तेज़ाब हमले के पीड़ित को विकलांग अधिकार अधिनियम के तहत क्षतिपूर्ति का हक़ है: बॉम्बे हाईकोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट दो बच्चों की मां की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिस पर 2010 में उसके पति ने हमला किया था और उसके चेहरे पर तेज़ाब डाल दिया था. राज्य सरकार को पीड़ित महिला को 2016 के क़ानून के तहत तीन महीने के अंदर मुआवज़े का भुगतान करने और चेहरे की सर्जरी तथा अन्य चिकित्सकीय ख़र्च भी उठाने का निर्देश दिया.

बॉम्बे हाईकोर्ट दो बच्चों की मां की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिस पर 2010 में उसके पति ने हमला किया था और उसके चेहरे पर तेज़ाब डाल दिया था. राज्य सरकार को पीड़ित महिला को 2016 के क़ानून के तहत तीन महीने के अंदर मुआवज़े का भुगतान करने और चेहरे की सर्जरी तथा अन्य चिकित्सकीय ख़र्च भी उठाने का निर्देश दिया.

बॉम्बे हाईकोर्ट (फोटो: पीटीआई)

मुंबई: बॉम्बे उच्च न्यायालय ने कहा है कि तेजाब हमले के पीड़ित विकलांग अधिकार अधिनियम के तहत क्षतिपूर्ति एवं पुनर्वास लाभ के हकदार हैं. उसने इस कथन के साथ ही महाराष्ट्र सरकार को शहर के एक तेजाब पीड़ित को 10 लाख रुपये देने का निर्देश दिया है.

इस सप्ताह के शुरू में जारी किए गए अपने आदेश में जस्टिस उज्जल भूयान और जस्टिस माधव जामदार की पीठ ने राज्य सरकार को पीड़ित महिला को 2016 के कानून के तहत मुआवजे का भुगतान करने और चेहरे की सर्जरी तथा अन्य चिकित्सकीय खर्च भी उठाने का निर्देश दिया.

पीठ दो बच्चों की मां की याचिका पर सुनवाई कर रही है जिस पर 2010 में उसके पति ने हमला किया था.

इस आदेश के अनुसार, महिला के पति ने तब उनके चेहरे पर तेजाब डाल दिया था जब वह सो रही थीं. फलस्वरूप वह बुरी तरह झुलस गईं.

अदालत ने कहा कि महिला ने इलाज पर पांच लाख रुपये खर्च किए, लेकिन उन्हें राज्य सरकार से कोई मुआवजा नहीं मिला.

उच्च न्यायालय ने कहा, ‘यह वाकई दुर्भाग्यपूर्ण है. भारत के संविधान के अनुच्छेछ 21 के तहत याचिकाकर्ता का अर्थपूर्ण जीवन जीने, गरिमा के साथ जीवनयापन करने का अधिकार दूर का एक सपना ही है.’

न्यायालय ने कहा कि ऐसी परिस्थिति में यह अदालत यदि याचिकाकर्ता को उचित मुआवजे के भुगतान और उसके पुनर्वास उपायों का निर्देश नहीं देता है तो वह अपने कर्तव्य निर्वहन में विफल होगी.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, अदालत ने महाराष्ट्र सरकार के महिला एवं बाल विकास विभाग को तीन महीने के भीतर तेजाब हमले की पीड़िता को 10 लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया.

अदालत ने सरकार को मुआवजे की राशि का 75 प्रतिशत राशि फिक्स डिपॉजिट और शेष राशि को पीड़ित के बचत बैंक खाते में जमा करने का निर्देश दिया. अदालत ने कहा कि पीड़ित के पति की उसके फिक्स डिपॉजिट और बचत बैंक खाते तक पहुंच नहीं होगी.

साथ ही अदालत ने मुंबई जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण (एमडीएलएसए) को विकलांगता पंजीकरण, राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (एनएएलएसए) योजना के तहत आगे मुआवजा, प्रधानमंत्री राहत कोष और केंद्रीय पीड़ित मुआवजा कोष दिशानिर्देश सहित अन्य सभी लाभों का लाभ उठाने में याचिकाकर्ता की सहायता करने का निर्देश दिया.

रिपोर्ट के मुताबिक, नवंबर 2011 में सत्र अदालत ने आईपीसी के तहत हत्या के प्रयास के लिए पति को दोषी ठहराया और उसे 10 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई थी. बाद में 2015 में हाईकोर्ट द्वारा सजा को बरकरार रखा गया था.

याचिकाकर्ता ने वकील अदिति सक्सेना और रचिता पडवाल के माध्यम से इस साल की शुरुआत में हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, जिसमें महाराष्ट्र सरकार की मनोधैर्य मुआवजा योजना के तहत एसिड हमले की पीड़ित को उसकी चोटों के इलाज के लिए मुआवजे की मांग की गई थी.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)