गुजरात के सिविल अस्पताल कालकोठरी से भी बदतर हैं: हाईकोर्ट

गुजरात देश में सबसे ज्यादा कोरोना मौतों वाले राज्यों में से एक है, जिसमें से सिविल अस्पताल में 377 मौतें हुई हैं जो कि राज्य की कुल मौतों का लगभग 45 फीसदी है. The post गुजरात के सिविल अस्पताल कालकोठरी से भी बदतर हैं: हाईकोर्ट appeared first on The Wire - Hindi.

गुजरात देश में सबसे ज्यादा कोरोना मौतों वाले राज्यों में से एक है, जिसमें से सिविल अस्पताल में 377 मौतें हुई हैं जो कि राज्य की कुल मौतों का लगभग 45 फीसदी है.

गुजरात हाईकोर्ट. (फोटो साभार: gujarathighcourt.nic.in)

गुजरात हाईकोर्ट. (फोटो साभार: gujarathighcourt.nic.in)

नई दिल्ली: गुजरात हाईकोर्ट ने कोविड-19 महामारी को ‘कृत्रिम रूप से नियंत्रित करने’ की कोशिश करने के लिए विजय रूपाणी के नेतृत्व वाली भाजपा राज्य सरकार की कड़ी आलोचना की और अहमदाबाद के सिविल अस्पताल को ‘एक कालकोठरी जितना अच्छा, या इससे भी बुरा’ बताया.

गुजरात देश में सबसे ज्यादा कोरोना मौतों वाले राज्यों में से एक है, जिसमें से सिविल अस्पताल में 377 मौतें हुई हैं जो कि राज्य की कुल मौतों का लगभग 45 फीसदी है.

कोरोना महामारी के संबंध में दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहे जस्टिस जेएन पर्दीवाला और इलेश वोरा की पीठ ने राज्य सरकार को स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए कई महत्वपूर्ण निर्देश दिए.

कोर्ट ने कहा, ‘यह बहुत ही दुखद और दर्दनाक है कि आज की तारीख में सिविल अस्पतालों की स्थिति दयनीय है. हमें यह कहते हुए बहुत दुख हो रहा है कि अहमदाबाद के सिविल अस्पताल बेहद खराब स्थिति में हैं.’

राज्य की स्वास्थ्य इंफ्रास्ट्रक्चर को ‘डूबता हुआ टाइटेनिक’ करार देते हुए पीठ ने कहा, ‘जैसा कि हमने पहले कहा है कि सिविल अस्पताल मरीजों के इलाज के लिए है. हालांकि, ऐसा प्रतीत होता है कि आज की तारीख में यह एक कालकोठरी के जितना अच्छा है. ये कालकोठरी से भी बदतर हो सकता है.’

हाईकोर्ट ने अतिरिक्त मुख्य सचिव पंकज कुमार, सचिव मिलिंद तोरवाने और प्रमुख सचिव, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण जयंती रवि, जो सिविल अस्पताल के इंचार्ज है, को राज्य में गंभीर स्वास्थ्य संकट के लिए जिम्मेदार ठहाराया.

कोर्ट ने मरीजों और कर्मचारियों को होने वाली समस्याओं के लिए राज्य के स्वास्थ्य मंत्री नितिन पटेल और मुख्य सचिव अनिल मुकीम की भी खिंचाई की. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक कोर्ट ने कहा कि राज्य में वेंटिलेटर की कमी होने के कारण मृत्यू दर अधिक है.

पीठ ने पूछा, ‘क्या राज्य सरकार इस तथ्य से अवगत है कि पर्याप्त संख्या में वेंटिलेटर न होने के कारण सिविल अस्पताल में मरीज मर रहे हैं? वेंटिलेटर्स की इस समस्या से निपटने के लिए राज्य सरकार क्या तैयारी कर रही है.’

अदालत ने सरकार के टेस्टिंग प्रोटोकॉल की भी आलोचना की जब राज्य ने अदालत से कहा कि वे तय करेंगे कि निजी प्रयोगशालाएं कोरोना वायरस के लिए नमूनों का परीक्षण कब शुरू करेंगी.

राज्य सरकार ने कहा, ‘कई मौकों पर यह देखा गया है कि निजी प्रयोगशालाओं द्वारा अनावश्यक टेस्टिंग किया जा रहा है और इसलिए राज्य ने निजी प्रयोगशालाओं के लिए ये तय करने का निर्णय लिया है कि वे कब टेस्टिंग करेंगे.’

उन्होंने आगे कहा, ‘राज्य ने सरकारी प्रयोगशालाओं में ही परीक्षण करने का निर्णय लिया है ताकि मरीज अनावश्यक खर्च से बच सकें. निजी प्रयोगशालाओं को परीक्षण करने की अनुमति होगी तब दी जाएगी जब सरकारी प्रयोगशालाओं की क्षमता समाप्त हो जाएगी.’

वर्तमान में राज्य में केवल 19 सरकारी प्रयोगशालाएं हैं जो कि कोरोनो वायरस की जांच के लिए आरटी-पीसीआर परीक्षण करती हैं और अभी तक केवल 1,78,068 नमूनों का परीक्षण किया गया है.

इस आधार पर अदालत ने सरकार से तुरंत टेस्टिंग किट खरीदने और निजी लैब को सरकारी दरों पर परीक्षण करने में सक्षम बनाने के लिए कहा.

पीठ ने कहा कि राज्य सरकार अब तक केवल ‘गुजरात राज्य में मामलों की संख्या को कृत्रिम रूप से नियंत्रित करने की कोशिश कर रही है.’

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