राष्ट्रीय जलमार्ग विधेयक: भाजपा शासित राज्यों समेत कई अन्य प्रदेशों ने उठाए थे सवाल

राज्यों के जलमार्गों को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित करने की परियोजना का वित्त मंत्रालय और नीति आयोग के साथ मध्य प्रदेश की तत्कालीन भाजपा सरकार ने कड़ा विरोध किया था. कई अन्य राज्यों ने भी राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित करने से पहले विस्तृत अध्ययन कराने की मांग की थी. The post राष्ट्रीय जलमार्ग विधेयक: भाजपा शासित राज्यों समेत कई अन्य प्रदेशों ने उठाए थे सवाल appeared first on The Wire - Hindi.

राज्यों के जलमार्गों को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित करने की परियोजना का वित्त मंत्रालय और नीति आयोग के साथ मध्य प्रदेश की तत्कालीन भाजपा सरकार ने कड़ा विरोध किया था. कई अन्य राज्यों ने भी राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित करने से पहले विस्तृत अध्ययन कराने की मांग की थी.

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(फोटो साभार: भारत अन्तर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण)

नई दिल्ली: केंद्र की मोदी सरकार के महत्वाकांक्षी राष्ट्रीय जलमार्ग विधेयक का मध्य प्रदेश की तत्कालीन भाजपा सरकार ने कड़ा विरोध किया था और इस विधेयक पर सहमति नहीं जताई थी. उस समय शिवराज सिंह चौहान मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री थे.

इतनी ही नहीं 24 जुलाई 2015 की एक फाइल नोटिंग के मुताबिक कुल 25 राज्यों में सिर्फ 18 राज्यों ने ही इस विधेयक को लेकर सकारात्मक रुख जताया था. वहीं उत्तर प्रदेश समेत कुछ राज्यों ने जवाब ही नहीं दिया था.

द वायर द्वारा सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत प्राप्त किए गए आधिकारिक दस्तावेजों से पता चलता है कि केंद्र ने राज्य सरकारों से सही तरीके से विचार विमर्श के बिना उन राज्यों की नदियों पर राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किया है.

खास बात ये है कि केंद्र के विधायी विभाग ने पोत परिवहन मंत्रालय को सलाह दी थी कि सभी अंतरमंत्रालय और राज्यों से बातचीत के बाद ही विधेयक तैयार किया जाना चाहिए.

प्राप्त किए गए फाइल नोटिंग और पत्राचारों के मुताबिक कुल सात राज्य ही केंद्र के प्रस्ताव से पूर्णत: सहमत थे. बिहार, दिल्ली, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, तेलंगाना जैसे कई राज्यों ने शर्त के साथ सहमति जताई थी.

भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण (आईडब्ल्यूएआई) द्वारा 12 नवंबर 2014 को भेजे गए पत्र और प्राधिकरण के सदस्य आरपी खरे के साथ 30 जून 2015 को हुई बैठक के बाद मध्य प्रदेश के जल संसाधन मंत्रालय ने 16 जुलाई 2015 को लिखे पत्र में इस प्रस्ताव से असहमति जताई और इस काम के लिए खर्च को लेकर चिंता जाहिर की थी.

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मध्य प्रदेश सरकार का पत्र.

भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण केंद्र के पोत परिवहन मंत्रालय के अधीन है जो राष्ट्रीय जलमार्गों को विकसित करने का काम कर रहा है. राज्य सरकार ने प्राधिकरण से कहा था कि मध्य प्रदेश के जलमार्गों को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित करना राज्य के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है.

राज्य ने कहा था, ‘मध्य प्रदेश की नदियां वर्षा आधारित या बरसाती हैं. इसलिए इन नदियों में बिना मानसून के इतना बहाव नहीं होता है कि इसमें नौपरिवहन संभव हो सके.’

मध्य प्रदेश की बेतवा, चंबल, माही, नर्मदा, टोंस और वैनगंगा नदी को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित करने का प्रस्ताव पेश किया गया था. राज्य सरकार ने कहा था कि इसमें से तीन नदियों- नर्मदा, चंबल और टोंस नदी का मध्य प्रदेश के साथ अंतर-राज्यीय पहलू है.

प्रदेश सरकार ने केंद्र को चेताया था कि चंबल नदी में मगरमच्छ पार्क के लिए विशेष पर्यावरणीय सुरक्षा प्राप्त है और इसके तहत इस क्षेत्र में किसी तरह के हस्तक्षेप पर प्रतिबंध है. इसलिए इस क्षेत्र में जलमार्ग बनाना संभव नहीं है.

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जम्मू कश्मीर सरकार का पत्र.

राज्य सरकार ने यह भी कहा था कि नौपरिवहन के लिए चंबल नदी में न्यूनतम जलस्तर बनाए रखने के लिए पानी छोड़ना पड़ेगा, जिससे सिंचाई पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. इसके जलते आम जनता का व्यापक विरोध भी झेलना पड़ सकता है.

इन टिप्पणियों के साथ मध्य प्रदेश सरकार ने सुझाव दिया था कि अगर केंद्र सरकार जलमार्गों का निर्माण चाहती है तो वो संभाव्यता अध्ययन की फंडिंग में मदद करे और राज्य जलमार्ग के विकास में सहयोग करे.

हालांकि मध्य प्रदेश सरकार के कड़े विरोध के बाद भी केंद्र सरकार ने इन नदियों पर राष्ट्रीय जलमार्ग बनाने का विधेयक पारित कर दिया. विधेयक में टोंस नदी को छोड़कर अन्य नदियों के मध्य प्रदेश क्षेत्र को शामिल नहीं किया गया है.

आरटीआई के तहत प्राप्त दस्तावेजों के मुताबिक जम्मू कश्मीर सरकार ने किसी जलमार्ग को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित करने से पहले विशेषज्ञों के जरिये सर्वेक्षण और संभाव्यता अध्ययन कराने की मांग की थी.

राज्य ने 29 जून 2015 को भेजे अपने पत्र में लिखा है कि राज्य के जलमार्गों का इस्तेमाल मुख्य रूप से पर्यटन के उद्देश्य से किया जाता है. इसे यातायात के लिए प्रयोग में नहीं लाया जाता है. इसलिए किसी जलमार्ग को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित करने से पहले विशेषज्ञों द्वारा सर्वेक्षण कराए जाने की जरूरत है.

इसी तरह जम्मू कश्मीर की चेनाब, रावी, इंडस और झेलम नदी को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किया गया है और इसे विकसित किया जाना है.

इसके अलावा झारखंड सरकार ने सुवर्णरेखा और खारकई नदी को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित करने को लेकर कहा था कि इसे लेकर अभी तक कोई विस्तृत सर्वेक्षण और जांच नहीं हुई है.

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हालांकि राज्य सरकार ने दो जुलाई 2015 को भेजे अपने जवाब में एक संक्षिप्त रिपोर्ट भेजी थी, जिसमें उसने दोनों नदियों की मौजूदा स्थिति बताते हुए इसे राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित करने से पहले विस्तृत अध्ययन की मांग की थी.

राज्य ने ये भी बताया था कि सुवर्णरेखा नदी में काफी हिस्सों तक नौपरिवहन संभव नहीं है.

दूसरी ओर, पंजाब सरकार ने इस विधेयक को मंजूरी दे दी थी लेकिन उसने कहा कि जहां तक नदी के पानी पर नियंत्रण और इसके इस्तेमाल का सवाल है तो राइपेरियन सिद्धांत का उल्लंघन नहीं होना चाहिए. राइपेरियन सिद्धांत के मुताबिक नदी के पानी पर हक उनका होता है जिनके पास इसके रास्ते में जमीन है.

राज्य ने 17 जुलाई 2015 को भेजे अपने पत्र में यह भी कहा था कि सतलज नदी पर भाखड़ा बांध, रोपर हेड वर्क्स (बांध), हरिके हेड वर्क्स (बांध) और ब्यास नदी पर पोंग बांध बनने की वजह से सितंबर से जून महीने में इन नदियों में पानी की मात्रा न के बराबर होती है.

केंद्र ने पश्चिम बंगाल की महानंदा, अजॉय, जालंगी, द्वारका, बकरेस्वर, दामोदर, सिलाबती, कुमारी और इच्छामति नदियों को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किया है. हालांकि राज्य ने 30 जनवरी 2015 को पत्र लिखकर पोत परिवहन मंत्रालय को बताया था कि दिसंबर-जनवरी से लेकर मार्च-अप्रैल तक इन नदियों में पर्याप्त पानी नहीं रहता है.

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पश्चिम बंगाल सरकार का पत्र.

राज्य ने यह भी कहा कि इनमें से अधिकतर नदियों में पर्याप्त प्रवाह नहीं होता है इसलिए इसमें नौपरिवहन करना मुश्किल हो सकता है.

इसके अलावा राज्य सरकार ने केंद्र को यह भी सुझाव दिया था कि बेहतर होगा कि किसी भी जलमार्ग को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित करने से पहले जमीनी स्तर पर विशेषज्ञों द्वारा पर्याप्त अध्ययन कराया जाए.

तमिलनाडु सरकार ने भी इस विधेयक को लेकर आपत्ति जाहिर की थी और केंद्र द्वारा प्रस्तावित राज्य के नौ में से सिर्फ दो जलमार्गों को ही राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित करने पर सहमति जताई थी.

हालांकि केंद्र सरकार ने इसे खारिज करते हुए सभी नौ जलमार्गों को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित कर दिया.

राज्य सरकार ने दो नवंबर 2015 को अपने पत्र में लिखा था, ‘किसी भी जलमार्ग को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित करने से पहले टेक्नो-फीजीबिलिटी स्टडी की जानी चाहिए. विधेयक पारित करने से पहले राज्य सरकार की टिप्पणियों को विधेयक में शामिल करते हुए राज्य सरकार और सभी हितधारकों को भेजा जाना चाहिए ताकि इस पर एक आम सहमति बनाई जा सके.’

केंद्र सरकार के इस प्रस्ताव पर बिहार सरकार ने भी पूर्ण सहमति न देते हुए कड़े शर्तों के साथ इस विधेयक पर सहमति जताई थी.

द वायर ने अपनी पिछली रिपोर्ट में बताया था कि राष्ट्रीय जलमार्ग विधेयक पर केंद्र के दो प्रमुख विभाग नीति आयोग और वित्त मंत्रालय ने कड़ा विरोध जताया था.

पोत परिवहन मंत्रालय को यह चेताया गया था कि व्यापक विचार-विमर्श के बिना किसी जलमार्ग को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित करना सही नहीं होगा.

इतनी बड़ी संख्या में राष्ट्रीय जलमार्ग विकसित करने पर न सिर्फ केंद्र सरकार पर आर्थिक बोझ पड़ेगा बल्कि पर्यावरण को भी गहरा नुकसान होगा, जिसकी भरपाई मुश्किल है.

संसदीय समिति और विधायी विभाग के सलाह

आधिकारिक दस्तावेजों की जांच से पता चलता है कि केंद्र ने बिना व्यापक विचार-विमर्श के इस विधेयक को पारित किया. इसे लेकर संसदीय समिति के कई सदस्यों ने चिंता जाहिर की थी.

इसके अलावा केंद्र के विधायी विभाग ने ही पोत परिवहन मंत्रालय को सलाह दी थी कि सभी अंतरमंत्रालय और राज्यों से बातचीत के बाद ही विधेयक तैयार किया जाना चाहिए.

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केंद्र के विधायी विभाग के पत्र का अंश.

विधायी विभाग ने जनवरी 2015 में पोत परिवहन मंत्रालय को भेजे पत्र में लिखा था, ‘चूंकि राज्य सरकारों समेत अंतरमत्रालय परामर्श प्रक्रिया अभी पूरी नहीं हुई है, इसलिए मंत्रालय से गुजारिश है कि प्रक्रिया पूरी होने के बाद अपनी नीतियों को अंतिम रूप दे और फिर इसे कैबिनेट नोट में शामिल करे.’

हालांकि भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण ने कहा कि जहां तक परामर्श प्रक्रिया का सवाल है, मंत्रालय स्तर पर एक राय ली जा सकती है और उसे सुविधानुसार कैबिनेट नोट में शामिल किया जा सकता है.

बता दें कि कैबिनेट ने कुल 101 जलमार्गों को राष्ट्रीय घोषित करने के प्रस्ताव को 25 मार्च 2015 को मंजूरी दी थी. इसके बाद इस विधेयक को पांच मई 2015 को लोकसभा में पेश किया गया, जिसके बाद इसे जांचने के लिए परिवहन, पर्यटन और संस्कृति पर बनी संसद की स्थायी समिति के पास भेज दिया गया था.

इसके बाद समिति ने 12 अगस्त 2015 को इस विधेयक पर अपने सुझावों को सौंप दिया. फिर पोत परिवहन मंत्रालय ने समिति के कुछ सुझावों को शामिल करते हुए पुराने बिल में संशोधन किया और 101 के बजाय 106 नए राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित करने का प्रस्ताव पेश किया.

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राज्यों से सलाह करने को लेकर संसदीय समिति ने भी कई सवाल उठाए थे. 19 जून 2015 को हुई संसदीय समिति की बैठक की शब्दशः रिकॉर्डिंग (रिकॉर्ड ऑफ डिस्कशन) के मुताबिक समिति के सदस्य सपा नेता किरनमय नंदा ने राष्ट्रीय जलमार्ग की सूची में शामिल किए गए पूर्वी उत्तर प्रदेश की कई नदियों में पानी न होने और उस समय तक उत्तर प्रदेश सरकार की सहमति न लेने पर चिंता जताई थी.

यूपी सरकार की सहमति लेने के किरनमय नंदा के सवाल पर भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण के चेयरमैन अमिताभ वर्मा ने कहा था कि उनकी राज्य के मुख्य सचिव से मुलाकात हुई थी लेकिन अभी तक राज्य ने लिखित में सहमति नहीं जताई थी.

वहीं समिति की एक अन्य सदस्य माकपा नेता रिताब्रता बनर्जी ने कहा था कि पश्चिम बंगाल की 14 नदियों को इस सूची में शामिल किया गया, जिसमें से ज्यादातर बरसाती नदियां हैं. उन्होंने कहा, ‘इनमें से ज्यादातर में नाले के जैसा भी पानी नहीं है.’

उन्होंने इस संबंध में समिति के दौरे का हवाला देते हुए कहा था, ‘जब हम मदुरई में थे और तमिलनाडु की वैगाई नदी को पार कर रहे थे, वो पूरी तरह से खेल का मैदान हो चुका है, वहां पानी का निशान भी नहीं है.’

हालांकि इस पर वर्मा ने कहा था, ‘हमें हमेशा नदी की पूरी चौड़ाई में पानी की जरूरत नहीं होगी. हम आमतौर पर ये करते हैं कि हमारा 30-50 मीटर का चैनल होता है और हम उसे बनाए रखने की कोशिश करते हैं.’

संसदीय समिति के एक अन्य सदस्य कांग्रेस नेता केसी वेणुगोपाल ने कहा था कि हमारे पास एक संघीय ढांचा है. हमें कम से कम इस तरह का कोई विधेयक पारित करने से पहले सभी राज्यों की सहमति लेनी चाहिए थी.

वेणुगोपाल ने इस बात को लेकर भी चिंता जाहिर की कि ये नदियों को निजी हाथों में देने का तरीका हो सकता है.

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इस पर अमिताभ वर्मा ने कहा था कि अभी तक 10 राज्यों के जवाब आए हैं और बाकी राज्यों के आने बाकी है. राज्यों की सहमति के बिना कोई कार्य शुरू नहीं होगा. समिति की सदस्य अर्पिता घोष ने इस पर कहा था, ‘आप इन नदियों को कैसे चुन सकते हैं, जब इसमें पानी ही नहीं है.’

इसके अलावा जन अधिकार पार्टी (जेएपी) राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने इसे लेकर कहा था, ‘गांधीजी ने यातायात को शोषण का बहुत बेहतरीन रास्ता बताया था और उनकी बड़ी चिंता यह थी कि ये साधन और संसाधन कहीं गांव की संपदा लूटने का एक रास्ता या व्यवस्था तो नहीं? उन्होंने एक बात कही थी कि बाजार अपने उपभोक्ता की तलाश में गांव तक पहुंचने की व्यवस्था बना रहा है, न कि गांव अपनी व्यवस्था बना रहा है.’

हालांकि समिति में शामिल भाजपा के मनोज तिवारी, शत्रुघ्न सिन्हा ने इसका समर्थन किया था.

मनोज तिवारी ने कहा था, ‘अगर किसी नदी में पानी नहीं है तो हमारा देश इतना बड़ा है कि यहां एक तरफ बाढ़ आती है और दूसरी तरफ सूखा रहता है, अगर पानी नहीं है तो उसे लाने की व्यवस्था होनी चाहिए. जब हम नदियों को इंटरलिंक करने की योजना बनाते हैं तो हमें इस पर कहीं न कहीं सकारात्मक सोचना चाहिए कि यह विधेयक भारत के भविष्य के लिए बहुत जरूरी है.’

वहीं शत्रुघ्न सिन्हा ने कहा था कि वे इनलैंड वॉटरवेज ट्रांसपोर्टेशन का बहुत बड़ा हिमायती रहे हैं और उन्होंने इस संबंध में कुछ सुझाव भी दिए थे. इस समिति के अध्यक्ष तृणमूल कांग्रेस के सांसद डॉ. कंवर दीप सिंह थे.

संसदीय समिति ने 12 अगस्त 2015 को इस विधेयक पर अपने सुझावों को सौंपा था. समिति के कुछ सुझावों को शामिल करते हुए केंद्रीय कैबिनेट ने 9 दिसंबर 2015 को नए प्रस्ताव को मंजूरी दी और लोकसभा ने 21 दिसंबर 2015 और राज्यसभा ने 10 मार्च 2016 को इस विधेयक को पारित कर दिया था.

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