106 नए राष्ट्रीय जलमार्ग बनाने के प्रस्ताव पर वित्त मंत्रालय, नीति आयोग ने जताई थी आपत्ति

विशेष रिपोर्ट: पोत परिवहन मंत्रालय को यह चेताया गया था कि व्यापक विचार-विमर्श के बिना किसी जलमार्ग को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित करना सही नहीं होगा. इतनी बड़ी संख्या में राष्ट्रीय जलमार्ग विकसित करने पर न सिर्फ केंद्र सरकार पर आर्थिक बोझ पड़ेगा बल्कि पर्यावरण को भी गहरा नुकसान होगा, जिसकी भरपाई मुश्किल है. The post 106 नए राष्ट्रीय जलमार्ग बनाने के प्रस्ताव पर वित्त मंत्रालय, नीति आयोग ने जताई थी आपत्ति appeared first on The Wire - Hindi.

विशेष रिपोर्ट: पोत परिवहन मंत्रालय को यह चेताया गया था कि व्यापक विचार-विमर्श के बिना किसी जलमार्ग को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित करना सही नहीं होगा. इतनी बड़ी संख्या में राष्ट्रीय जलमार्ग विकसित करने पर न सिर्फ केंद्र सरकार पर आर्थिक बोझ पड़ेगा बल्कि पर्यावरण को भी गहरा नुकसान होगा, जिसकी भरपाई मुश्किल है.

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(फोटो साभार: भारत अन्तर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण)

नई दिल्ली: देश के 106 जलमार्गों को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित करने के फैसले को लेकर केंद्र के दो प्रमुख विभाग नीति आयोग और वित्त मंत्रालय ने कड़ा विरोध जताया था.

असल में पोत परिवहन मंत्रालय को यह चेताया गया था कि उचित प्राथमिकता और व्यापक विचार-विमर्श के बिना किसी जलमार्ग को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित करना सही नहीं होगा. यह भी कहा गया था कि अगर ये सभी जलमार्ग राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किए जाते हैं तो केंद्र सरकार पर पैसे का बहुत भार पड़ेगा और जलीय इकोसिस्टम को ऐसे नुकसान हो सकते हैं जिसे कभी ठीक नहीं किया जा सकता है.

द वायर  द्वारा सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत प्राप्त किए गए आधिकारिक दस्तावेजों से ये खुलासा हुआ है कि वित्त मंत्रालय ने एक ही बार में इतने सारे जलमार्गों को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित करने के फैसले को लेकर कड़ा ऐतराज जाहिए किया था.

फाइल नोटिंग और आधिकारिक पत्राचारों की करीबी जांच से यह भी पता चलता है कि वित्त मंत्रालय की टिप्पणियों को केंद्रीय कैबिनेट के सामने विचार के लिए रखा ही नहीं गया और कैबिनेट ने बिना इसके ही राष्ट्रीय जलमार्ग विधेयक, 2015 के प्रस्ताव को 25 मार्च 2015 को मंजूरी दे दी थी.

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वित्त मंत्रालय के पत्र का अंश.

पोत परिवहन मंत्रालय द्वारा 19 दिसंबर 2014 को भेजे गए ड्राफ्ट कैबिनेट नोट का जवाब देते हुए वित्त मंत्रालय के व्यय विभाग ने 23 मार्च 2015 को कहा, ‘अगर ये सभी जलमार्ग राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किए जाते हैं तो केंद्र सरकार के लिए इनका निर्माण करना बहुत ज्यादा महंगा होगा. केवल बहुत बड़े जलमार्ग ही राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किए जाने चाहिए. मध्यम और छोटे जलमार्ग राज्य जलमार्ग घोषित किए जाने चाहिए और इन्हें बनाने की जिम्मेदारी राज्य सरकार की होनी चाहिए.’

मंत्रालय ने आगे लिखा था, ‘राष्ट्रीय जलमार्ग के निर्माण के लिए ड्रेजिंग के जरिए न्यूनतम जलप्रवाह को सुनिश्चित करने, चैनल मार्किंग के माध्यम से नदी प्रशिक्षण और अनुकूल नेविगेशन वातावरण, रात में नौवहन के लिए सहायक उपकरण जैसे कि जीपीएस, रिवर मैप्स और चार्ट्स, उपलब्ध जहाजों और टर्मिनल निर्माण जैसे बुनियादी ढांचे के निर्माण से भारी वित्तीय बोझ आएगा.’

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मंत्रालय ने कहा कि जलमार्ग के लिए नदी के एक किलोमीटर क्षेत्र के निर्माण में 10-12 करोड़ रुपये खर्च होंगे और अगर इन सभी जलमार्गों को विकसित किया जाता है तो हजारों करोड़ रुपये खर्च होंगे, अन्य महत्वाकांक्षी योजनाओं को देखते हुए इसके लिए पैसा देना भारत सरकार के लिए काफी मुश्किल होगा.

मालूम हो कि पोत परिवहन मंत्रालय भारत के 25 राज्यों में 111 राष्ट्रीय जलमार्गों (पहले से घोषित किए गए पांच राष्ट्रीय जलमार्ग समेत) को विकसित करने की योजना को लागू कर रहा है. तत्कालीन पोत परिवहन मंत्री नितिन गडकरी की अगुवाई में ये विधेयक पारित किया गया था.

वित्त मंत्रालय ने कहा कि सभी प्रस्तावित जलमार्गों के निर्माण के लिए खर्च होने वाली राशि का आकलन पहले किया जाना चाहिए ताकि एक सही निर्णय लिया जा सके. हालांकि पोत परिवहन मंत्रालय ने इस मांग को खारिज करते हुए कहा कि प्रस्तावित खर्च राशि का आकलन एक्ट बनने के बाद केस-टू-केस बेसिस पर किया जाएगा.

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(फोटो साभार: भारत अन्तर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण)

मंत्रालय ने यह भी कहा था कि जलमार्ग का निर्माण करने और नदी के सतह पर जहाज चलाने से जलीय इकोसिस्टम को ऐसे नुकसान पहुंच सकते हैं जिसे कभी ठीक नहीं किया जा सकता है इसलिए इस संदर्भ में पर्याप्त पर्यावरणीय अध्ययन किया जाना चाहिए.

बता दें कि अक्टूबर 1986 से लेकर नवंबर 2008 तक कुल पांच जलमार्ग राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किए गए हैं. गंगा-भागीरथी-हुगली नदी के इलाहाबाद से हल्दिया तक के क्षेत्र को राष्ट्रीय जलमार्ग-1 घोषित किया गया है.

इसके अलावा ब्रह्मपुत्र नदी की सादिया-धुबरी क्षेत्र को राष्ट्रीय जलमार्ग-2, पश्चिमी तट नहर और चंपाकरा एवं उद्योगमंडल नहर के कोल्लम-कोट्टापुरम क्षेत्र को राष्ट्रीय जलमार्ग-3, काकीनाडा-पुडुचेरी मार्गऔर गोदावरी और कृष्णा नदी को राष्ट्रीय जलमार्ग-4 और पूर्वी तट नहर के साथ ब्राह्मणी एवं महानदी डेल्टा को राष्ट्रीय जलमार्ग-5 घोषित किया गया है.

इन पांच में से अभी तक पहले तीन जलमार्ग ही ठीक-ठाक तरीके से काम कर रहे हैं. बाकी के दो जलमार्गों पर अभी परिचालन का काम शुरू नहीं हो पाया है.

वित्त मंत्रालय ने अपने दो पेज के नोट में कहा कि इन पांचों जलमार्गों को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किए जाने से पहले और बाद में आए बदलावों पर एक विस्तृत अध्ययन किया जाना चाहिए और नए राष्ट्रीय जलमार्ग बनाने से पहले इन अनुभवों को सही तरीके से समझा जाना चाहिए. इस पांच जलमार्गों पर ट्रैफिक अपर्याप्त है.

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वित्त मंत्रालय की टिप्पणियों के साथ 25 मार्च की तारीख में ये ड्राफ्ट नोट तैयार किया गया था लेकिन इसे जारी नहीं किया गया.

खास बात यह है कि राष्ट्रीय जलमार्ग विधेयक, 2015 पर विचार करने के लिए 25 मार्च 2015 को हुई केंद्रीय कैबिनेट की बैठक के सामने वित्त मंत्रालय की इन टिप्पणियों को रखा ही नहीं गया था.

द वायर  द्वारा प्राप्त किए गए फाइल नोटिंग और पत्राचार से पता चलता है कि वित्त मंत्रालय की आपत्तियां और इस पर पोत परिवहन मंत्रालय की जवाब के साथ 25 मार्च की तारीख में ही एक ड्राफ्ट नोट तैयार किया गया और इसे कैबिनेट के सामने रखा जाना था.

लेकिन इसे जारी नहीं किया जा सका और कैबिनेट ने इसके बिना ही 25 मार्च 2015 को प्रस्ताव को मंजूरी दे दी.

सिर्फ वित्त मंत्रालय ने ही नहीं बल्कि नीति आयोग ने भी इस प्रस्ताव पर सहमति नहीं जताई थी. इसके अलावा जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा मंत्रालय ने भी इस पर कुछ आपत्तियां जाहिर की थीं.

पांच फरवरी 2015 को भेजे अपने जवाब में नीति आयोग ने कहा कि जिन जलमार्गों को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित करने का प्रस्वाव रखा गया है, उसे लेकर ये चर्चा नहीं हुई कि आखिर किस आधार पर इन्हें राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किया जा रहा है.

आयोग के यातायात विभाग ने अपने पत्र में लिखा, ‘सबसे पहले किसी भी नदी को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित करने के लिए कुछ व्यापक मापदंड जैसे कि उद्योगों से संपर्क, पर्यावरण प्रभाव आकलन, पूरे साल में पानी की मौजूदगी, नौपरिवहन इत्यादि तय किए जाने चाहिए.’

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नीति आयोग की टिप्पणी.

आयोग ने कहा था कि नदियों को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित करने के लिए प्राथमिकता तय करने की आवश्यकता है. बिना प्राथमिकता के सभी को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित करने से स्थिति नहीं सुधरेगी. चूंकि जो पहले से राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किए जा चुके हैं वो ज्यादा ट्रैफिक ले जाने में सक्षम नहीं है, इसलिए और राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित करने से कोई फायदा नहीं होगा. वित्त मंत्रालय ने भी अपने पत्र में इस बात पर जोर दिया था.

वहीं इस संदर्भ में प्राप्त आरटीआई दस्तावेजों से यह भी पता चलता है कि जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा मंत्रालय ने 30 जनवरी 2015 को भेजे अपने पत्र में पानी की न्यूनतम गहराई बनाए रखने के लिए पानी की मात्रा का अनुमान लगाने की जरूरत बताई थी. 

हालांकि पोत परिवहन मंत्रालय ने इस मांग को खारिज कर दिया था, जबकि संसदीय समिति ने भी इसकी सिफारिश की थी.

मंत्रालय ने लिखा, ‘नौवहन के लिए प्रस्तावित नदी के हिस्सों/नहरों में पानी की न्यूनतम गहराई बनाए रखने के लिए पूरे वर्ष में एक सप्ताह/10 दिन के आधार पर पानी की मात्रा का अनुमान लगाने की आवश्यकता है ताकि पीने, सिंचाई और पानी की अन्य मांगों पर प्रभाव न पड़े.’

जल मंत्रालय ने यह भी कहा था कि इस एक्ट का इस मंत्रालय की नदी जोड़ो परियोजना के साथ तालमेल होना चाहिए और किसी भी नदी में काम शुरू करने से पहले मंत्रालय के साथ मिलकर तकनीकी सम्भाव्यता रिपोर्ट तैयार की जानी चाहिए.

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जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय का पत्र.

कैबिनेट ने कुल 101 जलमार्गों को राष्ट्रीय घोषित करने के प्रस्ताव को 25 मार्च 2015 को मंजूरी दी थी. इसके बाद इस विधेयक को पांच मई 2015 को लोकसभा में पेश किया गया, जिसके बाद इसे जांचने के लिए परिवहन, पर्यटन और संस्कृति पर बनी संसदीय स्थायी समिति के पास भेज दिया गया.

इसके बाद समिति ने 12 अगस्त 2015 को इस बिल पर अपने सुझावों को सौंप दिया. फिर पोत परिवहन मंत्रालय ने समिति के कुछ सुझावों को शामिल करते हुए पुराने बिल में संशोधन किया और 101 के बजाय 106 नए राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित करने का प्रस्ताव पेश किया.

केंद्रीय कैबिनेट ने 9 दिसंबर 2015 को नए प्रस्ताव को मंजूरी दी और लोकसभा ने 21 दिसंबर 2015 और राज्यसभा ने 10 मार्च 2016 को इस विधेयक को पारित किया.

संसदीय समिति द्वारा इस विधेयक को जांचने के बाद पोत परिवहन मंत्रालय ने दोबारा सभी मंत्रालयों से सुझाव मांगे थे. आरटीआई के तहत प्राप्त दस्तावेज दर्शाते हैं कि इस बार भी वित्त मंत्रालय और नीति आयोग ने नोट का समर्थन नहीं किया था.

इसके अलावा जल मंत्रालय और पर्यावरण मंत्रालय ने भी कुछ आपत्तियां जाहिर की थी. वित्त मंत्रालय के व्यय विभाग ने लिखा, ‘सभी अंतर्देशीय जलमार्गों को राष्ट्रीय जलमार्ग के रूप में घोषित किए जाने के लिए ऐसा एक ब्लैंकेट अनुमोदन भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची के आधारभूत सिद्धांतों के विरुद्ध है.’

वित्त मंत्रालय ने कहा कि सातवीं अनुसूची के अंतर्गत सभी तीनों सूचियों में अंतर्देशीय जलमार्ग निहित है जिनका आशय है कि केवल चयनित जलमार्गों को ही राष्ट्रीय जलमार्ग का नाम दिया जा सकता है जबकि अन्य राज्य जलमार्गों के रूप में प्रचलित किए जाने चाहिए.

मंत्रालय ने आगे कहा, ‘जलमार्गों पर सड़क बनाने का नियम स्थापित करने के लिए इतनी बड़ी संख्या में जलमार्गों को राष्ट्रीय जलमार्गों के रूप में घोषित किए जाने की आवश्यकता नहीं है. कुछ चयनित जलमार्ग जिन पर सापेक्षिक रूप से अधिक यातायात होता है और भविष्य में इसमें पर्याप्त मात्रा में यातायात बढ़ने की संभावना होती है, को ही केवल राष्ट्रीय जलमार्गों के रूप में घोषित किया जा सकता है.’

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वित्त मंत्रालय ने अपनी पुरानी बात दोहराते हुए पोत परिवहन मंत्रालय को चेताया था कि यदि इतनी बड़ी संख्या में जलमार्ग राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किए जाते हैं तो भारत सरकार के लिए अपने संसाधनों से इनके विकास के लिए वित्त प्रदान करना असंभव हो जाएगा.

वहीं, नीति आयोग ने दूसरी बार अपनी टिप्पणी देते हुए कहा कि बिना किसी गहन अध्ययन के इतनी भारी संख्या में राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित करना सही रणनीति नहीं है. आयोग ने विश्व बैंक के एक वर्किंग पेपर का हवाला देते हुए कहा कि उसमें इस बात की पुष्टि हुई है और कहा गया है कि किसी भी जलमार्ग का विकास इंजीनियरिंग डिजाइन मापदंड के बजाय उसके ट्रैफिक क्षमता के आधार पर किया जाना चाहिए.

आयोग ने लिखा, ‘ये बिल्कुल साफ है कि सभी राष्ट्रीय जलमार्गों को विकसित करने के लिए वित्तीय और तकनीकी क्षमता उपलब्ध नहीं है जब तक कि ट्रैफिक क्षमता और वाणिज्यिक औचित्य के आधार पर एक अच्छी तरह से विचार न किया गया हो.’

9 अक्टूबर 2015 को पोत परिवहन मंत्रालय द्वारा भेजे गए नोट का जवाब देते हुए पर्यावरण मंत्रालय ने लिखा कि इस विधेयक में शामिल की गई कुछ नदियां सदाबहार नहीं हैं और उसमें पर्याप्त मात्रा में पानी नहीं है, ऐसी स्थिति में इन नदियों में नौवहन/नौपरिवहन संदेह के घेरे में हैं.

मंत्रालय ने सुझाव दिया कि इसलिए ऐसी नदियों को विधेयक में शामिल करने से पहले तकनीकी-आर्थिक व्यवहार्यता अध्ययन किया जाना चाहिए. हालांकि पोत परिवहन मंत्रालय ने कहा कि विधेयक पारित होने के बाद किसी नदी पर विकास कार्य से पहले ये अध्ययन कराया जाएगा.

पोत परिवहन मंत्रालय का पक्ष

पोत परिवहन मंत्रालय का कहना है कि पूर्व में ये देखा गया है कि किसी जलमार्ग को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित करने में काफी समय लगता है. बराक नदी का मामला देखें तो आठ साल बाद भी इसे राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित नहीं किया जा सका. जलमार्गों पर परिवहन के वैकल्पिक माध्यम के विकास को ध्यान में रखते हुए किसी जलमार्ग को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित करने में लगने वाले समय को काफी कम करना होगा. इसलिए इतने सारे जलमार्गों को एक साथ राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किया गया.

हालांकि द वायर  द्वारा प्राप्त किए गए दस्तावेजों से पता चलता है कि किसी जलमार्ग को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किए जाने के बाद भी उस पर वास्तविक कार्य शुरू करने में 9 से 10 साल का समय लगेगा. मंत्रालय के ड्राफ्ट कैबिनेट नोट में लिखा है कि राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किए जाने के बाद पर्यावरण, वन्यजीव जैसे कई क्लीयरेंस और वित्तीय स्वीकृति लेने में 2-3 साल का समय लगेगा.

इसके बाद राष्ट्रीय जलमार्ग के विकास कार्य में तीन से चार साल का समय लगेगा. इस तरह राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित करने के बाद उसमें नौपरिवहन के लिए पूरी तरह तैयार करने में 6 से 7 साल का समय लगेगा. कुल मिलाकर देखें तो इसके वास्तविक उपयोग की शुरुआत होने में 9 से 10 साल का समय लग जाएगा.

पर्यावरण कार्यकर्ताओं का भी यही मानना है कि अगर व्यापक विचार-विमर्श के बिना राष्ट्रीय जलमार्ग बनाए जाते हैं तो नदी के स्वास्थ्य और उसमें रहने वाले जीवों पर काफी बुरा प्रभाव पड़ सकता है.

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