एल्गार परिषद: वरवरा राव को 28 अक्टूबर तक आत्मसमर्पण करने की ज़रूरत नहीं- हाईकोर्ट

एल्गार परिषद मामले में आरोपी 82 वर्षीय कवि वरवरा राव को इस साल फरवरी में मेडिकल आधार पर अंतरिम ज़मानत मिली थी. उन्हें पांच सितंबर को आत्मसमर्पण कर न्यायिक हिरासत में लौटना था, लेकिन अदालत द्वारा ज़मानत अवधि का विस्तार करते हुए उन्हें राहत दी गई है.

एल्गार परिषद मामले में आरोपी 82 वर्षीय कवि वरवरा राव को इस साल फरवरी में मेडिकल आधार पर अंतरिम ज़मानत मिली थी. उन्हें पांच सितंबर को आत्मसमर्पण कर न्यायिक हिरासत में लौटना था, लेकिन अदालत द्वारा ज़मानत अवधि का विस्तार करते हुए उन्हें राहत दी गई है.

वरवरा राव. (फोटो साभार: फेसबुक/@VaravaraRao)

मुंबई: बॉम्बे हाईकोर्ट ने गुरुवार को कहा कि एल्गार परिषद मामले में कवि-कार्यकर्ता वरवर राव को 28 अक्टूबर तक तलोजा जेल अधिकारियों के समक्ष आत्मसमर्पण करने की जरूरत नहीं है.

जस्टिस नितिन जमादार और एसवी कोतवाल की पीठ ने राव को आत्मसमर्पण के लिए दी गई अवधि 28 अक्टूबर तक के लिए बढ़ा दी और कहा अदालत आगे की सुनवाई 26 अक्टूबर को करेगी.

पीठ ने यह भी कहा कि उन्हें दी गई जमानत की अवधि बढ़ाने पर 26 अक्टूबर को सुनवाई की जाएगी.

इससे पहले सितंबर महीने में भी बॉम्बे हाईकोर्ट ने राव की अंतरिम जमानत विस्तार की याचिका पर सुनवाई स्थगित करते कहा कि राव को 25 सितंबर तक तलोजा जेल अधिकारियों के समक्ष आत्मसमर्पण की जरूरत नहीं है.

इस मामले में वरवरा राव (82) के अलावा पंद्रह अन्य कार्यकर्ताओं, विद्वानों और वकीलों को गिरफ्तार किया गया है. राव की तरह ही मामले में गिरफ्तार किए गए कई अन्य आरोपी भी खराब स्वास्थ्य से जूझ रहे हैं.

वकील सुधा भारद्वाज, प्रोफेसर शोमा सेन और हेनी बाबू, कार्यकर्ता गौतम नवलखा और आनंद तेलतुम्बड़े ने खराब स्वास्थ्य, उम्र संबंधी बीमारियों और कोरोना का हवाला देकर अदालत का रुख किया है.

जमानत याचिका पर सुनवाई का इंतजार करते हुए कार्यकर्ता फादर स्टेन स्वामी (84) की पांच जुलाई को हिरासत में ही मौत हो गई थी. कई बीमारियों से पीड़ित स्वामी हिरासत में कोरोना वायरस से संक्रमित भी पाए गए थे.

वरवरा राव को इस साल 22 फरवरी को मेडिकल आधार पर अंतरिम जमानत दी गई थी. वह एल्गार परिषद मामले में गिरफ्तार आरोपियों में पहले शख्स हैं, जिन्हें अंतरिम राहत दी गई थी. उन्हें पांच सितंबर को आत्मसमर्पण कर न्यायिक हिरासत में लौटना था.

सितंबर की शुरुआत में कार्यकर्ता वरवरा राव ने अपने वकील आर. सत्यनारायण और वरिष्ठ वकील आनंद ग्रोवर के जरिये जमानत विस्तार के लिए याचिका दायर की थी.

राव ने जमानत पर बाहर रहते हुए अपने गृहनगर हैदराबाद में रहने की मंजूरी भी मांगते हुए कहा कि उनके लिए मुंबई में रहकर स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच बनाना किफायती नहीं है.

हाईकोर्ट द्वारा उन्हें दी गई अंतरिम जमानत की सख्त शर्तों के तहत राव मुंबई में अपनी पत्नी के साथ एक किराये के आवास पर रह रहे हैं.

उस समय मामले की जांच संभल रहे राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) हाईकोर्ट के समक्ष दायर हलफनामे में मेडिकल जमानत बढ़ाने की राव की याचिका और हैदराबाद जाने देने के अनुरोध का विरोध करते हुए कहा था, ‘याचिकाकर्ता द्वारा दायर मेडिकल रिपोर्टों से यह पता नहीं चल पाया है कि उन्हें कोई गंभीर बीमारी है, जिसके इलाज के लिए उन्हें हैदराबाद जाने की जरूरत है और न ही यह मेडिकल रिपोर्ट उनकी जमानत अवधि बढ़ाने का आधार बनती है.’

एनआईए का यह भी कहना था कि तलोजा जेल में पर्याप्त स्वास्थ्य देखरेख की सुविधाएं हैं और राव को यहां सर्वोत्तम मेडिकल सुविधाएं मुहैया कराई जा सकती हैं.

बता दें कि एनआईए के इन दावों के विपरीत द वायर  ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि राव के परिवार ने बार-बार याचिका दायर कर यह आरोप लगाया था कि वरवरा राव को जेल में बुनियादी मानवीय इलाज नहीं मिल रहा है.

उनके परिवार ने पिछले साल अक्टूबर में बताया था कि जेल में रहते हुए राव का वजन लगभग 18 किलोग्राम तक कम हो गया है और वे बिस्तर से उठ नहीं पाते.

राव ने मेडिकल जमानत में विस्तार और जमानत शर्तों में बदलाव की मांग वाली याचिका में कहा था कि नानावती अस्पताल के डॉक्टरों के मुताबिक वे संभावित न्यूरोलॉजिकल समस्याओं से पीड़ित हो सकते हैं, जिसे क्लस्टर हेडएक कहते हैं. राव की ओर से यह भी कहा गया है कि वे यूरिनरी ट्रैक्ट संक्रमण, हाइपोनैट्रेमिया, पार्किंसंस बीमारी का संदेह, मस्तिष्कके प्रमुख छह लोब में लैकुनर इन्फर्क्ट और आंख संबंधी समस्याओं से ग्रसित हो सकते हैं.

राव ने कहा था कि अगर वह तलोजा जेल प्रशासन में लौटते हैं तो वहां उनकी मेडिकल समस्याओं का निदान नहीं हो सकता, इसलिए उनका स्वास्थ्य और खराब हो सकती है और उनकी मृत्यु भी हो सकती है. राव ने इन आधारों पर अपनी जमानत अवधि में छह महीने के विस्तार की मांग की थी.

ज्ञात हो कि एल्गार परिषद मामला 31 दिसंबर, 2017 को पुणे में आयोजित एक सम्मेलन में दिए गए भड़काऊ भाषणों से संबंधित है, जिसके बारे में पुलिस का दावा है कि इस भाषणों के कारण अगले दिन पुणे के बाहरी इलाके में स्थित कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक के पास हिंसा हुई.

अभियोजन पक्ष ने दावा किया था कि इस सम्मेलन को माओवादियों के साथ कथित रूप से संबंध रखने वाले लोगों ने आयोजित किया था.

एनआईए ने आरोप लगाया है कि एल्गार परिषद का आयोजन राज्य भर में दलित और अन्य वर्गों की सांप्रदायिक भावना को भड़काने और उन्हें जाति के नाम पर उकसाकर भीमा-कोरेगांव सहित पुणे जिले के विभिन्न स्थानों और महाराष्ट्र राज्य में हिंसा, अस्थिरता और अराजकता पैदा करने के लिए आयोजित किया गया था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)