घरेलू स्तर पर बढ़ते दाम को नियंत्रित करने के लिए गेहूं के निर्यात पर तत्काल प्रभाव से रोक

सरकार ने रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध के कारण गेहूं की वैश्विक आपूर्ति में व्यवधान के मद्देनज़र निर्यात पर प्रतिबंध लगाया गया है. दोनों देश गेहूं के प्रमुख निर्यातक रहे हैं. कांग्रेस ने इस क़दम को ‘किसान विरोधी’ क़रार देते हुए कहा कि सरकार ने गेहूं की पर्याप्त खरीद नहीं की जिसके कारण ऐसी स्थिति पैदा हुई. The post घरेलू स्तर पर बढ़ते दाम को नियंत्रित करने के लिए गेहूं के निर्यात पर तत्काल प्रभाव से रोक appeared first on The Wire - Hindi.

सरकार ने रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध के कारण गेहूं की वैश्विक आपूर्ति में व्यवधान के मद्देनज़र निर्यात पर प्रतिबंध लगाया गया है. दोनों देश गेहूं के प्रमुख निर्यातक रहे हैं. कांग्रेस ने इस क़दम को ‘किसान विरोधी’ क़रार देते हुए कहा कि सरकार ने गेहूं की पर्याप्त खरीद नहीं की जिसके कारण ऐसी स्थिति पैदा हुई.

(फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: भारत ने घरेलू स्तर पर बढ़ती कीमतों को नियंत्रित करने के उपायों के तहत गेहूं के निर्यात पर तत्काल प्रभाव से प्रतिबंध लगा दिया है. आधिकारिक अधिसूचना से यह जानकारी मिली है.

हालांकि, विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) ने 13 मई को जारी अधिसूचना में कहा, ‘इस अधिसूचना की तारीख या उससे पहले जिस खेप के लिए अपरिवर्तनीय ऋण पत्र (एलओसी) जारी किए गए हैं, उसके निर्यात की अनुमति होगी.’

डीजीएफटी ने कहा, ‘गेहूं की निर्यात नीति पर तत्काल प्रभाव से प्रतिबंध लगाया जाता है.’

उसने यह भी स्पष्ट किया कि भारत सरकार द्वारा अन्य देशों को उनकी खाद्य सुरक्षा जरूरतों को पूरा करने के लिए और उनकी सरकारों के अनुरोध के आधार पर दी गई अनुमति के आधार पर गेहूं के निर्यात की अनुमति दी जाएगी.

एक अलग अधिसूचना में डीजीएफटी ने प्याज के बीज के लिए निर्यात शर्तों को आसान बनाने की घोषणा की. डीजीएफटी ने कहा, ‘प्याज के बीज की निर्यात नीति को तत्काल प्रभाव से सीमित श्रेणी के तहत रखा जाता है.’ पहले प्याज के बीज का निर्यात प्रतिबंधित था.

इस सप्ताह जारी आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि ईंधन और खाद्य पदार्थों की ऊंची कीमतों के कारण अप्रैल में खुदरा मुद्रास्फीति आठ साल के उच्च स्तर पर पहुंच गई.

रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध के कारण गेहूं की वैश्विक आपूर्ति में व्यवधान के मद्देनजर निर्यात पर प्रतिबंध लगाया गया है. रूस और यूक्रेन गेहूं के प्रमुख निर्यातक रहे हैं.

मजबूत वैश्विक मांग के कारण 2021-22 में भारत का गेहूं निर्यात बढ़कर 70 लाख टन यानी 2.05 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया.

डीजीएफटी के आंकड़ों के अनुसार, पिछले वित्त वर्ष में कुल गेहूं निर्यात में से लगभग 50 प्रतिशत खेप बांग्लादेश भेजी गई थी. पिछले साल इसी अवधि में 1,30,000 टन के मुकाबले देश ने इस साल लगभग 9,63,000 टन गेहूं का निर्यात किया.

भारत को 2022-23 में एक करोड़ टन गेहूं का निर्यात करने की उम्मीद थी. वाणिज्य मंत्रालय ने हाल ही में कहा था कि भारत गेहूं के निर्यात की खेप को बढ़ावा देने की संभावनाओं का पता लगाने के लिए नौ देशों-मोरक्को, ट्यूनीशिया, इंडोनेशिया, फिलीपींस, थाईलैंड, वियतनाम, तुर्की, अल्जीरिया और लेबनान में व्यापार प्रतिनिधिमंडल भेजेगा.

निजी व्यापारियों द्वारा भारी उठान और पंजाब-हरियाणा में कम आवक के कारण मौजूदा रबी विपणन सत्र में एक मई तक भारत की गेहूं खरीद भी 44 प्रतिशत घटकर 1.62 लाख टन रह गई है. सरकार ने एक साल पहले की अवधि में 2.88 लाख टन गेहूं की खरीद की थी. रबी विपणन सत्र अप्रैल से मार्च तक चलता है.

निर्यात के लिए अनाज की बढ़ती मांग के बीच निजी कंपनियों ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से अधिक कीमत पर गेहूं खरीदा है. केंद्र ने विपणन वर्ष 2022-23 में रिकॉर्ड 4.44 लाख टन गेहूं की खरीद का लक्ष्य रखा है, जबकि पिछले विपणन वर्ष में यह 4.33 लाख टन था.

केंद्रीय पूल के लिए कम खरीद के बीच केंद्र ने थोक उपभोक्ताओं को मुक्त बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत गेहूं की बिक्री रोक दी है और उन्हें अनाज खरीदने के लिए योजना के शुरू होने की प्रतीक्षा नहीं करने को कहा है.

गौरतलब है कि हाल ही में सरकार ने जून में समाप्त होने वाले फसल वर्ष 2021-22 के लिए गेहूं उत्पादन के अनुमान को 5.7 प्रतिशत घटाकर 10.5 करोड़ टन कर दिया है. पहले गेहूं उत्पादन 11 करोड़ 13.2 लाख टन रहने का अनुमान लगाया गया था.

अनुमान में गिरावट का कारण गर्मी की जल्द शुरुआत होने की वजह से फसल उत्पादकता प्रभावित होना बताया था.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, प्रमुख कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी ने कहा, ‘यह तथाकथित गरीब उपभोक्ता के नाम पर उठाया गया किसान विरोधी कदम है. अगर सरकार महंगाई को लेकर इतनी परेशान होती, तो कड़े प्रतिबंध का सहारा लेने के बजाय निर्यातों को धीरे-धीरे कम कर सकती थी. यह एक न्यूनतम निर्यात मूल्य (जिससे नीचे शिपमेंट नहीं हो सकता) या टैरिफ का रूप ले सकता था.’

उन्होंने कहा, ‘निर्यात प्रतिबंध उन किसानों, जिन्होंने आने वाले महीनों में कीमतों में बढ़ोतरी की उम्मीद में अपनी फसलें रोक रखी हैं, को भी सरकारी एजेंसियों को एमएसपी पर बेचने के लिए मजबूर कर सकता है.’

गुलाटी ने कहा, ‘सरकारी खरीद मुख्य रूप से इस कारण गिर गई है क्योंकि किसानों को निजी व्यापारियों और निर्यातकों को बेचने पर अधिक कीमत मिल रही है. यदि कम खरीद और सार्वजनिक स्टॉक का गिरना वाकई चिंता का विषय था, तो किसानों को एमएसपी (2,015 रुपये प्रति क्विंटल) पर 200-250 रुपये का बोनस देने से सरकार को कौन रोक रहा है? यदि वो अभी भी ऐसा करते हैं, तो निश्चित रूप से किसान उनके पास अधिक गेहूं लाएंगे. निर्यात पर प्रतिबंध किसानों पर एक निहित कर है.’

गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध ‘किसान विरोधी’ कदम: कांग्रेस

कांग्रेस ने गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के सरकार के कदम को ‘किसान विरोधी’ करार देते हुए शनिवार को दावा किया कि सरकार ने गेहूं की पर्याप्त खरीद नहीं की जिस कारण ऐसी स्थिति पैदा हुई कि उसे निर्यात पर रोक लगानी पड़ी.

पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने संवाददाताओं से कहा, ‘मेरा मानना है कि केंद्र सरकार पर्याप्त गेहूं खरीदने में विफल रही है. ऐसा नहीं है कि गेहूं की पैदावार कम हुई है. यह कुल मिलाकर पहले की तरह है. हो सकता है कि पहले के मुकाबले थोड़ी ज्यादा पैदा पैदावार हुई हो.’

उन्होंने कहा, ‘यह एक किसान विरोधी कदम है. मुझे हैरानी नहीं है क्योंकि यह सरकार कभी भी किसान हितैषी नहीं रही है.’

चिदंबरम ने कहा कि अगर पर्याप्त खरीद की गई होती तो गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने की जरूरत नहीं पड़ती.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, चिदंबरम ने कहा, ‘गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाना एक किसान विरोधी उपाय है. यह किसान को उच्च निर्यात कीमतों के लाभ से वंचित करता है. यह एक किसान विरोधी उपाय है.’

चिदंबरम ने कहा कि शुक्रवार को छत्तीसगढ़ के एक मंत्री ने उनसे कहा था कि वहां की सरकार ने 97 लाख टन धान की खरीद की है.

गेहूं निर्यात पर रोक लगाने के फैसले से भारत कृषक समाज नाखुश

किसान संगठन भारत कृषक समाज (बीकेएस) ने गेहूं निर्यात पर पाबंदी को लेकर शनिवार को नाखुशी जताते हुए कहा कि कृषि उत्पादों के निर्यात पर पाबंदी लगाना किसानों के लिए एक ‘अप्रत्यक्ष’ कर की तरह है.

बीकेएस ने कहा कि सरकार के इस कदम की वजह से किसान ऊंची वैश्विक कीमतों का लाभ नहीं उठा सकेंगे और भारत भी भरोसेमंद कारोबारी साझेदार के तौर पर अपनी विश्वसनीयता खो देगा.

बीकेएस के अध्यक्ष अजय वीर जाखड़ ने कहा, ‘यह दुख की बात है कि भारत ने गेहूं निर्यात पर पाबंदी लगा दी. कृषि उत्पादों के निर्यात पर रोक लगाना किसानों के लिए एक अप्रत्यक्ष कर है.’

उन्होंने कहा कि पाबंदी लगाने के कारण कृषि उत्पादों की मूल कीमत कम हो जाती है और किसानों को ऊंची लागत अदा करने पर भी जिंसों के बढ़ते दामों का लाभ नहीं मिल पाता.

जाखड़ ने कहा, ‘आज न केवल व्यापारी बल्कि किसान भी गेहूं का भंडार खो देंगे. निर्यात पर इस तरह की रोक के कारण ही किसान बाजार सुधारों पर भरोसा नहीं करते. इससे भरोसा और टूटता है.’

उन्होंने कहा दुनियाभर में खाद्य वस्तुओं की आसमान छूती कीमतों के मद्देनजर संयुक्त राष्ट्र ने भी देशों से अपील की है कि वे अचानक ऐसी घोषणाएं न करें. इस कदम के कारण भारत व्यापारिक साझेदार के रूप में भरोसा भी खो देगा.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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