीएनए सूत्रों ने बताया, मिजोरम, म्यांमार सीमावर्ती नदी टिओ के उस पर 15 लोग और हैं, जो क्वारंटीन केंद्रों की अनुपलब्धता की वजह से वहां इंतजार कर रहे हैं. इससे पहले राज्य के अधिकारियों ने कहा था कि बर्मा की निर्वासित सरकार ‘नेशनल यूनिटी गवर्नमेंट’ के समर्थकों और सैन्य जुंटा बल के बीच झड़प के मद्देनजर मिजोरम म्यांमार से शरणार्थियों की दूसरी लहर से निपटने के लिए पूरी तरह से तैयार है. उनके अनुसार, मंगलवार सात सितंबर को विद्रोह के आह्वान के बाद सैन्य कार्रवाई के मद्देनजर पहले ही 150 से अधिक लोग सीमा पार कर चुके हैं. अधिकारियों ने कहा कि म्यांमार के एक गांव में एनयूजी के समर्थकों और म्यांमार सेना के बीच भयंकर गोलीबारी की आवाजें मिजोरम के हनहथियाल जिले के निकटतम सीमावर्ती गांव थिंगसाई में भी सुनाई दीं. म्यांमार के एनयूजी का गठन उन निर्वाचित सांसदों द्वारा किया गया है, जिन्हें सेना ने अपदस्थ कर दिया था. हनहथियाल जिले के उपायुक्त एच. डोलियानबुआइया ने बताया था कि गुरुवार से म्यांमार के लगभग 60 नागरिकों और म्यांमार सेना के बीच सशस्त्र संघर्ष से भागकर जिले में प्रवेश कर चुके हैं. उन्होंने बताया, ‘हमारे जिले ने पहले ही म्यांमार के लगभग 700 शरणार्थियों को शरण दी है. पड़ोसी देश में देशव्यापी विद्रोह के बाद और लोगों के प्रवेश करने की संभावना है.’ मिजोरम म्यांमार के साथ 510 किलोमीटर लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमा साझा करता है. मिजोरम में पहले से ही म्यांमार के हजारों नागरिक रह रहे हैं, जो म्यांमार सेना द्वारा इस साल पहली फरवरी को लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार से सत्ता हथियाने के बाद अपना देश छोड़कर भाग आए थे. अधिकारियों ने बताया कि म्यांमार के अधिकतर नागरिकों को मानवीय आधार पर स्थानीय संगठनों और व्यक्तियों ने अस्थायी आश्रय और भोजन उपलब्ध कराया है, जबकि अन्य अपने रिश्तेदारों के साथ रह रहे हैं. उन्होंने बताया कि म्यांमार के अधिकांश नागरिक गैर सरकारी संगठनों द्वारा स्थापित अस्थायी आश्रयों में रहते हैं.
असम: नौका दुर्घटना में लापता व्यक्ति का शव मिला, कांग्रेस ने लगाया सुरक्षा इंतजामों के अभाव का आरोप
त्रिपुराः मीडिया दफ्तरों में तोड़फोड़ के विरोध में पत्रकारों और माकपा का प्रदर्शन
तीन जिलों में भाजपा और माकपा कार्यकर्ताओं के बीच हुई झड़पों में कम से कम दस लोग घायल हो गए थे, दो पार्टी कार्यालय जल गए, कई अन्य में तोड़फोड़ की गई और छह वाहनों में आग लगा दी गई.
इन प्रदर्शनों के दौरान त्रिपुरा में माकपा का मुखपत्र डेली देशेर कथा का दफ्तर, स्थानीय मीडिया हाउस प्रतिवादी कलम और उसकी टीवी शाखा पीबी24 और गोमती जिले के उदयपुर का एक स्थानीय टीवी चैनल दुरंता टीवी हमले का शिकार हुए.
एक स्थानीय मीडिया अधिकार संगठन फोरम फॉर डेवलपमेंट एंड प्रोटेक्शन ऑफ मीडिया कम्युनिटी के संयोजक सेबक भट्टाचार्य ने एक बयान में कहा कि हमले में प्रतिबादी कलम अखबार और पीबी 24 न्यूज चैनल के तीन पत्रकार घायल हो गए. पत्रकार प्रसेनजीत साहा को सिर में चोट लगी और बाद में उन्हें कई टांके लगे.
मीडिया संस्था ने हमले में शामिल लोगों को कड़ी से कड़ी सजा देने और मीडियाकर्मियों की सुरक्षा की मांग की है.
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) कार्यालयों पर हमले और आगजनी की घटनाओं को लेकर शुक्रवार को डीसी ऑफिस के बाहर प्रदर्शन किया गया. माकपा के राज्य सचिव ओंकार शाद ने कहा कि भाजपा पूरे देश में दंगे करवा रही है ताकि इससे उनकी विफलताएं लोगों के सामने न आएं.
इससे पहले गुरुवार को माकपा के महासचिव सीताराम येचुरी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर आरोप लगाया था कि त्रिपुरा में आठ सितंबर को उनकी पार्टी के दफ्तरों पर ‘भाजपा की के लोगों की भीड़’ द्वारा हमला किया गया.
पत्र में येचुरी ने कहा था कि माकपा के प्रदेश मुख्यालय और कई कार्यालयों पर सुनियोजित ढंग से हमला किया गया तथा हमलावरों ने जिस तरह से यह सब किया उससे राज्य सरकार की ’मिलीभगत’ भी दिखाई देती है.
माकपा महासचिव ने आरोप लगाया था कि पार्टी समर्थित अखबार ‘डेली देशरकथा’ के कार्यालय पर भी हमला किया गया. उन्होंने प्रधानमंत्री से आग्रह कि वह मामले में हस्तक्षेप करें और माकपा एवं वाम मोर्चे के खिलाफ हिंसा को रोकें.
नगालैंड: राज्यपाल आरएन रवि तमिलनाडु के राज्यपाल नियुक्त
नगा शांति वार्ता में केंद्र के वार्ताकार और नगालैंड के राज्यपाल आरएन रवि को तमिलनाडु का राज्यपाल बनाया गया है. राष्ट्रपति भवन ने गुरुवार को बयान में कहा कि राष्ट्रपति ने एक राज्यपाल के इस्तीफे को स्वीकार करने के अलावा तीन राज्यपालों की नियुक्ति की है.
आदेश में कहा गया है कि वर्तमान में असम के राज्यपाल जगदीश मुखी नगालैंड का अतिरिक्त प्रभार भी संभालेंगे.
न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, तमिलनाडु के राज्यपाल पद पर उनकी नियुक्ति किसी प्रमोशन से कम नहीं है.
हालांकि, वह नगा शांति वार्ता के लिए केंद्र के वार्ताकार बने रहेंगे. इससे पहले नगा समाज और एनएससीएन-आईएम ने वार्ताकार के तौर पर उन्हें हटाने की मांग की थी.
विद्रोही समूह और राज्य सरकार ने तमिलनाडु के राज्यपाल के तौर पर उनकी नियुक्ति पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है.
हालांकि, सत्तारूढ़ नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी के प्रमुख चिंगवांग कोनयाक का कहना है कि कुछ लोग खुश हैं जबकि कुछ निराश हैं.
उन्होंने कहा, ‘वे राज्य के राज्यपाल थे लेकिन उन्होंने एक लोकप्रिय सरकार के मामलों में हस्तक्षेप किया. सरकार खुश नहीं थी.’
उल्लेखनीय है कि केंद्र के साथ बातचीत करने वाले प्रमुख नगा समूह नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालिम (एनएससीएन-आईएम) और रवि के बीच बिगड़ते रिश्तों के चलते पिछले कुछ समय में नगा शांति प्रक्रिया में मुश्किलें आई हैं.
2015 में नगा शांति समझौते के लिए एक फ्रेमवर्क एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर किए जाने के बावजूद सरकार समझौते को अंतिम रूप नहीं दे पाई है. इस बीच कई बार रवि को वार्ताकार के पद से हटाए जाने की भी मांग उठी है.
इस महीने की शुरुआत में नगा पीपुल्स मूवमेंट फॉर ह्यूमन राइट्स (एनपीएमएचआर) द्वारा आयोजित कॉन्फ्रेंस में शामिल सांसदों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, बुद्धिजीवियों ने नगा शांति वार्ता के लिए नए वार्ताकार को नियुक्त करने की मांग की थी.
रिपोर्ट के मुताबिक, उन्होंने आरएन रवि और एनएससीएन-आईएम के बीच विश्वास की कमी की वजह से शांति प्रक्रिया के अचानक पटरी से उतरने को लेकर निराशा जताई थी.
इस दौरान कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों ने कहा कि दोनों पक्षों के बीच वार्ताकार का होना जरूरी है. शांति बहाल करने के लिए एक वार्ताकार को नियुक्त करना जरूरी है, जो दोनों पक्षों के बीच दोबारा विश्वास बहाल कर सके.
रवि और एनएससीएन-आईएम के बीच संबंधों में 2020 में खटास आ गई थी, जब रवि ने मुख्यमंत्री नेफियू रियो को कानून और व्यवस्था की स्थिति की आलोचना करते हुए पत्र लिखा था.
उस समय भी वार्ताकार बदलने की मांग उठी थी. तब नगा संगठनों के प्रतिनिधि एनएससीएन-आईएम ने कहा था कि वे (रवि) इस प्रक्रिया में बाधा पैदा कर रहे हैं, इसलिए वार्ता आगे बढ़ाने के लिए नया वार्ताकार नियुक्त किया जाना चाहिए.
तब संगठन की ओर से जारी बयान कहा गया कि नगा मुद्दों पर रवि के तीखे हमलों की बदौलत शांति समझौते की प्रक्रिया तनावपूर्ण स्थिति में पहुंच गई है.
गौरतलब है कि उत्तर पूर्व के सभी उग्रवादी संगठनों का अगुवा माने जाने वाला एनएससीएन-आईएम अनाधिकारिक तौर पर सरकार से साल 1994 से शांति प्रक्रिया को लेकर बात कर रहा है.
मेघालय के निर्दलीय विधायक सिंटार केलास सुन का शुक्रवार को कोविड-19 से निधन हो गया..
मौफलांग सीट से विधायक सुन की कोरोना वायरस से संक्रमित पाए जाने के बाद उनके आवास पर मृत्यु हो गई.
विधानसभा के एक अधिकारी ने बताया कि वह राज्य के उन सात विधायकों में शामिल थे जिन्होंने कोविड-रोधी टीके की खुराक नहीं ली थी..
सुन पर्यावरण पर विधानसभा की समिति के अध्यक्ष भी थे. मुख्यमंत्री कोनराड संगमा ने सुन के निधन पर शोक जताया.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)