‘ग़ैरक़ानूनी’ फतवा: एनसीपीसीआर ने यूपी सरकार से दारुल उलूम देवबंद पोर्टल की जांच करने को कहा

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने उत्तर प्रदेश सरकार से कथित रूप से ‘ग़ैरक़ानूनी और भ्रमित करने वाले’ फतवों को लेकर यह भी कहा कि जब तक इस तरह की सामग्री हटा नहीं ली जाती है, तब तक इस तक पहुंच को प्रतिबंधित कर दिया जाए. आयोग ने क़ानून के कथित उल्लंघन करने के लिए भी संस्थान के ख़िलाफ़ आवश्यक कार्रवाई करने के लिए कहा है.

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने उत्तर प्रदेश सरकार से कथित रूप से ‘ग़ैरक़ानूनी और भ्रमित करने वाले’ फतवों को लेकर यह भी कहा कि जब तक इस तरह की सामग्री हटा नहीं ली जाती है, तब तक इस तक पहुंच को प्रतिबंधित कर दिया जाए. आयोग ने क़ानून के कथित उल्लंघन करने के लिए भी संस्थान के ख़िलाफ़ आवश्यक कार्रवाई करने के लिए कहा है.

दारुल उलूम देवबंद. (फोटो साभार: विकिपीडिया)

नई दिल्ली: राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने कथित रूप से ‘गैरकानूनी और भ्रमित करने वाले’ फतवों को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार से दारुल उलूम देवबंद की वेबसाइट की जांच करने को कहा है.

दारुल उलूम देवबंद एक इस्लामिक मदरसा है. यह उत्तर प्रदेश के सहारनपुर ज़िले के देवबंद में स्थित है. इसकी स्थापना वर्ष 1866 में की गई थी.

बच्चों के अधिकारों से संबंधित शीर्ष निकाय ने बीते 15 जनवरी को राज्य के मुख्य सचिव से यह भी कहा कि जब तक इस तरह की सामग्री हटा नहीं ली जाती है, तब तक इस तक पहुंच (Access) को प्रतिबंधित कर दिया जाए.

आयोग ने कहा कि एक शिकायत के आधार पर यह कार्रवाई की गई है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि वेबसाइट पर फतवों की सूची है, जो देश के कानून के अनुसार प्रदान किए गए प्रावधानों के खिलाफ हैं.

मुख्य सचिव को लिखे पत्र में आयोग ने कहा है, ‘शिकायत पर बाल अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम की धारा 13 (1) (जे) के तहत संज्ञान लेते हुए शिकायत और वेबसाइट की जांच करने के बाद यह पता चला है कि लोगों द्वारा उठाए गए मसलों के जवाब में दिए गए स्पष्टीकरण और उत्तर, देश के कानूनों और अधिनियमों के अनुरूप नहीं हैं.’

इसमें कहा गया है कि इस तरह के बयान बच्चों के अधिकारों के विपरीत हैं और वेबसाइट तक खुली पहुंच उनके लिए हानिकारक है.

पत्र में कहा गया है, ‘इसलिए अनुरोध है कि इस संगठन की वेबसाइट की पूरी तरह से जांच की जाए, ऐसी किसी भी सामग्री को तुरंत हटा दिया जाए.’

इसमें कहा गया है, ‘जब तक गैरकानूनी बयानों के प्रसार और पुनरावृत्ति से बचने तथा हिंसा, दुर्व्यवहार, उपेक्षा, उत्पीड़न, बच्चों के खिलाफ भेदभाव की घटनाओं को रोकने के लिए ऐसी सामग्री को हटाया नहीं जाता है तब तक वेबसाइट तक पहुंच को रोका जा सकता है.’

आयोग ने राज्य सरकार से भारत के संविधान, भारतीय दंड संहिता, किशोर न्याय अधिनियम, 2015 और शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के प्रावधानों का कथित रूप से उल्लंघन करने के लिए संस्थान के खिलाफ आवश्यक कार्रवाई करने के लिए भी कहा है.

एनसीपीसीआर ने उत्तर प्रदेश सरकार को 10 दिनों के भीतर कार्रवाई रिपोर्ट देने का निर्देश दिया है.

स्टूडेंट्स इस्लामिक ऑर्गनाइजेशन ने बाल अधिकार संरक्षण आयोग पर साधा निशाना

इस बीच स्टूडेंट्स इस्लामिक ऑर्गनाइजेशन ऑफ इंडिया (एसआईओ) ने दारुल उलूम देवबंद के खिलाफ कार्रवाई की मांग करने के लिए एनसीपीसीआर पर बीते रविवार को निशाना साधा.

एसआईओ ने इसे कुछ चुनिंदा फतवों के जरिये मदरसों और उसकी शिक्षा को निशाना बनाए जाने का एक और प्रयास करार दिया.

एसआईओ ने कहा कि फतवा कुछ धार्मिक विद्वानों का निजी विचार होता है और धर्म का अनुसरण करने वाले इसे मानने को बाध्य नहीं होते.

एसआईओ के राष्ट्रीय सचिव फवाज शाहीन ने एक बयान में कहा, ‘फतवे, निजी एवं सामाजिक जीवन से जुड़े विभिन्न मुद्दों के संदर्भ में केवल धार्मिक विद्वानों के निजी विचार होते हैं. तथ्य यह भी है कि एक खास मुद्दे पर कभी-कभी विद्वानों के विचार अलग होते हैं और उनकी कोई कानूनी बाध्यता नहीं होती. लोग धर्म के अनुसार अपने मनमुताबिक फैसले लेने को स्वतंत्र हैं.’