अंडमान: 130 वर्ग किलोमीटर से अधिक वन भूमि पर विकास परियोजना को मंज़ूरी, कटेंगे 8.5 लाख पेड़

केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने ग्रेट निकोबार द्वीप की करीब 130.75 वर्ग किलोमीटर वन भूमि को एक विकास परियोजना के लिए इस्तेमाल करने की अनुमति दी है, जबकि स्वयं मंत्रालय के अनुमान के मुताबिक़, प्रस्तावित वनों की कटाई से सदाबहार उष्णकटिबंधीय वन प्रभावित होंगे. The post अंडमान: 130 वर्ग किलोमीटर से अधिक वन भूमि पर विकास परियोजना को मंज़ूरी, कटेंगे 8.5 लाख पेड़ appeared first on The Wire - Hindi.

केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने ग्रेट निकोबार द्वीप की करीब 130.75 वर्ग किलोमीटर वन भूमि को एक विकास परियोजना के लिए इस्तेमाल करने की अनुमति दी है, जबकि स्वयं मंत्रालय के अनुमान के मुताबिक़, प्रस्तावित वनों की कटाई से सदाबहार उष्णकटिबंधीय वन प्रभावित होंगे.

ग्रेट निकोबार द्वीप की एक तस्वीर. (फोटो: प्रसून गोस्वामी/विकिमीडिया कॉमंस)

नई दिल्ली: केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने ग्रेट निकोबार द्वीप की वन भूमि में करीब 130.75 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र को एक विकास परियोजना के लिए परिवर्तित करने की सैद्धांतिक अनुमति दे दी है, जहां एक ट्रांसशिपमेंट पोर्ट, एक हवाई अड्डा, एक बिजली संयंत्र और एक ग्रीनफील्ड टाउनशिप खुलेगी.

द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, हालांकि परियोजना की पर्यावरणीय लागत बहुत अधिक है.

72,000 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत वाली अंडमान और निकोबार द्वीप समूह एकीकृत विकास निगम (एएनआईआईडीसीओ) की परियोजना में लगभग 8.5 लाख पेड़ों की कटाई होगी.

घने जंगलों वाले 900 वर्ग किमी क्षेत्र का लगभग 15 प्रतिशत हिस्सा- जो द्वीप पर दुर्लभ वनस्पतियों और जीवों का आवास है – प्रभावित होगा.

वन भूमि के उपयोग में प्रस्तावित यह परिवर्तन हाल के दिनों में सबसे बड़ा है. जुलाई में लोकसभा में सरकार द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक देश भर में पिछले तीन सालों में परिवर्तित की गईं सभी वन भूमि (554 वर्ग किलोमीटर) का यह एक चौथाई है.

केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के स्वयं के अनुमानों के मुताबिक, प्रस्तावित वनों की कटाई से सदाबहार उष्णकटिबंधीय वन प्रभावित होंगे.

मंत्रालय के आधिकारिक दस्तावेज में कहा गया है कि यह द्वीप दुनिया में सबसे अच्छी तरह से संरक्षित उष्णकटिबंधीय जंगलों का घर है, जहां वनस्पतियों की लगभग 650 प्रजातियां और जीवों की 330 प्रजातियां पाई जाती हैं. इसके अलावा यह अन्य स्थानिक प्रजातियों या जीव-जंतुओं का भी घर है,

परियोजना को मंजूरी केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के वन संरक्षण विभाग से 27 अक्टूबर को मिली थी, जो द्वीप प्रशासन द्वारा 7 अक्टूबर 2020 को प्रस्तुत मांग की ‘सावधानीपूर्वक जांच’ के बाद दी गई थी.

वन सहायक महानिरीक्षक सुनीत भारद्वाज ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के स्तर पर मांग को आगे भेजा था, उन्होंने कहा कि अनुमति ‘वन सलाहकार समिति (एफएसी) की सिफारिशों’ और मंत्रालय में सक्षम प्राधिकारी द्वारा इसकी स्वीकार्यता के आधार पर दी गई.

उपलब्ध विवरण के मुताबिक, ‘इस मामले में शामिल परियोजना अधिकारियों द्वारा ‘प्रतिपूरक वनीकरण’ के लिए एक विस्तृत योजना तैयार करने के बाद आवेदन पर कार्रवाई की गई थी.

‘प्रतिपूरक वनीकरण’ हरियाणा में ‘गैर-अधिसूचित वन भूमि’ पर किया जाएगा, लेकिन उस द्वीप पर नहीं जहां वन भूमि प्रभावित होगी. विकास परियोजना के तहत पर्यावरण प्रबंधन योजना (ईएमपी) के लिए 3,672 करोड़ रुपये निर्धारित किए गए हैं.

हालांकि, परियोजना की अंतिम पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (ईआईए) रिपोर्ट में इस प्रतिपूरक वनीकरण की लागत 970 करोड़ रुपये होने का अनुमान लगाया गया था. ईआईए मार्च 2022 में तैयार किया गया था और इसे केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति द्वारा स्वीकार किया गया था

हालांकि, अंतिम ईआईए रिपोर्ट में कहा गया है कि मध्य प्रदेश में 260 वर्ग किमी भूमि पर प्रतिपूरक वनीकरण किया जाएगा. इस बात का कोई विवरण उपलब्ध नहीं है कि इसे हरियाणा से मध्य प्रदेश में क्यों बदला गया, सिवाय इसके कि ‘एफएसी की सिफारिशों’ के कारण ऐसा किया गया.

हालांकि, केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की वेबसाइट पर कोई भी जानकारी या बैठक के मिनटों का जिक्र नहीं है जहां मंत्रालय के स्तर पर ऐसा फैसला लिया गया. फिलहाल, अंडमान और निकोबार वन विभाग का एक पत्र यह प्रमाणित करता है कि मध्य प्रदेश सरकार ने प्रतिपूरक वनरोपण के लिए विवरण पेश किया है.

द हिंदू के अनुसार, केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के अधिकारियों की ओर से प्रतिपूरक वनीकरण कार्यक्रम के स्थान परिवर्तन की आवश्यकता के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल रही है.

दूसरी तरफ, मध्य प्रदेश सरकार को अक्टूबर में भेजे एक आरटीआई आवेदन को राज्य की सुरक्षा, रणनीतिक, वैज्ञानिक या आर्थिक हितों का हवाला देते हुए आरटीआई अधिनियम की धारा 8.1(ए) के तहत खारिज कर दिया गया था.

इस बीच, पर्यावरण कार्यकर्ता अधिकारियों पर वन संरक्षण से संबंधित नियमों के उल्लंघन में शामिल होने का आरोप लगा रहे हैं.

पर्यावरण के मुद्दों पर शोध कर रहे एक शोधकर्ता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमें देश के कुछ बेहतरीन उष्णकटिबंधीय जंगलों के विनाश के बारे में सुनने में आ रहा है, जबकि इसी समय हमारे पर्यावरण मंत्री मिस्त्र में चल रहे संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में दुनिया को बता रहे हैं कि ‘भारत समाधान का एक हिस्सा है, समस्या का नहीं.’ यहां कथनी और करनी में बड़ा अंतर नजर आता है.’

भाकपा नेता ने लिखा प्रधानमंत्री मोदी को पत्र 

इस बीच, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के नेता एवं सांसद बिनॉय विश्वम ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर इस मंजूरी का विरोध किया है और कहा है कि इससे क्षेत्र का पारिस्थितिक संतुलन खतरे में पड़ जाएगा.

विश्वम ने पत्र में लिखा कि ग्रेट निकोबार द्वीप में 130.75 वर्ग किलोमीटर के वन क्षेत्र के परिवर्तन के लिए मंजूरी दिया जाना निंदनीय है. उन्होंने कहा कि ग्रेट निकोबार द्वीप दुनिया में सबसे बेहतर तरीके से संरक्षित उष्णकटिबंधीय वनों में से एक है, जिसमें वनस्पतियों की 650 प्रजातियां और स्थानिक प्रजातियों सहित जीवों की 330 प्रजातियां हैं.

उन्होंने कहा, ‘सरकार के 8.5 लाख पेड़ों को काटने के फैसले से इस पुराने वन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा. इससे क्षेत्र के पारिस्थितिक संतुलन को नुकसान होगा और इन वनस्पतियों एवं जीवों का भविष्य खतरे में पड़ जाएगा.’

उन्होंने कहा, ‘सरकार ने पेड़ों को काटने के एवज में वनरोपण करने की जो बात की है, वह अनुचित है क्योंकि इस परियोजना के तहत सरकार द्वारा वनों की अंधाधुंध कटाई के कारण नष्ट हुई पारिस्थितिकी संपदा को कहीं और नहीं उगाया जा सकता.’

उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि सरकार पर्यावरण को अपने स्वामित्व वाली वस्तु समझना बंद करे. उन्होंने प्रधानमंत्री से अनुरोध किया कि वन क्षेत्र के परिवर्तन के लिए दी गई मंजूरी को पर्यावरण के हित के लिए जल्द से जल्द रद्द किया जाए.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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