जम्मू कश्मीर: प्रेस काउंसिल की जांच टीम के दौरे के दौरान भी जारी रहा पत्रकारों का उत्पीड़न

भारतीय प्रेस परिषद ने जम्मू कश्मीर में पत्रकारों को डराने-धमकाने के आरोपों की जांच के लिए तीन सदस्यीय फैक्ट फाइंडिंग समिति का गठन किया है. पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ़्ती ने परिषद और एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया को पत्र लिखकर कश्मीरी पत्रकारों के उत्पीड़न का मुद्दा उठाया था.

भारतीय प्रेस परिषद ने जम्मू कश्मीर में पत्रकारों को डराने-धमकाने के आरोपों की जांच के लिए तीन सदस्यीय फैक्ट फाइंडिंग समिति का गठन किया है. पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ़्ती ने परिषद और एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया को पत्र लिखकर कश्मीरी पत्रकारों के उत्पीड़न का मुद्दा उठाया था.

(फोटोः रॉयटर्स)

श्रीनगरः भारतीय प्रेस परिषद (पीसीआई) द्वारा नियुक्त जांच समिति के कश्मीर में पत्रकारों से मिलने जाने से एक दिन पहले बीबीसी के एक स्ट्रिंगर पत्रकार मुख्तार जहूर को पुलिस ने तलब किया और उन्हें एक पूरी रात श्रीनगर पुलिस थाने में बिताने के लिए मजबूर किया गया.

पीसीआई की एक टीम जम्मू कश्मीर के पत्रकारों के उत्पीड़न और उन्हें डराने धमकाने के कथित मामले का जांच के लिए 13 अक्टूबर को श्रीनगर पहुंची थी.

टीम में दैनिक भास्कर के संपादक प्रकाश दुबे, न्यू इंडियन एक्सप्रेस के पत्रकार गुरबीर सिंह और जन मोर्चा की संपादक सुमन गुप्ता शामिल थे.

जब पुलिस ने जहूर को आधीरात को तलब किया तो उन्होंने कहा कि उन्हें कुछ बातें पूछने के लिए तलब किया गया था.

जहूर ने द वायर  को बताया, ‘मैं सो नहीं सका. मैं यह सोचता रहा कि मैंने क्या गलत किया है.’ जहूर ने कहा कि पूछताछ पूरी होने के बाद सुबह उन्हें जाने दिया गया.

उन्होंने बताया, ‘ज्यादातर सवाल इस बारे में पूछे गए कि एक सितंबर को हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के नेता सैयद अली शाह गिलानी के निधन की रात मैं कहां था.’

उन्होंने कहा, ‘पुलिस ने मुझसे पूछा कि उस दिन मैं कहां-कहां गया था. उन्होंने मेरे फोन की जांच की और मेरे फोन के कॉन्टैक्ट और कंटेंट को लेकर भी सवाल किए.’

उधर, एक अन्य फ्रीलांस पत्रकार सज्जाद गुल ने आरोप लगाया कि 13 अक्टूबर को प्रशासन ने उनके घर पर भी छापेमारी की. इसी दिन पीसीआई की टीम घाटी में पत्रकारों से मिलने आई थी.

बता दें कि गुल ने हाल ही में उत्तर कश्मीर के एक परिवार को लेकर रिपोर्ट की थी, जिसमें उक्त परिवार ने बताया था कि बांदीपोरा में हुए एक फर्जी एनकाउंटर में उनके बेटे को मार गिराया गया था.

उन्होंने कहा, ‘मेरे भाई ने मुझे फोन किया, वह डरा हुआ था. उसने मुझसे जितनी जल्दी हो सके, घर आने को कहा लेकिन मैं क्लास में घर से कई किलोमीटर दूर था.’

गुल मौजूदा समय में पत्रकारिता विषय में मास्टर्स की पढ़ाई कर रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘जब मैं हाजिन पुलिस स्टेशन पहुंचा, पुलिस अधिकारी ने मेरे फोन ले लिया और मेरे कुछ ट्वीट डिलीट कर दिए.’

उसने बताया कि इनमें से एक ट्वीट कुछ दिन पहले का था, जिसमें उसने कहा था कि पुलिस उसे धमका रही है.

द वायर ने बांदीपोरा के एसएसपी मोहम्मद जाहिद से बात की, जिन्होंने कहा कि ये आरोप आधारहीन है. उन्होंने कहा, ‘यह सच नहीं है. उनके घर पर छापेमारी नहीं की गई.’

जाहिद ने कहा कि पुलिस को लेकर गुल के ट्वीट आधारहीन है और रिपोर्टर ने खुद ही वे ट्वीट डिलीट किए थे.

बता दें कि पीसीआई ने हाल ही में कहा था कि जम्मू एवं कश्मीर में पत्रकारों को डराने-धमकाने के आरोपों की जांच के लिए तीन सदस्यीय फैक्ट फाइंडिंग समिति का गठन किया गया है.

दरअसल जम्मू एवं कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने पीसीआई और एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया को पत्र लिखकर कश्मीरी पत्रकारों को डराने-धमकाने और उन्हें उत्पीड़न का मुद्दा उठाया था.

पीसीआई की टीम 13 अक्टूबर को श्रीनगर के सरकारी गेस्ट हाउस में पत्रकारों से मिली थी. इस बैठक से जुड़े सूत्रों ने द वायर  को बताया कि इस गेस्ट सूची में उन लोगों के नाम शामिल है, जो पहले सरकारी कर्मचारी थे.

सूत्र ने बताया, इन लोगों में से एक स्तंभकार के रूप में सूचीबद्ध है. द वायर  ने पता लगाया है कि इस सूची में शामिल अन्य नामों में कुछ कम लोकप्रिय वेबसाइटों के संपादक हैं, जिन्होंने पहले कश्मीर में पत्रकारों के खिलाफ कार्रवाई को लेकर आवाज उठाई है.

श्रीनगर से बाहर काम कर रहे फ्रीलांस पत्रकारों ने पहचान उजागर न करने की शर्त पर द वायर  को बताया कि इन दिनों उन्हें प्रशासन की ओर से छापेमारी का डर है इसलिए वे खुद अपने घरों से बाहर रह रहे हैं.

पिछले हफ्ते कश्मीर के अनंतनाग से दो पत्रकारों एक ऑनलाइन वीकली कश्मीर फर्स्ट के संपादक सलमान शाह (30) और एक फ्रीलांस पत्रकार सुहैल डार (21) को गिरफ्तार किया था. दोनों के खिलाफ दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 107, 151 के तहत मामला दर्ज किया गया.

डार के एक संबंधी ने बताया, ‘हमें नहीं पता कि उन्होंने उसे क्यों तलब किया. उसे पुलिस स्टेशन जाने को कहा गया और पुलिस ने अभी तक हमें नहीं बताया कि उसका अपराध क्या था.’

ये संबंधी डार की जमानत कराने अदालत गए थे लेकिन उन्हें पता चला कि पुलिस ने कार्यकारी मजिस्ट्रेट से डार की सात दिनों की रिमांड मांगी है.

उन्होंने पहचान उजागर न करने की शर्त पर बताया, ‘डार अपने बीमार माता-पिता की देखभाल करने वाला अकेला शख्स है. उसके माता-पिता अदालत आने में सक्षम नहीं है.’

सलमान के भाई इमरान शाह ने बताया कि सलमान को सात दिन पहले पुलिस ने तलब किया था. पुलिस का कहना है कि उन्हें उससे पूछताछ करनी है और उसे उसके बाद रिहा कर दिया जाएगा.

दक्षिण कश्मीर से वकील हाबिल इकबाल ने द वायर  को बताया कि पुलिस के पास ऐसी कोई सामग्री होनी चाहिए, जिसके आधार पर ने इन धाराओं के तहत वे किसी शख्स के खिलाफ मामला दर्ज कर सकते हैं.

इकबाल ने कहा, ‘ये पीएसए का थोड़ा कम सख्त वर्जन है. मनमाने तरीके से ये धाराएं लागू करना संविधान के अनुच्छेद 19 और 21 का उल्लंघन है.’

द वायर  ने इस मसले पर अनंतनाग पुलिस से संपर्क किया लेकिन उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. उनका जवाब मिलने पर इस खबर को अपडेट किया जाएगा.

पत्रकारों की सुरक्षा करने वाली समिति ने शुक्रवार को मांग की कि शाह और डार को तुरंत रिहा करने की मांग की.

अमेरिका स्थित गैर सरकारी संगठन ने जम्मू कश्मीर प्रशासन से पत्रकारों से पूछताछ बंद करने का आग्रह किया और प्रशासन से इसके बजाय मीडिया को स्वतंत्र तरीके से काम करने की अनुमति देने को कहा.

सीपीजे के एशिया कार्यक्रम के समन्वयक स्टीवन बटलर ने कहा, ‘भारत को जम्मू कश्मीर पत्रकारों के उत्पीड़न और उन्हें हिरासत में रखने के शर्मनाक रिकॉर्ड में जल्द ही सुधार करने की जरूरत है.’

द वायर  ने घाटी में पत्रकारों से पीसीआई टीम के साथ उनके अनुभवों और उम्मीदों के बारे में पूछा लेकिन किसी ने भी ऑन रिकॉर्ड बात करने की इच्छा नहीं जताई.

एक राष्ट्रीय स्तर के वेब पोर्टल में काम कर रहे पत्रकार ने गोपनीयता की शर्त पर बताया, ‘पीसीआई ने पहले जम्मू एवं कश्मीर में संचार लॉकडाउन को न्यायोचित ठहराया था, जिसके बाद संचार पर पूरा प्रतिबंध लग गया था और यह प्रेस और अभिव्यक्ति की आजादी का उल्लंघन है. हालांकि, पीसीआई की यह मौजूदा कार्रवाई पत्रकारों के अधिकारों के लिए खड़े होने और कश्मीर के स्वतंत्र मीडिया परिदृश्य के समर्थन की दिशा में हो सकती है.’

हालांकि उन्होंने कहा, ‘कश्मीरी पत्रकार पीसीआई की अंतिम रिपोर्ट को लेकर उत्साहित नहीं है.’

(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)