गुजरातः विजय रूपाणी के इस्तीफ़े के बाद बेटी बोलीं- क्या नेताओं को संवेदनशील नहीं होना चाहिए

दिसंबर 2017 में दूसरी बार गुजरात के मुख्यमंत्री बने विजय रूपाणी ने 11 सितंबर को पद से इस्तीफ़ा दे दिया था. रूपाणी की बेटी राधिका ने एक फेसबुक पोस्ट के ज़रिये उन सभी लोगों को जवाब दिया है, जो उनके पिता की सरल छवि को लेकर उन पर निशाना साधे हुए थे.

दिसंबर 2017 में दूसरी बार गुजरात के मुख्यमंत्री बने विजय रूपाणी ने 11 सितंबर को पद से इस्तीफ़ा दे दिया था. रूपाणी की बेटी राधिका ने एक फेसबुक पोस्ट के ज़रिये उन सभी लोगों को जवाब दिया है, जो उनके पिता की सरल छवि को लेकर उन पर निशाना साधे हुए थे.

गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री विजय रूपाणी की बेटी राधिका रूपाणी की बचपन की तस्वीर (फोटो साभारः फेसबुक)

अहमदाबादः गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री विजय रूपाणी की बेटी राधिका ने रविवार को अपने पिता को लेकर एक भावुक फेसबुक पोस्ट लिखी.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, इस पोस्ट के जरिये राधिका ने उन सभी लोगों को जवाब दिया है, जो उनके पिता की मृदुभाषी और सरल छवि को लेकर उन पर निशाना साधे हुए थे.

लंदन में रह रही राधिका ने फेसबुक पोस्ट के जरिये कहा कि सितंबर 2002 में गांधीनगर में अक्षरधाम मंदिर पर हुए आतंकी हमले के दौरान मेरे पिता पहले शख्स थे, जिन्होंने वहां का दौरा किया था. वह मोदीजी (गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री) से पहले वहां पहुंच गए थे.

‘एक बेटी की नजरों से विजय रूपाणी’ शीर्षक से गुजराती में लिखी इस पोस्ट में राधिका ने कहा, ‘बहुत कम लोग जानते हैं कि ताउते (तूफान) और कोरोना के खतरों के दौरान मेरे पिता रात को 2.30 बजे तक काम करते थे और मुख्यमंत्री डैशबोर्ड और फोन कॉल्स के जरिये बंदोबस्त में जुटे रहते थे.’

राधिका के मुताबिक, उनके पिता का कार्यकाल एक कार्यकर्ता के तौर पर शुरू हुआ था. वह कई राजनीतिक पदों से होते हुए मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे थे.

राधिका ने कहा, ‘मेरे विचार से मेरे पिता का कार्यकाल 1979 में मोरबी बाढ़, अमरेली बादल फटना, कच्छ भूकंप, स्वामीनारायण मंदिर आतंकी हमला, गोधरा घटना, बनासकांठा बाढ़, ताउते से शुरू हुआ और यहां तक कि कोविड-19 के दौरान भी वह लगातार काम करते रहे.’

उन्होंने कहा, ‘2001 भूकंप के दौरान मेरे पिता भचाऊ में बचाव एवं पुनर्वास कार्य का प्रबंधन कर रहे थे. वह भूकंप के बारे में हमें समझाने के लिए उस समय मुझे और मेरे भाई ऋषभ को कच्छ ले गए थे.’

इस पोस्ट में रूपाणी परिवार की तस्वीरों को भी साझा किया गया है. राधिका ने कहा, ‘जब हम बच्चे थे, हमारे माता-पिता हमें रविवार को रेसकोर्स या सिनेमा हॉल नहीं बल्कि दो भाजपा कार्यकर्ताओं के घर ले जाते थे.’

राधिका ने ‘रूपाणी की मृदुभाषी छवि उनके खिलाफ गई’ शीर्षक से एक अखबार की हेडलाइन का उल्लेख करते हुए कहा, ‘क्या नेताओं में संवेदनशीलता और शालीनता नहीं होनी चाहिए? क्या हम एक नेता में ये जरूरी गुण नहीं तलाशते? उन्होंने एंटी लैंड ग्रैबिंग लॉ, लव जिहाद, गुजरात आतंकवाद नियंत्रण एवं संगठित अपराध अधिनियम जैसे कई कड़े फैसले लिए. सीएम डैशबोर्ड इसका सबूत हैं. क्या पूरा दिन गंभीर होकर घूमना, यही एक नेता की निशानी है?’

राधिका ने कहा, ‘हम घर में अक्सर इस पर चर्चा करते थे कि क्या मेरे पिता जैसा कोई साधारण शख्स भारतीय राजनीति में टिक सकता है, जहां भ्रष्टाचार और नकारात्मक फैली हुई है. मेरे पिता हमेशा कहते थे कि राजनीति और नेताओं की छवि भारतीय फिल्मों से प्रभावित होती है और हमें इस सदियों पुरानी धारणा को बदलना होगा.’

‘उन्होंने कभी गुटबाजी का समर्थन नहीं किया और यही उनकी विशेषता थी. कुछ राजनीतिक विश्लेषक सोच रहे होंगे कि यह विजयभाई के कार्यकाल का अंत है लेकिन मेरे विचार से बिना परेशानी या प्रतिरोध के बजाए आरएसएस और भाजपा के सिद्धांतों के अनुरूप बिना सत्ता के लालच के पद छोड़ देना बेहतर है.’

बता दें कि राजकोट से विधायक रूपाणी ने 11 सितंबर को मुख्यमंत्री के रूप में अपने पांच साल के कार्यकाल के बाद इस्तीफा दे दिया था.

इसके बाद भाजपा के टिकट पर पहली बार विधायक बने भूपेंद्र पटेल ने 13 सितंबर को गुजरात के 17वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली.