प्रथमदृष्टया यह नहीं कह सकते कि आनंद तेलतुंबड़े किसी आतंकी गतिविधि में शामिल थे: अदालत

एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में आरोपी नागरिक अधिकार कार्यकर्ता आनंद तेलतुंबड़े को ज़मानत देने वाले अपने विस्तृत आदेश में बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा है कि याचिकाकर्ता के ख़िलाफ़ ज़ब्त सामग्री किसी भी रूप में यह साबित नहीं करती है कि उन्होंने यूएपीए अधिनियम की धारा-15 के तहत कोई आतंकी कृत्य किया है या उसमें शामिल रहे हैं. The post प्रथमदृष्टया यह नहीं कह सकते कि आनंद तेलतुंबड़े किसी आतंकी गतिविधि में शामिल थे: अदालत appeared first on The Wire - Hindi.

एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में आरोपी नागरिक अधिकार कार्यकर्ता आनंद तेलतुंबड़े को ज़मानत देने वाले अपने विस्तृत आदेश में बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा है कि याचिकाकर्ता के ख़िलाफ़ ज़ब्त सामग्री किसी भी रूप में यह साबित नहीं करती है कि उन्होंने यूएपीए अधिनियम की धारा-15 के तहत कोई आतंकी कृत्य किया है या उसमें शामिल रहे हैं.

सामाजिक कार्यकर्ता आनंद तेलतुंबड़े. (फोटो साभार: ट्विटर)

मुंबई: बॉम्बे हाईकोर्ट ने एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में आरोपी नागरिक अधिकार कार्यकर्ता आनंद तेलतुंबड़े की जमानत याचिका शुक्रवार को मंजूर कर ली.

अदालत ने कहा कि प्रथमदृष्टया उनके खिलाफ मामला आतंकवादी संगठनों से उनके कथित संबंधों और उन्हें दिए जाने वाले समर्थन से जुड़ा है, जिसके लिए अधिकतम सजा 10 साल कारावास है.

जस्टिस एएस गडकरी और जस्टिस एमएन जाधव की खंडपीठ ने कहा कि तेलतुंबड़े पहले ही जेल में दो साल बिता चुके हैं.

लाइव लॉ के मुताबिक, आनंद तेलतुंबड़े को जमानत देने वाले अपने विस्तृत आदेश में बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि पहली नजर में इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सकता है कि तेलतुंबड़े भीमा कोरेगांव-एल्गार परिषद केस में आतंकी गतिविधि में शामिल हैं.

पीठ ने पाया कि यूएपीए की धारा 16 (आतंकी कृत्य के लिए सजा), 18 (साजिश के लिए सजा) और 20 (आतंकी गिरोह या संगठन के सदस्य के तौर पर सजा) प्रथमदृष्टया बनती ही नहीं हैं.

बहरहाल, हाईकोर्ट ने अपने आदेश पर एक सप्ताह के लिए रोक लगा दी, ताकि इस मामले की जांच कर रही राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सके. इसका अर्थ है कि तेलतुंबड़े तब तक जेल से बाहर नहीं जा सकेंगे.

73 वर्षीय तेलतुंबड़े अप्रैल 2020 से इस मामले में जेल में हैं. अदालत ने एक लाख रुपये के मुचलके पर उनकी जमानत मंजूर की. उनके वकील मिहिर देसाई ने अदालत से उन्हें नकद में जमानत राशि जमा कराने की अनुमति देने का अनुरोध किया, जिसे अदालत ने स्वीकार कर लिया.

एनआईए ने इस आदेश पर एक सप्ताह की रोक लगाए जाने का आग्रह किया, ताकि वह इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सके. पीठ ने इस अनुरोध को स्वीकार कर लिया और अपने आदेश पर एक सप्ताह की रोक लगा दी.

पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि प्रथमदृष्टया एनआईए ने तेलतुंबडे के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) की धारा 38 (आतंकवादी संगठन के साथ जुड़ाव) और धारा 39 (आतंकवादी संगठन को समर्थन) के तहत अपराध तय किए हैं.

अदालत ने कहा, ‘इन अपराधों में अधिकतम सजा 10 साल की कैद है और याचिकाकर्ता (तेलतुंबड़े) पहले ही दो साल से अधिक समय जेल में काट चुके हैं.’

लाइव लॉ के अनुसार, पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ जब्त सामग्री किसी भी रूप में यह साबित नहीं करती है कि उन्होंने यूएपीए अधिनियम की धारा-15 के तहत कोई आतंकी कृत्य किया है या उसमें शामिल रहे हैं.

अदालत ने तेलतुंबड़े के मामले को उनके सह-आरोपियों डीयू प्रोफेसर हेनी बाबू और कार्यकर्ता ज्योति जगताप के मामले से अलग करते हुए कहा कि केवल 5 दस्तावेज (पत्र) और 3 मुख्य गवाहों के बयानों का इस्तेमाल तेलतुंबड़े के खिलाफ किया गया है.

विश्लेषण के बाद अदालत ने कहा कि कथित तौर पर सह-आरोपी रोना विल्सन के लैपटॉप से बरामद जिन पांच पत्रों का आनंद तेलतुंबड़े के खिलाफ हवाला दिया गया है, वे अनुमान पर आधारित हैं, जिनकी आगे पुष्टि किया जाना जरूरी है.

कोर्ट ने दर्ज किया कि तेलतुंबड़े लंदन स्कूल ऑफ इकॉनोमिक्स, हार्वर्ड विश्वविद्यालय, एमआईटी, मिशिगन विश्वविद्यालय जैसे विख्यात संस्थानों में व्याख्यान देने जाते रहे हैं और क्योंकि उनका भाई (मिलिंद तेलतुंबड़े) एक वांछित माओवादी था, इसका मतलब यह नहीं है कि उनका भी प्रतिबंधित संगठन से कथित जुड़ाव है.

एक अन्य पत्र जिसमें भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) कैडर को भाजपा शासित प्रदेशों में प्रदर्शन आयोजित करने के लिए कहा गया था, उसके संबंध में अदालत ने कहा कि ‘भाई आनंद’ शब्द का इस्तेमाल एक बार हुआ और यह स्पष्ट नहीं है कि पत्र में वास्तव में तेलतुंबड़े का संदर्भ है.

अदालत ने कहा कि भीमा-कोरेगांव हिंसा में एक व्यक्ति की मौत हुई थी. अदालत ने कहा कि हालांकि मसौदा आरोपों और आरोप-पत्र के आधार पर हम प्रथमदृष्टया पाते हैं कि एनआईए ने इस संबंध में कोई जांच नहीं की.

इस दौरान अदालत ने कहा कि एनआईए के केस में आरोप था कि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) एक बड़ी साजिश में एल्गार परिषद का इस्तेमाल कर रहा है, लेकिन रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री इन धाराओं में उन पर आरोप लगाने के लिए पर्याप्त नहीं है.

गौरतलब है कि अप्रैल 2020 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों पर तेलतुंबड़े ने आत्मसमर्पण कर दिया था, जिसके बाद एनआईए ने उन्हें 14 अप्रैल 2020 को गिरफ्तार किया था.

तेलतुंबड़े इस समय नवी मुंबई की तलोजा जेल में हैं. एक विशेष अदालत ने उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी थी, जिसके बाद उन्होंने पिछले साल हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.

तेलतुंबड़े ने अपनी याचिका में दावा किया था कि वह 31 दिसंबर 2017 को पुणे में आयोजित हुए एल्गार परिषद के कार्यक्रम में मौजूद ही नहीं थे और न ही उन्होंने कोई भड़काऊ भाषण दिया था.

अभियोजन पक्ष का कहना है कि प्रतिबंधित संगठन भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) द्वारा कथित तौर पर समर्थित इस कार्यक्रम में भड़काऊ भाषण दिए गए थे, जिसके कारण बाद में पुणे के पास भीमा-कोरेगांव में हिंसा हुई थी.

एनआईए के गवाह ने दावा किया था कि तेलतुंबड़े आंदोलन से जुड़ने के लिए अपने स्वर्गीय भाई वांछित माओवादी नेता मिलिंद से प्रभावित थे.

तेलतुंबड़े इस मामले में जमानत पाने वाले तीसरे आरोपी हैं. इससे पहले मामले के 16 आरोपियों में से केवल दो वकील और अधिकार कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज और तेलुगू कवि वरवरा राव फिलहाल जमानत पर बाहर हैं. 13 अन्य अभी भी महाराष्ट्र की जेलों में बंद हैं.

वहीं, आरोपियों में शामिल फादर स्टेन स्वामी की पांच जुलाई 2021 को अस्पताल में उस समय मौत हो गई थी, जब वह चिकित्सा के आधार पर जमानत का इंतजार कर रहे थे.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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